आइए कुछ गुफ्तगू अब मुल्क पर करते चले
अपनी ताकत साथ लेकर दिल्ली को बढ़ते चलें
रहनुमाओं से नहीं उम्मीद कोई अब बची
खुद लड़ेंगे जंग अपनी, आइए कहते चलें
साठ-पैंसठ साल से सहते रहे, कितना सहें
जोर धक्का सल्तनत को आइए देते चलें
जख्म छोटा था, मगर नासूर सा अब बन गया
मरहम-पट्टी छोड़िए, इंजेक्शन लेते चलें
टूजी, थ्रीजी और जीजा जी के करतब वाह-वाह
धतकरम वालों का किस्सा खत्म अब करते चलें
-कुंवर प्रीतम
8-10-2012
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