भड़ास blog
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
25.10.12
बेचारा रावण या शायद हम :'(
बेचारा रावण या शायद हम :'(
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और अगर है अपराध नारी के अपमान का
तो गिनों जिन्दा खुले फिरते बलात्कारियों को
खड़े खड़े यूँ पोथे के पोथे भर जाने थे ।
उन्हें क्यूँ जला नहीं पाते तुम लोग , नपुंसक हो ??
जो मरे हुए के पुतले को बार बार जलाते हो ??
और जिन्दा अपराधी से डर के दुबक जाते हो ??
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