भड़ास blog

अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...

25.10.12

बेचारा रावण या शायद हम :'(

 बेचारा रावण या शायद हम :'(


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और अगर है अपराध नारी के अपमान का 
तो गिनों जिन्दा खुले फिरते बलात्कारियों को 
खड़े खड़े यूँ पोथे के पोथे भर जाने थे ।
उन्हें क्यूँ जला नहीं पाते तुम लोग , नपुंसक हो  ??
जो मरे हुए के पुतले को बार बार जलाते हो ??
और जिन्दा अपराधी से डर के दुबक जाते हो ??
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Manish Khedawat at 1:56 AM
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