खुशी-खुशी खुशी को अपना लिया
दफ्न कर गमों को झुठला दिया
कब्र में मगर भूल गया नमक डालना
लौटकर भुतहा सा रूह ने कंपा दिया
दफ्न गमों का पिंजर न गल सका
अक्ल में फिर-फिर वह आ खड़ा
महफूज नहीं इन खुशियों के बीच भी
अफसोस फिर भी खुश नहीं ताउम्र
अटपटा लगे, तो न कहना
यह दस्तूर ए जहां है
चाहो खुशी तो मिलती है वो जरूर
पर मगर गमों के चादर में लिपटी हुई
अस न बस खोलोगे खुशी फिर भी गमों को उकेर कर।
-सखाजी
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