मुमकिन है नीलामी में घर अपना भी लग जाए
हमने दरवाजे पर अपना भारत नाम लिखा रक्खा है
भक्त कृष्ण का कैसा है जो मिलता नहीं सुदामा से
पहरेदारों को भी उसने सच औ झूठ सिखा रक्खा है
पूरा कुनबा लूट रहा है, पर वजीर मुंह कैसे खोले
मैडम ने उनको बापू का बंदर तीन दिखा रक्खा है
नब्ज देखकर रोग बताते आए अपने बैद मगर
उनने बाहर के बैदों को अपना रोग बता रक्खा है
बिना काम बिन धंधे दौलत बेहिसाब बढ़ती है उसकी
कुंवर सियासतदां ने अपना स्विस में माल छिपा रक्खा है
उन पर कौन उठाए उंगली, डाले उन पर कौन नकेल
मुंसिफ ने अपने दफ्तर में कौव्वा एक बिठा रक्खा है
-कुंवर प्रीतम
10-10-2012
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