कांग्रेस ने राहुल
गांधी को चुनाव समन्वय समिति का अध्यक्ष बनाकर राहुल गांधी को 2014 के लिए
कांग्रेस का चेहरा प्रोजेक्ट करने की कोशिश की है...और जिस तरह राहुल को चुनाव
समन्वय समिति का अध्यक्ष बनाने के बाद जिस तरह एक बार फिर से कांग्रेस नेता
चाटुकारिता की हदें पार कर रहे हैं उससे तो कम से कम यही जाहिर होता है कि 2014
में कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के हाथों में ही रहेगी और मनमोहन सिंह के
रिटायरमेंट के बाद पीएम की कुर्सी राहुल गांधी ही संभालेंगे (अगर कांग्रेस महंगाई
और भ्रष्टाचार पर जनता के कोप से बच गई तो)। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर सोनिया
गांधी ने बिहार और उत्तर प्रदेश में राहुल के नेतृत्व में करारी शिकस्त के बाद एक
बार फिर से क्यों हारे हुए खिलाड़ी (कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी) पर दांव खेला
है। कहीं कांग्रेस ये तो नहीं सोच रही कि राहुल गांधी के ऊर्जावान और युवा (जो
कांग्रेसी कहते हैं) चेहरे के पीछे यूपीए सरकार पर लगे काले धब्बे (भ्रष्टाचार,
घोटाले, महंगाई आदि) छिप जाएंगे और राहुल के बहाने युवा वोटरों को साधकर यूपीए
सरकार अपनी हैट्रिक पूरी कर लेगी। खैर इसका जवाब को अगले आम चुनाव (2014 में
प्रस्तावित) में देश की जनता ही देगी...लेकिन देश के वर्तमान हालात और महंगाई और
भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा देखकर तो यह अंदाजा लग रहा है कि यूपीए सरकार
अपनी हैट्रिक पूरी करे न करे...लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश में राहुल के नेतृत्व
में करारी शिकस्त के बाद राहुल गांधी भरी जवानी में सत्ता का स्वाद चखे बिना (अन
ऑफिशियली सत्ता को राहुल और सोनिया के हाथ में ही है) राहुल अपने नेतृत्व में
करारी शिकस्त का रिकार्ड जरूर बना देंगे। राहुल के इस नए रिकार्ड को बनाने में
सोनिया ने कोई कसर नहीं छोड़ी है और कांग्रेस के बयानवीर दिग्विजय सिंह को भी
राहुल के साथ लगा दिया है (सोनिया ने तो कुछ और ही सोचा होगा)। कुछ भी हो लेकिन एक
बात तो माननी पड़ेगी कि सोनिया गांधी के लाल राहुल गांधी में दम तो है...राहुल भले
ही राजनीति के नवजात हों...लेकिन दशकों से राजनीति कर रहे कांग्रेस के दिग्गज से
दिग्गज नेता भी राहुल की प्रशंसा करते नहीं अघाते...लगता है इन दिग्गजों की तेज
आंखों को पूत(राहुल गांधी) के पांव पालने में ही दिखाई दे गए हैं...साथ ही इन
कांग्रेसी दिग्गजों की गांधी खानदान की इस चाटुकारिता को अपने बुढ़ापे को संवारने
की कवायद के रूप में भी देखा जा सकता है...क्योंकि कांग्रेस में चाटुकारों को
गांधी परिवार की सेवा औऱ भक्ती का ईनाम जरूर मिलता है...अब देश की पूर्व
राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल(इनके बारे में मैंने कहीं पढ़ा था कि ये सोनिया
गांधी की सास और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए खाना बनाती थी)
या फिर हाल में उत्तराखंड के राज्यपाल बने अज़ीज़ कुरैशी साहब का ही उदाहरण देख
लेते हैं (उत्तराकंड का राज्यपाल बनते ही इन्होंने खुद कहा था कि गांधी खानदान की
वफादारी का ईनाम उन्हें मिला है) या फिर सबसे ताजा उदाहरण केन्द्रीय मंत्री सलमान
खुर्शीद साहब का ही ले लेते हैं...जिन्हें सोनिया भक्ति पर सोनिया गांधी ने ईनाम
देते हुए भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगने के बाद भी प्रमोट कर विदेश मंत्री बना
दिया। बहरहाल राजनीति में ये कोई नई बात नहीं है...मुद्दा वही है कि क्या राहुल
गांधी यूपीए सरकार की हैट्रिक लगवा पाएंगे या फिर बिहार और उत्तर प्रदेश के बाद
जाने अनजाने खुद की हैट्रिक लगा लेंगे। कई लोगों को मेरे विचार पढ़ने के बाद शायद
लग रहा होगा कि ये साहब तो कांग्रेस से खार खाए बैठे हैं...इसलिए जमकर कांग्रेस के
खिलाफ कलम घिस रहे हैं (ऐसा है नहीं)...अगर ऐसा सोच रहे हैं तो एक सवाल आप से भी क्या
यूपीए सरकार की तमाम उपलब्धियां (भ्रष्टाचार, महंगाई, घोटाले और भी जाने क्या
क्या) ये सब बयां नहीं कर रही जो मैंने लिखने की कोशिश की है। मन में कुछ हो तो विनम्र
आग्रह है कि अपने विचार (कमेंट बॉक्स) में प्रकट करने से चूकिएगा मत।
deepaktiwari555@gmail.com
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