25.11.12

मालिश कर रहे हैं चुनावी टिकट के दावेदार


बेशक राजस्थान विधानसभा चुनाव में करीब एक साल बाकी है, बावजूद इसके अजमेर जिले में चुनावी टिकट की दावेदारों ने दंगल में उतरने की खातिर मालिश शुरू कर दी है। जिन को टिकट की ज्यादा ही उम्मीद है, वे तो जमीन पर भी तैयारी कर रहे हैं, जब कि तीर में तुक्का लगने की उम्मीद में कुछ कुछ दावेदारों ने अजमेर से जयपुर व दिल्ली तक तार जोडऩे की कवायद शुरू कर दी है।
आइये, सबसे पहले बात करते हैं अजमेर उत्तर सीट की। यहां से लगातार दो बार जीते पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी अपना टिकट पक्का मान कर अभी से चुनावी रण की बिसात बिछाने में व्यस्त हैं। दूसरी ओर देवनानी से नाराज भाजपा का एक बड़ा धड़ा शहर जिला भाजपा के प्रचार मंत्री व स्वामी समूह के एमडी कंवल प्रकाश किशनानी का समर्थन करता दिखाई दे रहा है। सिंधी दावेदारों में वरिष्ठ भाजपा नेता तुलसी सोनी, भामसं नेता महेन्द्र तीर्थानी, संघ पृष्ठभूमि निरंजन आदि के नाम गाहे बगाहे चर्चा में उठ रहे हैं। गैर सिंधी दावेदारों में नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत की दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है। उनके बारे में तो चर्चा यहां तक है कि अगर पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय ही मैदान में उतर जाएंगे। यूं दावेदारी करने को तो ऐन वक्त पर पूर्व न्यास अध्यक्ष धर्मेश जैन, पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, पूर्व शहर जिला भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा व पूर्णाशंकर दशोरा भी आगे आ सकते हैं।
रहा सवाल कांग्रेस का तो नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत को मुख्य दावेदार माना जाता है, मगर उभरते कांग्रेस नेता नरेश राघानी व कर्मचारी नेता हरीश हिंगोरानी भी दावेदारी के प्रति गंभीर नजर आते हैं। विशेष परिस्थिति में पूर्व वरिष्ठ आईएएस एम. डी. कोरानी के पुत्र शशांक कोरानी भी मैदान में आ सकते हैं। वे केन्द्रीय मंत्री सचिन पायलट के दोस्त भी हैं। गैर सिंधीवाद के नाते पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने फिर से तैयारी शुरू कर दी है। वे पिछली बार कुछ खास अंतर से नहीं हारे थे, इस कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दम पर दावा ठोक सकते हैं। इसी प्रकार शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता की दावेदारी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से संबंधों के कारण गंभीर मानी जाती है। पिछली बार चुनाव मैदान से हटे शहर कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग फिर दावेदारी कर सकते हैं।
अजमेर दक्षिण की बात करते तो लगातार दो बार जीतीं श्रीमती अनिता भदेल का दावा सबसे मजबूत माना जाता है। उसकी वजह ये है कि एक तो वे मौजूदा विधायक हैं, दूसरा भाजपा के पास पूरे जिले में फिलहाल कोई मजबूत महिला दावेदार नजर नहीं आ रही। यूं भाजपा का एक बड़ा गुट उनके साथ है, मगर नगर निगम चुनाव में महापौर का चुनाव लड़ चुके डॉ. प्रियशील हाड़ा दावा ठोकने की तैयारी में हैं। एक सरकारी डॉक्टर की भी चर्चा है। संभव है पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा भी कोशिश करें। कांग्रेस में इस बार पूर्व उप मंत्री ललित भाटी का दावा मजबूत माना जा रहा है। वे सचिन पायलट खेमे में शामिल हैं व शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता से ठीक ट्यूनिंग है। भाटी के धुर विरोधी पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल भी दावेदारी तो कर सकते हैं, मगर समझा जाता है केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्यमंत्री सचिन पायलट उनकी राह में रोड़ा अटकाएंगे। केकड़ी के पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां भी अंदर ही अंदर तैयारी कर रहे हैं। हर बार की तरह वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रताप यादव भी दावा करने से नहीं चूकेंगे। ऐन वक्त पर पार्षद विजय नागौरा भी दावेदारी ठोक सकते हैं।
तीर्थराज पुष्कर की अगर बात करें तो वहां मूल दावा युवा भाजपा नेता व सरेराह समूह के एमडी भंवर सिंह पलाड़ा का ही है। पिछली बार भाजपा में बगावत होने के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उनके अतिरिक्त शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत भी रुचि दिखा रहे हैं, मगर सवाल ये है कि ब्यावर में विधायक शंकर सिंह रावत का टिकट पक्का माना जाने के कारण क्या एक और रावत नेता को जिले में दूसरा टिकट दिया जाएगा? नगर निगम के पूर्व उप महापौर सोमरत्न आर्य भी इन दिनों पुष्कर के खूब चक्कर काट रहे हैं। उनके अतिरिक्त सलावत खां व खादिम सैयद इब्राहिम फखर भी दावेदारी के मूड में हैं।
कांग्रेस में मौजूदा शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ की टिकट पक्की मानी जा रही है। फिलहाल वहां कोई और दावेदार उभर कर सामने भी नहीं आया है, मगर ऐन वक्त पर अजमेर उत्तर से टिकट न मिलने पर यहीं के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती यहां का रुख कर सकते हैं। वैसे श्रीमती इंसाफ का टिकट उसी स्थिति में कटेगा, जबकि जिले में किसी और सीट पर किसी मुस्लिम को टिकट दे दिया जाए।
लंबे अरसे तक स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के कब्जे में रही नसीराबाद सीट पर भाजपा की ओर से यूं तो पूर्व मंत्री सांवर लाल जाट का ही दावा मजबूत है, हालांकि पिछले चुनाव में वे चंद वोटों से हार गए थे। वे स्थान बदल कर किशनगढ़ भी जा सकते हैं। वैसे उनका टिकट पक्का है, चाहे कहीं से लें, क्योंकि वे पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया के हनुमान माने जाते हैं। नसीराबाद में पिछली बार जाट के अचानक टपकने की वजह मन मसोस कर रह जाने वाले पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा भी इस बार दावा कर सकते हैं। कांग्रेस में मौजूदा विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर का टिकट कटने की कोई संभावना नहीं है, इस कारण किसी और की दावेदारी उभर कर सामने नहीं आई है।
पिछले चुनाव से सामान्य हुई केकड़ी सीट पर भाजपा टिकट के प्रमुख दावेदारों में पिछली बार हार चुकीं श्रीमती रिंकू कंवर व भूपेन्द्र सिंह के नाम ही सामने हैं, मगर बताते हैं कि इस बार युवा भाजपा नेता व सरेराह ग्रुप के एमडी भंवर सिंह पलाड़ा वहां से चुनाव लडऩे का विचार बना सकते हैं। उधर कांग्रेस में सरकार मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा का टिकट पक्का माना जा रहा है।
मसूदा में भाजपा की ओर से पूर्व विधायक किशन गोपाल कोगटा व प्रहलाद शर्मा में से किसी एक को टिकट मिलने की उम्मीद है। ऐन वक्त पर महिला नेत्री डा. कमला गोखरू भी मैदान में आ सकती हैं। देहात जिला भाजपा अध्यक्ष नवीन शर्मा फिर दावेदारी के मूड में हैं। पिछली बार वे तीसरे नंबर पर रहे थे। कांग्रेस में संसदीय सचिव ब्रह्मदेव की दावेदारी को कहीं से भी कमजोर नहीं माना जा रहा। वे पिछली बार कांग्रेस के बागी रामचंद्र चौधरी को हरा कर जीते और कांग्रेस सरकार को समर्थन दिया। इस बार चौधरी की दावेदारी का तो पता नहीं, मगर पूर्व विधायक हाजी कयूम खान जरूर पूरी ताकत लगाए हुए हैं।
मार्बल मंडी के रूप में विकसित किशनगढ़ में भाजपा से पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी इस बार फिर दावेदारी करेंगे, मगर नसीराबाद से हार चुके पूर्व मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट भी इस बार दावेदारी कर सकते हैं। कांग्रेस के मौजूदा विधायक नाथूराम सिनोदिया का टिकट पक्का ही है। वे सब गुटों को साथ ले कर चल रहे हैं।
मगरा इलाके की ब्यावर सीट पर रावत वोटों की बहुलता के चलते भाजपा के मौजूदा विधायक शंकर सिंह रावत का टिकट कटने की कोई संभावना नहीं है, मगर फिर भी देहात भाजपा अध्यक्ष देवीशंकर भूतड़ा दावेदारी कर सकते हैं। कांग्रेस से पूर्व विधायक डॉ. के. सी. चौधरी फिर दावेदारी कर सकते हैं। वे पिछली बार कांग्रेस के बागी हो कर निर्दलीय चुनाव लड़े थे और भाजपा के शंकर सिंह रावत से 37 हजार वोटों से हार कर निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे थे। कांग्रेस के मूल सिंह रावत तीसरे स्थान रहे। यहां सुदर्शन रावत उभरते कांग्रेसी नेता के रूप में माने जा रहे हैं। ब्यावर में वोटों का धु्रवीकरण शहर व गांव के बीच होता है।
कुल मिला कर जिले में चुनावी टिकट की दावेदारी की चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं और चुनाव के नजदीक आते आते समीकरणों में बदलाव हो सकता है।
-तेजवानी गिरधर

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