12.12.12

अब पछताए होत क्या...जब चिड़िया चुग गयी खेत


देश में चुनावी मौसम शबाब पर है...हिमाचल प्रदेश में मतदान हो चुका है तो गुजरात में मतदान की उल्टी गिनती शुरु हो चुकी है। इसके साथ ही आने वाले साल 2013 में नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है...तो 2014 में आम चुनाव के साथ ही 6 राज्यों में विधानसभा प्रस्तावित है। ऐसे में भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोप से जुड़े आरोपों से घिरी होने के साथ ही महंगाई और आर्थिक सुधारों से जुड़े फैसलों को लेकर सवालों में घिरी केन्द्र सरकार इस जुगत में है कि कैसे वोटों का गणित बैठाया जाए ताकि चुनाव में अपनी डूबती नैया को तारा जाए। कैश सब्सिडी योजना का ऐलान कर सरकार ने पहला दांव खेला तो चुनाव आयोग के दखल के बाद सरकार को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस योजना पर रोक लगानी पड़ी। इसके बाद गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए पहले दौर के मतदान से दो दिन पहले पैट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या 6 से बढ़ाकर 9 करने के संभावनाओं को बल देकर मतदाताओं को रिझाने का फिर प्रयास किया...लेकिन यहां भी चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाई तो मोइली साहब सफाई देते नजर आए कि सरकार ने अभी इस पर कोई फैसला नहीं किया है। इससे पहले भी केन्द्र की यूपीए सरकार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की घोषणा कर चुकी...यानि वोटरों को लुभाने की कोशिश सरकार पहले भी करती नजर आई है। सरकार भले ही इन सब को लेकर अपने इरादों पर सफाई देती हुई नजर आ रही हो...लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर सरकार ने घोषणाओं के लिए चुनाव से पहले का वक्त क्यों चुना ? जाहिर है भ्रष्टाचार, घोटालों के साथ ही महंगाई और आर्थिक सुधारों के अपने फैसलों को लेकर सरकार सवालों के घेरे में है और शायद सरकार में शामिल लोगों को ये डर है कि कहीं इसका खामियाजा चुनाव में न भुगतना पड़े...और शायद चुनाव से ऐन पहले कुछ हद तक सरकार घोषणाएं कर जनता के गुस्से को कम करने की कोशिश में है। बात सिर्फ हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव तक होती तो शायद सरकार इतनी नहीं घबराई होती...लेकिन इन दो राज्यों के चुनाव से शुरु हो रहा चुनावी मौसम सरकार की परेशानी का सबब बना हुआ है। 2013 की अगर बात करें तो 2013 में दिल्ली के साथ ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और नागालैंड में विधानसभा चुनाव होना है...और ये चुनाव तय करेंगे कि 2014 के आम चुनाव यूपीए की हैट्रिक होगी या फिर बंधेगा यूपीए का बोरिया बिस्तर...ऐसे में ये बात कांग्रेस नीत यूपीए सरकार अच्छे से जानती है कि कहीं भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों के साथ ही महंगाई और आर्थिक सुधारों के नाम पर लिए गए सरकार के फैसले कहीं चुनाव में उसपर भारी न पड़ जाए...इसलिए ही चुनाव से पहले सरकार एक एक कर घोषणाएं कर जनता की नाराजगी दूर करने की पूरी कोशिश कर रही है। 2013 के बाद 2014 में आम चुनाव के साथ ही 6 राज्यों आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव होना है...यानि कि कांग्रेस का इम्तिहान 2014 में सिर्फ आम चुनाव तक ही नहीं बल्कि उसके साथ ही प्रस्तावित 6 राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी होगा। बहरहाल चुनावी मौसम की शुरुआत तो हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के साथ हो गयी है...और 20 दिसंबर की तारीख जब हिमाचल और गुजरात के नतीजे आएंगे ये तय करेगी कि सरकार के लिए 2013 के साथ ही 2014 की राह कितनी मुश्किल होने वाली है और जनता के फायदे की घोषणाएं कर अपनी राह आसान करने की कोशिश कर रही कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की कवायद का जनता पर कितना असर होता है...लेकिन इस सब को देखते हुए इतना तो कहा ही जा सकता है कि अब पछताए होत क्या...जब चिड़िया चुग गयी खेत।

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