कानून के खौफ की सख्त जरूरत
दिल्ली की बस में एक युवती के साथ हुई शर्मनाक घटना जैसी घटनाओं पर अरब का कानून याद आता है। समाज से लेकर सरकार तक कहीं भी इस बाबत शाब्दिक सहानुभूति से आगे कोई अर्थपूर्ण चिंता दूर-दूर तक नजर नहीं आती। लड़कियां कहीं भी खुद को सुरक्षित नहीं पातीं। आबादी के लिहाज से दुनिया में दूसरे नंबर वाले भारत में हालात शायद सबसे शर्मनाक हैं। छेड़छाड़ के मामलों में तो देश के अधिकांश हिस्सों में हालात एक जैसे हैं। इस पीड़ा को नजदीक से महसूस करना है, तो उन कामकाजी महिलाओं व लड़कियों से बात करिये जो प्रतिदिन सफर से लेकर कार्यालय तक में मानसिक यंत्रणा सहती हैं। कोई एक कारण नहीं है बल्कि बड़े सामाजिक मंथन की जरूरत है। जरूरत कानून के खौफ की? क्योंकि कानून लचीला है। मामलों की जल्द सुनवाई के साथ ही सख्त सजाएं ही डर पैदा करती हैं। स्वार्थपूर्ण मुद्दों पर चीखने-चिल्लाने वाले संगठनों को भी इसके लिये आगे आना चाहिए। जो हालात हैं उसमें ज्यादा प्रतिशत लोग बेटियां पैदा करने से डरेंगे ही। इस हकीकत का स्वीकार कर लेना चाहिए कि ऐसे लोगों को कानून का खौफ नहीं है?
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