दिल्ली गैंगरेप के
खिलाफ बीते दिनों राजपथ पर देश का आक्रोश आजादी के बाद का शायद अपने आप में सबसे
बड़ा उग्र प्रदर्शन था...लेकिन सही नेतृत्व न होने के चलते ये आंदोलन कहीं न कहीं दिशाहीन
होता दिखाई दिया और एक बड़े आंदलन की गर्भावस्था में ही हत्या हो गई। असल मुद्दा
कहीं खो गया और इसकी जगह बरसाती मेंढ़कों की तरह उपजे ऐसे मुद्दों ने ले ली जिन पर
बहस से कोई सार्थक हल निकलने की कोई उम्मीद नहीं है। जिस वक्त रायसीना को घेरे
हजारों युवाओं की टोली पीड़ित के लिए इंसाफ और महिलाओं की सुरक्ष के लिए आवाज
बुलंद कर रही थी उस वक्त खुद को युवाओं की पार्टी कहने वाली...युवाओं को नेतृत्व
देने की बातें करने वाली कांग्रेस के युवा नेताओं को राजधानी के दिल राजपथ में
युवाओं का ये आक्रोश नजर नहीं आया। ऐसे वक्त में देश के राष्ट्रपति ने तक रायसीना हिल्स
से बाहर निकलने का साहस नहीं दिखाया तो कांग्रेस के युवा नेताओं की क्या बिसात..! देश के गृहमंत्री
को जब ये युवाओं की टोली माओवादी नजर आने लगे तो फिर कांग्रेस के युवा नेताओं की
क्या बिसात..! देश के
प्रधानमंत्री जब “ठीक है” बोलने लगे तो फिर
कांग्रेस के युवा नेताओं की क्या बिसात..! इन युवा नेताओं के नेता कांग्रेस के युवराज
राहुल गांधी जब राजपथ पहुंचने का साहस नहीं जुटा सके तो कांग्रेस के इन युवा
नेताओं की क्या बिसात..! राजपथ देश की युवा शक्ति के गुस्से से दमक रहा था लेकिन कांग्रेस के किसी
युवा नेता को इसका सामना करने की शायद हिम्मत नहीं हुई। एक बेहद दुखद घटना से ही
उपजा सही लेकिन ये एक मौका था राजपथ पर आक्रोश से भरी युवा शक्ति को एक मजबूत
नेतृत्व प्रदान करने का...पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इंसाफ की लड़ाई को उसके मुकाम
तक ले जाने का लेकिन शायद कांग्रेस के युवा नेताओं में भी दूसरे कांग्रेसी नेताओं
की तरह 10 जनपथ की अवमानना करने का साहस नहीं था। राजपथ पर उमड़ा युवाओं का
जनसैलाब इनका इंतजार कर रहा था लेकिन ये शायद दिल्ली की सर्दी में गर्म कमरों का
मोह नहीं छोड़ पाए या यूं कहें कि 10 जनपथ के खिलाफ आवाज उठाने की इनमें हिम्मत
नहीं थी। लाल बत्ती और सरकारी बंगला पा चुके कुछ युवा नेताओं में शायद लाल बत्ती लगी
सरकारी गाड़ी और सरकारी बंगला छोड़ने का साहस नहीं था तो भविष्य में लाल बत्ती की
लालसा पाले बैठे कुछ युवा नेताओं की लालसा शायद कुछ ज्यादा ही जोर मार रही थी। ये
खुद को युवाओं के नेता कहते हैं और युवा शक्ति के दम पर देश की सूरत बदलने की बात
करते हैं लेकिन उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होने का साहस शायद इनमें नहीं
हैं। ये सच्चाई है इन युवा नेताओं की जो राजनीति की सीढ़ी तो युवाओं के कंधे पर
पैर रखकर चढ़ते हैं या फिर अधिकतर को ये विरासत में मिलती है लेकिन राजनीति के
गलियारों में प्रवेश करने के बाद इनका खून भी शायद दूसरे नेताओं की तरह पानी हो
जाता है। बात सिर्फ केन्द्र की सत्ता में बैठी कांग्रेस के युवा नेताओं की नहीं है
बल्कि इस मुद्दे पर विपक्ष में बैठी देश की दूसरी बड़ी पार्टी भाजपा के युवा
नेताओं की चुप्पी भी दोनों ही दलों को एक जमात में खड़ा करती है।
deepaktiwari555@gmail.com
behad samyik aur utkrisht lekh ...aabhar.
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