माँगने गये न्याय और मिला क्रूर अत्याचार
जलियाँवाला काण्ड फिरंगियों ने गुलाम भारतीयों पर किया उसे भूलना मुश्किल है
क्योंकि इस देश में आजादी के बाद भी आजाद भारतीयों पर इस तरह के क्रूर काण्ड
होते रहते हैं।
कानून जनता के लिए, जनता के द्वारा, होता है मगर इस देश के अहंकारी नेता इस तथ्य
को भूल जाते हैं। जब-जब भी इस देश में कोई अनाचार, अत्याचार होता है इस देश की
सरकार या तो खोटे लुभावने वायदे करती है या कोरे आश्वासन देती है मगर पीड़ा का
माकूल ईलाज नहीं करती है , यह प्रश्न युवा भारतीयों से सहा नहीं जाता है और इसका
ठोस उत्तर पाने के लिये जब भी देश की संसद की ओर कूच करता है उसे मार-ठोक कर
भगा दिया जाता है।
जब -जब भी देश में कानून व्यवस्था पंगु और जर्जर हुयी है उसका खामियाजा आम
जनता को ही भुगतना पड़ा है क्योंकि विशिष्ट लोगों की सुरक्षा हो जाती है। संसद में
अच्छी लच्छेदार भाषा में बहस हो जाती है और स्वार्थी पक्ष देश हित को गौण करके
बहुमत के जोर पर कुछ भी करा लेने में सक्षम हो जाते हैं।क्या इसे ही सच्ची और सही
आजादी कहा जाएगा?
एक बेटी की इज्जत सरे आम देश की राजधानी में तार-तार हो जाती है परन्तु इस देश
की सरकार उस बेटी से अपनी जर्जर व्यवस्था के कारण हुए क्रूर अत्याचार के लिए उस
बेटी से माफी के दौ शब्द तक नहीं कह पाती है,यह सरकार देश को यह भी आश्वासन नहीं
दे पाती है कि आगे से हमारी व्यवस्था में ठोस परिवर्तन किये जायेंगे और किसी भी बेटी
को बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का सामना नहीं करना पडेगा।
यदि यह बेटी किसी बड़े नेता की होती तो क्या संसद चुप बैठ जाती ?क्या जो बेटे न्याय
की गुहार लगाने सडकों पर उतरे वो यदि किसी नेता के होते और उस पर पुलिस अमानवीय
तरीके से लाठियाँ बरसाती तो नेता चुपचाप सहन कर लेते? आम जनता को कह देते हैं कि
सब्र रखिये कानून अपना काम कर रहा है मगर यह वाकया किसी विशिष्ट के घर पर घटता
तो न्याय की परिभाषा तुरंत नहीं बदल जाती? मगर आम जनता की किसे पड़ी है? वह तो
वोट दे दे और पाँच साल के लिए सहती रहे।
मुझे गर्व होता है उन युवाओं पर जो अपरिचित बेटी,बहन के लिए सरकार से टकरा रहे हैं
मुझे गर्व है उन बहनों पर जो लाठियां खाकर भी इस संग्राम में खड़ी है।मुझे गर्व है उन वृद्ध
पुज्यनीयों पर जो भयंकर सर्दी में भी कड़े कानून के लिए ठिठुर रहे हैं ,मगर हमारे सिस्टम
का जर्जरित ढाँचा देश का सिर झुक देता है।
जो नेता देश की अस्मिता की कसम खाते हैं वे देश की बेटियों को त्वरित कानून देने में भी
ढील कर रहे हैं,यह देश का पहला बलात्कार नहीं है ,जनता सहन करती आई है इसलिए और
सहन करती रहे क्या यही व्यवस्था बची रह जायेगी?
जब भी कोई जन आन्दोलन देश करता है चाहे वह भ्रष्टाचार के खिलाफ हो या लच्चर व्यवस्था
के खिलाफ ,सरकार अपनी कमी को सुधारने की जगह जनता पर ही दमन कर देती है। इस
नजरिये को बदलना पड़ेगा क्योंकि आज का युवा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बन रहा है।
No comments:
Post a Comment