29.12.12

कहाँ आकर खड़े हो गये हम ?


कहाँ आकर खड़े हो गये हम  ?

पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करते-करते हम कहाँ आ गये ? हमने अपनी संस्कृति छोड़ी
अपनी सभ्यता छोड़ी अपने सदग्रंथ छोड़े अपना परिवेश छोड़ा।हम बिना विचार किये छोड़ते
गये अपने आचार-विचार को अपनी वेशभूषा और संस्कृति को और अंधे होकर खोटे - खरे,बुरे-
भले का विचार किये बिना ही नए विचारों के नाम पर पाश्चात्य सभ्यता को अपनाते गये ,
नतीजा हम दिशा विहीन हो गये हैं और आज राष्ट्र अनेक समस्याओं से ग्रसित हो गया है।

              हमने अपनी आश्रम जीवन प्रणाली को छोड़ा अपनी गुरुकुल प्रणाली को छोड़ा ,
उसकी जगह सह -शिक्षा को अपनाया ,मूल्यांकन कीजिये कि हमने क्या अर्जित किया।
हमारे युवा जो पहले वीर्यवान, उर्जावान, नैतिक, सुसंस्कृत, विद्वान,सदाचारी और सद्
व्यवहारी थे अब उनमे सभी सदगुणों की कमी झलकती है ,क्यों तथा इसके लिए
जिम्मेदार कौन ?

          ब्रह्मचर्य  आश्रम में 25 वर्ष की आयु तक रह कर विद्या अर्जन करना तथा सुयोग्य
नागरिक बनना होता था।इस काल में गुरु अपने शिष्यों को सुयोग्य नागरिक बनाता था,
विद्वान व्यक्ति बनाता था यानी गुरु अबोध बालक का सृजन करता था मगर वह व्यवस्था
लोप होने के बाद स्कुली शिक्षा पद्धति आई और उसके साथ ही सह शिक्षा।क्या यह शिक्षा
पद्धति हमारी संस्कृति का गौरव बढ़ा पायी है ?

            हम कहते हैं कि ये तो आदम के जमाने की सोच है?इस युग में यह संभव नहीं।आज
 विश्व कहाँ पहुँच गया है!विज्ञान कितना आगे निकल गया है!! ये सब तर्क हम दे सकते हैं
मगर मुद्दा यह है कि फिर सामाजिक समस्याएँ बढ़ी क्यों ? यदि हम आधुनिक हो गए हैं
तो हमारे समक्ष समस्यायें नहीं होनी चाहिए थी ?

            सह शिक्षा ने नारी का क्या भला किया ? सह शिक्षा ने इस देश की संस्कृति का क्या
भला किया ?हमे तुलनात्मक विचार करना ही पड़ेगा।

          हमने अपना परिवेश छोड़ा,क्या हमारे पूर्वज अपने परिवेश से असभ्य लगते थे ?
विवेकानंद और गांधी के चरित्र को जानने वाले,तिलक और पटेल को समझने वाले  इस पर
क्या तर्क देंगे ? जिस देश में युवा नारी शक्ति और लक्ष्मी के रूप में पूजीत है उस देश की नारी
पर आज जुल्म क्यों हो रहे हैं ? आज देश की नारी का स्वतंत्रता के नाम पर जितना शोषण
हो रहा है उतना इस देश की नारी का कभी नहीं हुआ था।वैदिक नारी का परिवेश और ज्ञान
आज से अच्छा था।वैदिक नारी की बोद्धिक योग्यता और व्यवहार ऊँचे दर्जे का था। भारतीय
परिवेश सोम्य था।पहनावा विकृतियों को कम कर देता है ,क्या यह सही नहीं है ?

        हर कोई कह रहा है कि समय बदल गया है,नैतिकता का ह्रास हो रहा है। बात सही है
परन्तु इसके लिए जबाबदार कौन ? इसके लिए हम सब कहीं ना कहीं जबाबदार हैं। विकृतियों
को रोकने के लिए कानून ही कठोर हो ,यह पूर्ण हल नहीं है।कानून कठोर हो और उसका पालन
भी पूर्ण रूप से शासन करवाए मगर हम भी नैतिक बने ,सद व्यवहारी बने,सौम्य परिधान
अपनाएँ, अपनी संस्कृति के अनुसार आचार विचार करे।सही और गलत परम्पराओं पर गहन
विचार करे आधुनिक बनने के लिये विचारों का स्तर ऊँचा होना चाहिए।

      हमारे चित्रपट,संचार साधन जो फूहड़ता दिखा रहे हैं उन्हें भी सोचना होगा क्योंकि वो जो
दिखाते हैं उसका असर अपरोक्ष रूप से करोड़ों लोगों पर पड़ता है।नारी देह को केन्द्रित कर
विज्ञापन दिखा कर व्यवसाय बढ़ाना या सिनेमा में फूहड़ दृश्य दिखाना क्या समस्याओं को
अनजाने में ही बढ़ावा देना नहीं है?

    सभ्य समाज के निर्माण के लिए कानून व्यवस्था, नागरिक,आध्यात्म,संस्कृति,विज्ञान
कला सभी क्षेत्र को एक मंच पर आकर सोचना होगा,तभी नए समाज का निर्माण होगा ।          

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