लोकसभा में एफडीआई
पर जरूरी संख्याबल मिलने पर सरकार फूली नहीं समा रही है...और इसे आर्थिक सुधारों
की जीत बता रही है...लेकिन एफडीआई पर दो दिनों तक बहस में सामने आए एफडीआई के सच
और झूठ के बाद वोटिंग से ऐन पहले बसपा और सपा सांसदों का सदन से वॉक आउट करना अपने
आप में पूरी कहानी कह गया कि इसकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। भाजपा और उसके
घटक दल, लेफ्ट और टीएमसी का विरोध बहस के बाद भी वोटिंग में दिखा भी लेकिन मुलायम
सिंह और बसपा सांसद दारा सिंह संसद में तो एफडीआई पर सरकार को कोसते हुए इसके
खिलाफ खूब आग उगलते दिखाई दिए...लेकिन वोटिंग के वक्त सदन से गैर हाजिर रहकर सपा
और बसपा का दोहरा चरित्र सामने आ गया। ये उजागर करता है कि एफडीआई का विरोध करते
हुए किसानों और व्यापारियों का हिमायती होने के दावे करने वाली सपा और बसपा के
दावों में कितना दम है। अब वोटिंग से गैर हाजिर रहने का फैसला सीबीआई का डर था या
कुछ और इसे तो मुलायम और मायावती ही बेहतर बता सकते थे...लेकिन समझने वाले समझ
गए कि माया और मुलायम हैं क्या चीज। एफडीआई को तो हर हाल में लागू करने की तो
सरकार बहस औऱ वोटिंग से पहले ही ठान चुकी थी...लेकिन एफडीआई पर लोकसभा में बहस का
इतना फायदा जरूर हुआ कि दो दिनों तक देश की जनता ने हर राजनीतिक दल का असली चेहरा
देखा...और इसको उजागर करने वाले ये लोग खुद ही थे। सरकार के तर्कों को झुठलाते हुए
जहां समूचे विपक्ष सहित सरकार के ही कुछ कथित सहयोगियों ने सरकार की पोल खोलने में
कोई कसर नहीं छोड़ी तो एफडीआई के फैसले को सही ठहराने में सरकार और उसके परम
सहयोगी दलों ने कोई कसर नहीं छोड़ी और एफडीआई पर दोहरी नीति अपनाने का आरोप लगाते
हुए विपक्ष की नीयत पर ही सवाल खड़े कर दिए। सपा और बसपा ने रही सही कसर पूरी कर
दी और देश की जनता को बता दिया कि दोगलापन क्या होता है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि
लोकसभा में एफडीआई पर जीत की खुशी क्या सरकार के चेहरे पर राज्यसभा में भी रह
पाएगी ? ये सवाल इसलिए भी
खड़ा होता है क्योंकि राज्यसभा का गणित फिलहाल सरकार के पक्ष में नहीं दिखाई दे
रहा और न ही राज्यसभा में मुलायम और माया की कृपा अगर सरकार पर बरस गई तो भी सरकार
को तार पाएगी। वैसे इसके जवाब के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा...क्योंकि अब
बारी राज्यसभा में एफडीई पर बहस और वोटिंग की है।
deepaktiwari555@gmail.com
dono hi dogle hai
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