30.12.12

hum mein gam hai

कुछ झूठी कसमें खायेंगे , चीखेंगे , चिल्लायेंगे ;
फिर धीरे -से भेड़ -भेडिये  आपस में मिल जायेंगे।

किन्तु अभी हालात अलग हैं, हम में गम है , गुस्सा है ,
जैसी है आलाप हवा में , वैसा गीत सुनायेंगे।

कोहरे में मिल गया धुंआ , आँखों में शबनम उतर गयी ,
मानवता के महामूल्य  कब तक आलाव जलाएंगे ?

चीरहरण पर कुरुक्षेत्र जिसके भू पर हो आया था ,
भारत का दिल है दिल्ली , अब कहने में शर्मायेंगे।

आनेवाले आ स्वागत है , किन्तु नहीं हम कह सकते ,
जानेवाले के जख्मों को कबतक हम सहलायेंगे।




6 comments:

  1. गुस्सा नहीं हर मनुष्य के मन में बदलने की क्रांति चाहिये !

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  2. बहुत खूब...एकदम सामयिक ग़ज़ल...

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  3. चीरहरण पर कुरुक्षेत्र जिसके भू पर हो आया था ,
    भारत का दिल है दिल्ली , अब कहने में शर्मायेंगे।

    आनेवाले आ स्वागत है , किन्तु नहीं हम कह सकते ,
    जानेवाले के जख्मों को कबतक हम सहलायेंगे।

    BEAUTIFUL LINES WITH EMOTIONS AND FEELINGS

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  4. प्रासंगिक तंज लिए धार दार प्रस्तुति .

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  5. galat samajhe . hawa mein aakrosh ewam dukh hai . main ismein aawaam ke ssath hoon par yahee kaafe naheen .

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  6. Dhanyaawaad!sumanji,vanabhattji,ramakantji,sharmaji aur bhutraji. nava varsh kee shubhakaamanaayen.

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