बुद्धिमान कौन ? क्या कहते हैं शास्त्र ...........
जिसे विद्याध्ययन,साहित्य,संगीत,कला,सांसारिक वैभव,सुखों के भोग,धन-संपदा,
सुन्दर वस्तुएं,सुन्दर स्त्री,और सुख-दु:ख का अनुभव -इन सब में रूचि न हो वह या
तो सिद्ध महापुरुष है या फिर मानव रूप में मूढ़ पशु है।सामान्य पुरुष इनसे अवश्य
आकर्षित होता है पर जो सामान्य रूचि लेता है वह बुद्धिमान है।
जो प्राप्त वस्तु से संतुष्ट रहता है और अप्राप्त के लिए दुखी नहीं रहता ,जिस हाल में हो
उसी में प्रसन्न रहता है और सब कुछ ईश्वर की इच्छा मान कर राजी रहता है वह
व्यक्ति दुख से बचा रहता है और जो व्यक्ति दुख से बचना जानता है वह बुद्धिमान है।
जो बात के मर्म को तुरन्त समझ लेता है,सुनने योग्य बातों को एकाग्रचित हो सुनता
हैऔर व्यर्थ की बातों में रूचि नहीं रखता,खूब सोच-विचार करके ही कोई काम शुरू
करता है और हाथ में लिए काम को अधूरा नहीं छोड़ता और बिना पूछे किसी को
सलाह नहीं देता,वही बुद्धिमान है।
जो नष्ट हुयी वस्तु के लिए शोक नहीं करता,जो विपत्ति पड़ने पर धैर्य और विवेक का
साथ नहीं छोड़ता,जो पराई वस्तु का लालच नहीं करता और सदा शुभ कर्म करके
अपने पुरुषार्थ से ही कोई वस्तु प्राप्त करता है और जो सफल होकर इतराता नहीं,वही
बुद्धिमान है।
जो यश और आदर सम्मान मिलने पर अभिमानी नहीं होता,आदर न मिलने पर
अप्रसन्न नहीं होता,जो अपनी विद्या का अहंकार नहीं करता और अपने धन का
दुरूपयोग नहीं करता,जो गहन गंभीर और उदार स्वभाव रखता है और किसी के प्रति
भी वैर भाव नहीं रखता ,वही बुद्धिमान है।
जो अपने द्वारा किये गए उपकार और दूसरों के द्वारा अपने प्रति किये गए अपकार को
याद नहीं रखता , जो अपनी बुराईयों और दूसरों की भलाइयों को भूलता नहीं ,जिसके
साथ रहने से किसी का अहित नहीं होता बल्कि भला ही होता है और जो किसी भी
समस्या को ठीक ढंग से सुलझा लेता है,वही बुद्धिमान है।
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