26.1.13

राष्ट्रपति का संबोधन- हिंदी और अफजल गुरु गायब !


26 जनवरी की पूर्व संध्या पर डीडी न्यूज पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का देश के नाम संबोधन सुना। राष्ट्रपति ने पहले अंग्रेजी में देश को संबोधित किया तो उसके बाद हिंदी में संबोधन की जानकारी टीवी स्क्रीन पर फ्लैश हुई तो पता चला कि प्रणव मुखर्जी साहब हिंदी में भी बोलते हैं लेकिन दुख के साथ ही हैरानी तब हुई जब देखा कि राष्ट्रपति जी अंग्रेजी में ही बोल रहे हैं और दाहिनी तरफ नीचे एक छोटी विंडो में डीडी न्यूज का एक एंकर उसका हिंदी में अनुवाद कर रहा था। देश है हिदुंस्तान लेकिन देश के राष्ट्रपति आम दिन तो छोड़िए गणतंत्र दिवस पर भी हिंदी बोलने से परहेज करते दिखाई दिए।
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी औऱ तब से ही हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। दुनिया में करीब 60 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं और भारत में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सरकारी दफ्तरों में भी हिंदी को ही तरजीह देने की बातें की जाती हैं लेकिन जब देश का प्रथम नागरिक गणतंत्र दिवस पर 121 करोड़ भारतीयों के सामने हिंदी को तिलांजलि देकर अंग्रेजी को तरजीह देते हुए दिखाई देता है तो दुख होना लाजिमी है।
चलिए अंग्रेजी के ही सही राष्ट्रपति के संबोधन की अगर बात करें तो वैसे तो ये संबोधन अपने आप में सब कुछ समेटे हुए था लेकिन पूरा सुनने के बाद यहां भी एक उम्मीद धराशायी होती दिखाई दी। राष्ट्रपति ने 1947 से लेकर 2013 तक की बात की। दिल्ली गैंगरेप की घटना पर चिंता जतायी तो सीमा पर पाकिस्तान की बर्बरता पर दुख जताते हुए पाकिस्तान को चेताया भी। प्रणव मुखर्जी ने युवाओं की चिंता की तो साथ ही आने वाले 10 सालों में पिछले 60 सालों से ज्यादा तरक्की और बदलाव की उम्मीद भी जतायी।
राष्ट्रपति ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर चिंता जताते हुए लोगों को नया सवेरा होने का भरोसा तो दिलाया लेकिन बड़ा अच्छा लगता अगर राष्ट्रपति अपने भाषण की शुरूआत संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु की दया याचिका खारिज करने की बात के साथ करते। चूंकि 2005 से अफजल की दया याचिका गृह मंत्रालय से राष्ट्रपति भवन के बीच घूम रही है ऐसे में राष्ट्रपति अपने दफ्तर से एक फाइल और देश से एक आतंकी को कम करने की शुरुआत करते तो अच्छा लगता लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ..!
राष्ट्रपति ने आतंकवाद से लेकर नक्सलवाद तक पर चिंता जतायी लेकिन प्रणव मुखर्जी संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु के नाम पर आतंक के अंत का पहला अध्याय गणतंत्र दिवस पर अपने हाथों से लिखते तो शायद देशवासियों की खुशी दोगुनी हो जाती लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ।
राष्ट्रपति ने भारत की चुप्पी को उसकी कमजोरी न समझने की चेतावनी तो पाकिस्तान को दी लेकिन लोकतंत्र के मंदिर पर हमला करने वाले की फांसी का रास्ता साफ करने के साथ प्रणव मुखर्जी पाकिस्तान को चेतावनी देते तो ये ज्यादा असरदार होती लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ।
64वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के संबोधन ने देशवासियों की उम्मीदों को नए पंख लगाने की कोशिश तो की लेकिन ये कोशिश वास्तव में कितनी साकार हो पाएगी ये तो वक्त ही बताएगा।
उम्मीद करते हैं आने वाली 15 अगस्त पर राष्ट्रपति का संबोधिन देश को हिंदी में सुनने को मिलेगा और अफजल गुरु की फांसी का रास्ता साफ होने का जिक्र भी राष्ट्रपति के संबोधन में होगा...इसी उम्मीद के साथ आप सभी को 64वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। जय हिंद।

deepaktiwari555@gmail.com

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