17.1.13

बार-बार आना चाहूंगा तुम्हारे पास -रायपुर


आज जब हर व्यक्ति छोटे-छोटे स्वार्थों के लिये दूसरों को छोडिये अपने निकटतम आत्मीय जनों को छलने से ना तो चूकता है ना हिचकता है तब गिरीश मिश्र जैसे लोगों की उपस्थिति नैकट्य रिश्तों में विश्वास जगाती है।कुछ कवि-सम्मेलनीय प्रस्तावों को  निरस्त कर जब मैने रायपुर 'संगवारी पोस्ट अवार्ड' एवं बबनप्रसाद मिश्र हीरक जयंती समारोह 'में जाने का निर्णय किया तो वह कोई अदृश्य शक्ति ही थी जिसने मुझे प्रेरित किया वरना इन दिनों कदहीन ओछे लोगों को हर साहित्यक और सांस्कृतिक मंच पर काबिज़ देख ऐसे कर्यक्रमों से किनारा करना ही श्रेयस्कर समझता हूं।परंतु अब मैं कह सकता हूं कि यदि मैं इस कार्यक्रम में नहीं जाता तो यह मेरे जीवन की भयंकर भूलों में से एक होती ।

१६ जनवरी को पं० सुरेश नीरव और मै जब इंडिगो की फ्लाइट से रायपुर के 'विवेकानंद एअरपोर्ट' पर उतरे और हमने भाई गिरीश मिश्र को अपनी सदाबहार काले चश्में और सफेद शर्ट  पैंट में हाथ हिलाते देखा तो लगा कोई अपना हमारे इंतजार में है १५-२० मिनट में हम पहुंच गये १० ,रवि नगर रायपुर ।मन में विचार आया कि ये १० न० कुछ चमत्कारी तो अवश्य है।१० जनपथ,१०डाउनिंग स्ट्रीट और १० रविनगर ,रायपुर।आदरणीय बबनप्रसाद मिश्र के दिव्य -भव्य व्यक्तित्व के समक्ष नतमस्तक होने का मन करता है और जब भाई गिरीश मिश्र ने अपनी सद्यप्रकाशित पुस्तक 'रमातारा'अपने पिताश्री बबनप्रसाद मिश्र को भेंट की तो पिता-पुत्र का भावुक मिलन वहां उपस्थित हर सह्रदय की आंखें नम कर गया।
होटल सतलज में दिन में विश्राम कर सायं पांच बजे जब हम (मैं और पं० सुरेश नीरव) वृंदावन गार्डन सभागार में पहुंचे तो श्रोताओं से खचाखच भरा देख सुखद आश्चर्य हुआ छत्तीसगढ की राजधानी की सांस्कृतिक सज़गता को देख मैं देश की राजधानी की सांस्कृतिक विपन्नता के बारे सोच स्वयं को कहीं हीन समझने लगा था।इक तरफ मंच के नीचे रायपुर के प्रबुद्ध पत्रकार,लेखक और कवि(विश्वजीत मित्र,गिरीश पंकज आदि ) शामिल थे तो दूसरी ओर मंच पर श्री बबनप्रसाद मिश्र,विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक,स्वास्थ्य मंत्री चंद्रशेखर साहू,और पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल मंचासीन थे।
स्वागत की औपचारिकता ओं के बाद 'संगवारी पोस्ट अवार्ड' से सम्मानित कल्पेश पटेल ,सुधीर तंबोली आज़ाद और अमरजीत सिंह छाबडा का शाल ,श्रीफल और प्रतीक चिह्न द्वारा विधानसभा अध्यक्ष एवं समस्त बुधएजीवियों ने सम्मान किया  तो मुझे लगा प्रकारांतर से यह मेरा और गिरीश मिश्र का सम्मान है जो सोशल मीडिया में भाषायी और वैचारिक शुद्धता के मिशन को लेकर सोशल साइट्स पर सक्रिय हैं।
सर्वप्रथम मुझे ही अपना वक्तव्य देने के लिये आमंत्रित किया गया ।मैं कुछ व्यक्त या अभिव्यक्त कर सका या नही यह तो प्रबुद्ध श्रोता और सजग बुद्धीजीवी या राजनेता ही बता सकते हैं परंतु हर किसी ने जिस तरह बार-बार मुझे अपनी तालियों से प्रशंसा से अपने स्नेह की गंगा से सराबोर किया वह अद्भुत था।अपने वकत्वय के अंतिम चरण में जब मैं कविता के माध्यम से अपना परिचय दे रहा था तभी डा० चंद्रप्रकाश द्विवेदी (चाणक्य के निर्माता,निर्देशक और नायक) ने प्रवेश किया ।
मेरे संबोधन के बाद पं० सुरेश नीरव ने अपने अपने विद्वता पूर्ण संबोधन से शब्दों के नये अर्थ ही प्रदान कर दिये।पं० सुरेश नीरव के संबोधन के पश्चात ,डा० द्वेदी का वकत्वय जब मुझे संबोधित कर ही प्रारंभ हुआ तो मुझे लगा शायद मैं कुछ सार्थक कह गया हूं।आधुनिकता और परंपरा को विश्लेषित करते डा० चंद्रप्रकाश द्वेदी ने शब्दों को संपन्न किया।
भाई गिरीश मिश्र का अपने पिताश्री के जीवन पर आधारित 'पावरप्वाइंट प्रजेंटेशन',मधू शुक्ला का अद्भुत संचालन और विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक का अध्यक्षीय वक्तव्य सब कुछ इतना संतुलित ,सारगर्भित और सबसे बढकर ५ घंटे तक चले इस अद्भुत कार्यक्रम में सभागार का अंत तक भरा रहना,सचमुच अद्भुत  है बबनप्रसाद मिश्र का व्यक्तित्व--अनुकरणीय है गिरीश मिश्र क पितृ भक्ति और समाज को संदेश और संस्कार देते रायपुर( छत्तीसगढ ) के लोग जो साहित्यकारों को इतना मान-सम्मान देते हैं।बार-बार आना चाहूंगा तुम्हारे पास -रायपुर।थैंक्स--गिरीश भाई,थैंक्स आदरणीय बबन जी।

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