7.2.13

2014- राम मंदिर, बाबरी विध्वंस और हिंदू आतंकवाद !




नेताओं का न कोई रूप होता है और न ही रंग...ये समय के साथ परिस्थितियों के अनुरूप ढ़लते चले जाते हैं। ये हवा और पानी के समान है जहां जितनी जगह मिले उसी आकार में खुद को ढ़ाल लेते हैं। हिंदू सामने होते हैं तो राम मंदिर की बात करते हैं...मुस्लिम सामने होते हैं तो बाबरी विध्वंस की बात और अगर सिख सामने होते हैं तो दिलाते हैं 1984 की याद..! (सभी नेता नहीं)।
ये किसी का हमदर्द बनने की कोशिश कर उसे साधने का कोई मौका नहीं चूकते...ये बात अलग है कि काम हो जाने पर मुंह फेरने में भी देर नहीं करते...इन्हें बस मौका मिलना चाहिए..! (सभी नेता नहीं)।
राजनीति और नेताओं का सालों पुराना इतिहास भी इसकी गवाही देता है तो देश में राजनीति का वर्तमान परिदृश्य भी यही बयां कर रहा है..!
2014 का चुनाव सामने है...कुछ समय पहले तक यूपीए सरकार विकास के नाम पर जनता के हित में सरकार की योजनाओं के नाम पर जनता के बीच जाने की बात कर रही थी तो भाजपा यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार, घोटालों, महंगाई और आर्थिक मोर्चे पर सरकार के फैसलों पर सवाल खड़ा करते हुए सत्ता में वापसी का दम भर रही थी।
सीमा पर भारतीय सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सैनिकों की बर्बरता के बाद एकाएक स्थितियां बदलने लगती हैं...सरकार पाकिस्तान को तो माकूल जवाब नहीं दे पाई लेकिन हमारे देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जयपुर में कांग्रेस पार्टी के चिंतन शिविर में जबरदस्त चिंतन के बाद एक नए शब्द को ईजाद जरूर कर दिया...हिंदू आतंकवाद। न तो ये शिंदे साहब की जुबान की फिसलन थी और न ही ये सिर्फ एक शब्द है..! दरअसल इस शब्द के पीछे का चिंतन था आतंकवाद को एक धर्म और जाति से जोडकर दूसरे धर्म और जाति के लोगों को खुश कर उनके वोट हासिल करने की ओर एक कदम..!
किसी भी धर्म या जाति के लोगों के बहुसंख्य वोट हासिल करने का इससे बढ़िया तरीका शायद हो भी नहीं सकता...ये तरीका भी तो इन्हीं नेताओं ने ही ईजाद किया है..!
इसका रिएक्शन भी त्वरित हुआ और शिंदे के खिलाफ हल्लाबोल के बहाने शुरु हो गया फिर से धर्म और जाति के नाम पर बहुसंख्य वोटों को साधने का काम..!
इस बीच इस तरह के कई और घटनाक्रमों के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह कुंभनगरी पहुंचते हैं तो एकाएक महाकुंभ की धरती से राम नाम की गूंज सुनाई देती है। जाहिर है दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आस्था के सागर से राम नाम की गूंज 2014 से पहले बहुसंख्यकों को साधने का शुरुआती कदम है। इसके बीच कांग्रेस नेता शकील अहमद गुजरात के गोधरा के बहाने नरेन्द्र मोदी पर नमक खाकर गुजरात के खून का आरोप लगाते हुए बहुसंख्य लोगों के जख्मों को हरा करते हुए अपना काम कर जाते हैं और उन्हें 2014 से पहले सोचने के लिए दे जाते हैं एक वजह..!
चुनाव की तारीख करीब आते-आते राजनीतिक दलों के एजेंडे से भ्रष्टाचार, घोटाले, महंगाई और जनता से जुड़े विकास के तमाम मुद्दे धर्म और जाति की राजनीति की गर्माहट में भाप की तरह उड़ने लगे हैं और शुरु हो गया है बहुसंख्य वोटों के लिए लोगों की याददाश्त को नफरत की बर्फ में जमाने का काम..!
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या एक बार फिर से जाति और धर्म की राजनीतिभ्रष्टाचार, घोटाले, महंगाई और जनता से जुड़े विकास के तमाम मुद्दों पर कहीं भारी तो नहीं पड़ जाएगी..?

deepaktiwari555@gmail.com

No comments:

Post a Comment