इसे विडम्बना कहें या दुर्भाग्य
इटली की अदालत ने कुछ दिनों पहले वहाँ के वैज्ञानिकों को दोषी इसलिए ठहराया कि
वे भूकंप की सही जानकारी सही समय पर देने में असमर्थ रहे थे।यह एक महत्वपूर्ण
बात थी लेकिन हमने इससे क्या सीखा ?
आतंक तो अमेरिका को भी झेलना पड़ा था लेकिन उस हादसे के बाद उन्होंने
मुख्य आतंकी को कैसे समाप्त किया इसे दुनिया ने देखा मगर हमने क्या सीखा ?
हम उस देश में रहते हैं जहाँ के नेता आतंक को किस तरह से समाप्त करेंगे
इस पर जोश नहीं दिखाते हैं उनका जोश आतंक के रँग पर दिखता है,आतंक वाद पर
भी वोट की तिगड़म में ऊर्जा नष्ट करते हैं हमारे नेता!! बहुत दुखद ..!!
इस देश में बम्ब विस्फोट होते हैं लेकिन हम कुछ नहीं कर पाते ,VIP सुरक्षा पर
पूरा ध्यान है चाहे आम भारतीय के लिए सुरक्षा व्यवस्था का ढाँचा खंडहर हो गया हो।
आज तक आतंकवाद से लड़ने में नाकामयाब रहे व्यवस्थापकों पर,ऑफिसरो पर
कोई दण्ड नहीं हुआ,ना ही उन्हें इस तरह की घटना को रोक पाने के लिए विफल रहने
पर इटली की तरह जबाबदेह ठहराया गया,घटना के घटित हो जाने के बाद भाग दौड़
होती है दोष का ठीकरा किसी न किसी पर फोड़ दिया जाता है और जिन निर्दोष नागरिकों
का लहू सड़कों पर बहा उन्हें कुछ रुपयों से तौल दिया जाता है और देश के सामने कसमे
खायी जाती है वादे किये जाते हैं और फिर ढाक के तीन पात।देश में आतंक मचाने वालों
को "श्री" "साहब" का अलंकार देकर वोट की राजनीती में कूद पड़ते हैं,यह है हमारी राष्ट्र
भक्ति की वर्तमान मिसाल ...!!
इस देश के राजनेता आतंक को रँग से जोड़कर क्यों देखते हैं ?क्या सन्देश देना
चाहते हैं भारतीयों को ..? आतंक ना तो भगवा होता है और ना ही हरा ना सफेद ,हाँ
आतंक का परिणाम जरुर सुर्ख लाल होता है जो बेगुनाह निर्दोष भारतीयों के खून जैसा
सडको पर बिखरा दीखता है।
आतंक वाद के शिकार भारतीयों के बिखरे खून को देखने के बाद क्या कोई बता
पायेगा कि यह हिन्दू का खून का रंग है ,यह मुस्लिम या ईसाई के खून का .......
इस देश ने राजनैतिक कारणों से कई बार जनता द्वारा चुनी हुई राज्य सरकारे गिरती
देखी है,अधिकारों का इस्तेमाल देखा है मगर एक भी बार आतंकवाद से लड़ने में विफल
रहने के कारण राज्य सरकारे गिरती हुयी नहीं देखी है एक भी बार नैतिक जबाबदारी इस
विषय पर स्वीकार करते हुये किसी नेता का पद त्याग देखा है ........
इस देश के निर्दोष नागरिकों ने आतंकवाद के कारण करुण मौतें और क्रन्दन देखा है
आतंक से निपटने की खोखली कसमे देखी है,मुआवज़ा बंटते देखा है,एक दुसरे पर दोषारोपण
देखा है मगर आज तक दृढ़ संकल्प नहीं देखा।इसे विडम्बना कहें या दुर्भाग्य .....
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