सेक्स शिक्षा अच्छी, सूर्य नमस्कार बुरा?-ब्रज की दुनिया
मित्रों, कुछ चीजें इस धराधाम पर आज भी सिर्फ भारत में ही संभव है। जैसे
हमारे भारत में ही अपेक्षाकृत एक बेकार-सी रचना जन गण मन धर्मनिरपेक्ष हो
सकती है और स्वतंत्रता आंदोलन में फाँसी के फंदे को हँसकर स्वयं गले में
पहन लेनेवाले शहीदों के गले का कंठहार जो दुनिया का उत्कृष्टतम मातृभूमि
वंदना-गीत भी है सांप्रदायिक हो जाता है। धर्मनिरपेक्षता की किताबी
परिभाषाओं के बारे में हमारे देश में इस समय बातें करना ही बेमानी है। कथित
धर्मनिरपेक्षतावादियों के अनुसार तो जो चीज मुसलमानों को पसंद है बस वही
धर्मनिरपेक्ष है और जो उनको स्वीकार्य नहीं है बिना सोंच-विचार के वह
सांप्रदायिक है।
मित्रों,पिछले दिनों हमारे देख के सांस्कृतिक मंच पर दो
महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं। पहली घटना थी प्रखर संन्यासी स्वामी विवेकानंद
की 150वीं सालगिरह के उपलक्ष्य में देशभर के स्कूलों में सूर्य नमस्कार का
सामूहिक आयोजन और दूसरी घटना थी भारत सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री
एम.एल. पल्लम राजू द्वारा इस बात की घोषणा का किया जाना कि भारत के स्कूलों
में सेक्स शिक्षा दी जाएगी। पहली घटना को तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों
ने सांप्रदायिक मान लिया और खूब हंगामा किया जबकि दूसरी घटना के विरोध में
उनके बीच से कहीं से कोई स्वर नहीं उठा। इसी तरह एक समय बाबा रामदेव के योग
को कुछ देशी-विदेशी मुस्लिम उलेमाओं ने सांप्रदायिक घोषित कर दिया था और
तब से ही बाबा रामदेव कई तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी नेताओं के लिए
अस्पृश्य से हो गए। चाहे आसन-प्राणायाम हो या सूर्य नमस्कार ये
व्यायाम-मात्र हैं और स्वास्थ्यवर्द्धक भी हैं। जैसे फल मंदिरों में चढ़ाए
जाएँ या मजारों पर वे एकसमान स्वास्थ्यवर्द्धक होते हैं वैसे ही इन
व्यायामों का अभ्यास चाहे कोई हिन्दू करे या मुसलमान या कोई और इनसे सिर्फ
स्वास्थ्य लाभ ही हो सकता है। समझ में नहीं आता कि कोई व्यायाम जो हिन्दुओं
के लिए लाभदाय् हैं मुसलमानों के लिए कैसे हानिकारक हो जाएगा? क्या सिर्फ
इसलिए क्योंकि ये दुनिया को हिन्दू-सनातन धर्म की अमूल्य देन हैं? क्या
सूर्य नमस्कार को गैर-इस्लामिक कहनेवाले धर्मनिरपेक्षतावादी जन्मजात हिन्दू
या मुसलमान यह नहीं जानते कि धरती की उत्पत्ति और धरती पर जीवन का एकमात्र
कारण सूर्य है? यह धरती सूर्य से ही उत्पन्न हुई है और 5 अरब साल बाद फिर
से सूर्य में ही समाहित हो जाएगी। क्या वे इस तथ्य को नकार सकते हैं कि
सूर्य की रोशनी में विटामिन डी होती है जो हड्डियों के उत्तम स्वास्थ्य के
लिए काफी जरूरी होती हैं और जिसके बिना मानव-शरीर में कैल्शियम की भी कमी
हो जाती है? इस दुनिया का कोई भी व्यक्ति यदि सूर्य की रोशनी में सूर्य
नमस्कार करेगा तो निश्चित रूप से उसके तन-मन में निखार तो आएगा ही उसे
मुफ्त में इस जानलेवा महँगाई के युग मे विटामिन डी भी प्राप्त हो जाएगा।
मुझे तो लगता है कि मुसलमान नमाज पढ़ते समय जो अलग-अलग शारीरिक मुद्राएँ
धारण करते हैं उसका भी कोई-न-कोई संबंध योग से अवश्य है।
मित्रों,मुझे तो यह भी लगता है कि हमारी राजमाता-त्यागावतार
श्रीमती सोनिया गांधी भारत को जल्द-से-जल्द इटली बना देना चाहती हैं। तभी
तो उनके सभासद मंत्री कभी सेक्स-व्यापार को कानूनी बनाने का खटराग अलापने
लगते हैं तो कभी समलैंगिकता का समर्थन करते पाए जाते हैं। उन बेदिमागियों
को क्या यह भी पता नहीं है कि भारत विवेकानंद जैसे अखंड ब्रह्मचारियों का
देश रहा है न कि सेक्स करते समय जान से हाथ धोनेवाले कम-से-कम दो रोमन
कैथोलिक पोपों का? भारत के युवा पहले से ही अनियंत्रित और अश्लील
संचार-क्रांति के कारण अश्लीलता की गिरफ्त में हैं और अगर ऊपर से उनको नीम
पर करेला सेक्स-शिक्षा दी जाती है तो वह उनकी यौनाकांक्षा को उद्दीप्त ही
करेगी। कथित भगवान रजनीश भले ही संभोग से समाधि तक जैसी लाखों पुस्तकें लिख
डालें संभोग द्वारा समाधि की प्राप्ति पहले भी असंभव थी और आगे भी असंभव
ही रहनेवाली है। क्या आग में पेट्रोल डाल देने से आग बुझ जाती है जो संभोग
द्वारा समाधि की प्राप्ति हो जाएगी? आज अगर भारतीय समाज में यौन-हिंसा की
बेमौसमी आँधी उठ रही है तो उसका ईलाज ऐलोपैथिक पश्चिमी सेक्स-शिक्षा नहीं
हो सकती और न ही सबको एक-एक कंडोम बाँट देने से यह आँधी थम जाएगी। उसका
ईलाज दुनिया में सिर्फ भारत के पास ही है और इसके लिए हमें हिन्दू-मुसलमान
सहित सबको गीता-रामायण-उपनिषद के साथ यम और नियम का पाठ पढ़ाना पड़ेगा।
इंटरनेट पर उपलब्ध शराब के सेना को छोड़कर अन्यत्र क्रय-विक्रय को,अश्लील
फिल्मों,गीतों,वेबसाइटों और अश्लील सीडी के व्यापार को पूरी तरह से
प्रतिबंधित और दंडनीय करना पड़ेगा। सेक्स शिक्षा देना तो वही बात हो जाएगी
कि जो रोगी को भाये वही वैद्य फरमाये फिर चाहे रोगी मरे या जिए अपनी बला
से। अंत में हम परमादरणीय राजमाता जी से करबद्ध प्रार्थना करते हैं कि वे
कृपया भारत को भारत ही रहने दें। हो सके तो मुझ नाचीज के सुझावों पर अमल
करते हुए भारत को और भी पक्का भारत बनाएँ उसे कृपया इटलीनुमा इंडिया बनाने
की कोशिश न करें क्योंकि यह सिर्फ बर्बादी-ही-बर्बादी का मार्ग है। फिर भी
अगर वे सेक्स-शिक्षा देने पर आमादा ही हैं तो कृपया वे पहले उन जिलों और
प्रखंडों के स्कूलों में इसे लागू करने का कष्ट करें जहाँ मुसलमानों की
आबादी अन्य धर्मवालों से ज्यादा है। आखिर पता तो चले कि धर्मनिरपेक्षता के
लिटमस टेस्ट में सेक्स शिक्षा पास होती है या नहीं।
sex shiksha mein bhee kyaa vatsyaayan se pahale koi mil payegaa?
ReplyDeletepar vatsyaayan bhee sampradaayik maan liye jaa sakate hain .
good.
ReplyDeletedhanyawad pandey ji aur dwijendra ji>
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