6.2.13

उल्टा घड़ा


  उल्टा घड़ा  

एक संत प्रवचन दे रहे थे -

"यदि हम अपनी जाती के आधार पर जीना चाहते हैं तो मानव बने, हम मजहब के आधार
पर जीना चाहते हैं तो इंसान बने,हम राजनीती के आधार पर जीना चाहते हैं तो राम बने,
हम भाषा के आधार पर जीना चाहते हैं तो हिंदी बने, हम रंग के आधार पर जीना चाहते
हैं तो काला बने,यदि हम प्रेम के आधार पर जीना चाहते हैं तो स्नेही बने ....

उनके इस प्रवचन को सुन लोग बीच में ही उठ कर जाने लगे,बहुत कम लोग पंडाल में
बच गए।संत ने उनसे पूछा -काफी लोग मेरे प्रवचन को सुनकर चुपचाप चले गये मगर
आप लोग यहाँ क्यों बैठे रह गए ?

श्रोता में से एक ने जबाब दिया-"जो उठकर चले गए उनमे से कुछ देश को चलाने का दंभ
भरते हैं,कुछ समाज का निर्देशन कर रहे हैं,कुछ धर्म के मर्मग्य हैं जो अपनी सुविधा के
अनुसार धर्म की व्याख्या करते हैं,कुछ उनका अन्धानुकरण करने वाले खुद का मतलब
साधने वाले लोग हैं।

संत ने पूछा -...फिर आप यहाँ बैठे बचे हुये लोग कौन हैं।

श्रोता बोला -हम उलटे घड़े हैं जो कभी भरे नहीं जा सकतेहैं,हम सुनते हैं,समझते हैं परन्तु
अमल नहीं करते हैं।         

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