आज खुश तो बहुत होंगे उमर अब्दुल्ला-ब्रज की दुनिया
मित्रों,आप सब भी जानते हैं कि कल श्रीनगर में सीआरपीएफ के कैंप पर
आतंकवादी हमला हुआ जिसमें 5 जबान शहीद हो गए। श्रीनगर में पदस्थ रहे एक
अधिकारी के मुताबिक, बुधवार के हमले के वक्त 100 में से सिर्फ 10 जवानों के
पास हथियार थे। इन्होंने हिम्मत दिखाकर दो हमलावरों को मार गिराया। अगर
सभी के पास हथियार होते तो वे बाकी आतंकवादियों को भागने नहीं देते। मौत को
लेकर बल के अफसरों और जवानों में खासा रोष है। केंद्रीय गृह सचिव आर. के.
सिंह का भले ही कुछ भी कहें, लेकिन बल के आला ऑफिसरों का कहना है कि अगर
जम्मू-कश्मीर सरकार को सीआरपीएफ से ड्यूटी करानी है तो उसे अपना वह आदेश
वापस लेना होगा जिसमें जवानों से बिना हथियार काम करने को कहा गया है।
सीआरपीएफ के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, श्रीनगर के पुलिस महानिरीक्षक
ने पिछले महीने आदेश दिया था कि ड्यूटी के दौरान बल के जवान हथियार लेकर
नहीं चलेंगे। अगर 100 जवान स्थानीय पुलिस की मदद पर जाएंगे तो सिर्फ 10 के
पास ही हथियार होंगे। बाकी को लाठी-डंडे लेकर चलना होगा। इसके बाद से जवान
बिना हथियार ड्यूटी कर रहे है। फैसले के पीछे यह तर्क दिया गया था कि
स्थानीय लोगों को प्रदर्शन के दौरान ज्यादा नुकसान नहीं हो इसलिए सुरक्षा
बलों को हल्के हथियार के साथ तैनात होना चाहिए।
मित्रों,समझ
में नहीं आता कि जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला चाहते क्या
हैं? वे सीआरपीएफ की राज्य में तैनाती चाहते हैं या नहीं। अगर नहीं चाहते
तो उनको इस बारे में केन्द्र की अब तक की सबसे मजबूर सरकार से बात करनी
चाहिए और अगर चाहते हैं तो फिर उनके पुलिस महानिरीक्षक ने बल के जवानों के
हाथों में हथियारों की जगह डंडा क्यों पकड़ा दिया है?क्या कोई व्यक्ति
एके-47 का जवाब डंडे से दे सकता है? क्या ऐसी मुठभेड़ बराबरी की टक्कर
होगी? क्या इस तरह जवानों को बेमौत मरवा देने से आतंकवादियों का मनोबल
गिरता है और हमारे जवानों का मनोबल ऊँचा होता है?
मित्रों,ये वही उमर अब्दुल्ला हैं जो अभी कई दिन पहले विधानसभा में सुरक्षा
बलों के हाथों एक पत्थरबाज की मौत के बाद फूट-फूटकर रो रहे थे। तो क्या
अब्दुल्ला जी के लिए किसी असामाजिक तत्त्व या पत्थरबाज की जान ही जान होती
है और सीआरपीएफ के जवान उनके लिए भेड़-बकरी या गाजर-मूली की तरह हैं? क्या
इस हमले में मारे गए लोग आदमी नहीं थे और उनलोगों का कोई मानवाधिकार नहीं
था? क्या वे लोग किसी के बेटे,किसी की मांग का सिन्दूर और किसी बहन के भाई
नहीं थे? अगर ऐसा नहीं है तो फिर उनकी आँखें सिर्फ किसी पत्थरबाज या
आतंकवादी की मौत पर ही क्यों बरसती हैं? क्यों उनका दिल किसी सुरक्षा-बल के
जवान की हत्या पर भावुक नहीं होता? मुझे तो लगता है कि आज सीआरपीएफ के 5
जवानों की सामूहिक शहादत पर उमर अब्दुल्ला काफी खुश होंगे क्योंकि वे
प्रत्यक्षतः न सही परोक्ष रूप से तो ऐसा ही चाहते थे अन्यथा उनका पुलिस
महानिरीक्षक सीआरपीएफ के जवानों के आत्मरक्षा के अधिकार को नहीं छीनता।
मित्रों,श्री अब्दुल्ला काफी दिनों से जम्मू-कश्मीर से अफस्पा कानूर को
हटाने की मांग कर रहे हैं। उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि उनकी इस मांग का
उद्देश्य क्या है? क्या वे फिर से कश्मीर घाटी को बारूदी धुएँ और खून के
धब्बों से भर देना चाहते हैं? क्या वे सचमुच जम्मू-कश्मीर को भारत का
अभिन्न अंग मानते हैं? अगर ऐसा है तो फिर वे बार-बार भारत-विरोधी बयान
क्यों देते रहते हैं? क्यों ऐसा जताते रहते हैं कि वे भारत से अलग हैं और
भारत-सरकार उनके राज्य के साथ,उनके साथ अन्याय कर रही है?
मित्रों,आप क्या मानते हैं मुझे नहीं पता लेकिन मैं समझता हूँ कि कश्मीर
नाम की कुत्ते की दुम तब तक सीधी नहीं होने वाली है जब तक कि भारत के
संविधान में धारा 370 मौजूद है और जब तक जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा
प्राप्त है। यह विशेष राज्य का दर्जा ही है जो वहाँ के मुसलमानों को भारत
से अलग होने का अहसास देता है,हौसला देता है। केन्द्र में चाहे जिस पार्टी
की भी सरकार हो। वो चाहे सईद को मुख्यमंत्री रखे या अब्दुल्ला को इससे तब
तक कोई फर्क नहीं पड़नेवाला जब तक कि संविधान में यह आत्मघाती धारा मौजूद
है। मुख्यमंत्री चाहे सईद हों या अब्दुल्ला सबने भारत सरकार को धोखा दिया
है। उससे धन प्राप्त किया है और उसका दुरूपयोग किया है और आगे भी करते
रहेंगे। उनका दिल भारत के लिए नहीं धड़कता सिर्फ कश्मीरी मुसलमानों के लिए
धड़कता है, उनकी आँखें भारत के लिए नहीं बरसती सिर्फ कश्मीरी मुसलमानों के
लिए बरसती हैं और बरसती रहेंगी। आप ही बताईए क्या आपने कल से अब तक किसी
चैनल पर उमर अब्दुल्ला को सीआरपीएफ के जवानों की निर्मम और कायराना हत्या
पर रोते हुए देखा है?
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