16.3.13

कामसूत्र ने किया फेल..!


भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा रहा कामसूत्र हमेशा से ही चर्चित विषय रहा है। कामसूत्र के जिक्र पर जो भावना लोगों के मन में उद्धेलित होती है वो इसको गुपचुप तरीके से विस्तृत चर्चा का रूप देती दिखाई देती है। हालिया उदाहरण कामसूत्र 3डी फिल्म है जो निर्माण के दौर में ही सिर्फ अपने नाम के कारण ही दूसरी कई फिल्मों से कहीं ज्यादा चर्चित हो चुकी है..!
प्लेबॉय मैगजीन के कवर पेज पर नग्न तस्वीर देकर सनसनी फैलाने वाली शर्लिन चोपड़ा का नाम कामसूत्र फिल्म से जुड़ने से इस फिल्म की चर्चा और जोर पकड़ रही है। शायद इस फिल्म के नाम के कारण ही बड़ी संख्या में लोगों को इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार भी है..!
कामसूत्र फिल्म की इस चर्चा के बीच पटना आर्टस कॉलेज में कला के एक छात्र के असाइनमेंट ने फिलहाल एक नयी बहस को जन्म दे दिया है। दरअसल इस छात्र ने अपनी परीक्षा के अंतर्गत बतौर असाइनमेंट कामसूत्र से संबंधित दृश्यों की पेंटिंग बनाकर शिक्षिका के सामने पेश किया तो उसे फाइनल परीक्षा में फेल कर दिया गया।
जिस शिक्षिका के सामने छात्र ने बतौर असाइनमेंट कामसूत्र के दृश्यों की पेंटिंग को पेश किया उस शिक्षिका ने न सिर्फ छात्र को खरी खोटी सुनाई बल्कि पेंटिंग के दृश्यों में अश्लीलता होने का आधार देकर छात्र को फेल कर उसका पूरा साल बर्बाद कर दिया गया और साथ ही महिला शिक्षिका के सामने इस पेंटिंग को पेश करने पर इस घटना को यौन प्रताड़ना का मामला भी ठहराया गया। कॉलेज के शिक्षिक कामसूत्र के दृश्यों को कला से जोड़कर नहीं देखना चाहते थे जो छात्र की सोच से अलग था लिहाजा छात्र को इसकी सजा भगतनी पड़ी..!
यहां सवाल ये उठता है कि क्या कामसूत्र की पेंटिंग्स को कला से ना जोड़कर मात्र अश्लीलता से जोड़कर देखना सही है?
इसका जवाब एक बार फिर से व्यक्ति की सोच और मानसिकता में आकर ठहर जाता है। बेशक कामसूत्र भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है और खजुराहो की ऐतिहासिक गुफाओं में इसे बखूबी उकेरा गया है लेकिन जब जब कामसूत्र का जिक्र होता है जैसा कि आजकल कामसूत्र 3डी फिल्म चर्चा में है तो मैंने अपने आसपास इस चर्चा में ये पाया है कि कामसूत्र को कला से जोड़कर देखने वालों की संख्या न के बराबर है। जाहिर है ये हमारे समाज में संकुचित सोच को दर्शाता है और दर्शाता है इसके प्रति लोगों की मानसिकता को..! जो सिर्फ इस नाम के जिक्र पर अश्लीलता को ही अपने जेहन में उकेरती है न कि कला को..!  (जरूर पढ़ें-अबोध कन्याओं से यौन अपराध क्यों..?)
जहां तक बात है कि क्या हम संस्कृति का हवाला देकर नग्न और बोल्ड तस्वीरें शिक्षक के सामने पेश करें जैसा कि पटना आर्ट्स कॉलेज में कला के छात्र ने किया तो ये इस पर निर्भर करता है कि वाकई में उस छात्र की मानसिकता कैसी है और किस सोच के साथ उसने महिला शिक्षक के सामने अपने असाइनमेंट पेश किए। लेकिन जिस तरह इसे कॉलेज के शिक्षकों ने यौन प्रताड़ना का मामला भी ठहराया तो इसे इत्तेफाक रखने वाले लोग मेरी समझ में कम ही होंगे क्योंकि मेरा व्यक्तिगत ये मानना है कि छात्र का सीधे फेल कर देना और इसे यौन प्रताड़ना का मामला ठहराने से पहले शिक्षिका को छात्र की सोच और मानसिकता को समझना चाहिए था और कला के प्रति उसकी गंभीरता को भी आंकना चाहिए था जो कि इस मामले में मेरी जानकारी के मुताबिक नहीं किया गया..!
छात्र की इस हरकत को अश्लीलता का आधार देकर इसका विरोध करने वाले इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर आघात बताते हैं। कामसूत्र भारतीय संस्कृति का हिस्सा होने के बाद भी भारतीय समाज में एक निषेध शब्द की तरह है ऐसे में अश्लीलता के आधार पर हम ये तो नहीं कह सकते की ये अभिव्यक्ति की आजादी पर अघात है क्योंकि जिस शब्द का जिक्र आज भी हमारे समाज में कानाफूसी की तरह होता है अगर उसका नग्न और बोल्ड तस्वीरों के रूप में सार्वजनिक प्रदर्शन हो रहा है तो इसके विरोध में स्वर उठेंगे ही। इसको लेकर जब तक लोगों की सोच और मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा तब तक मेरी समझ में लोग इसे अश्लीलता के रूप में ही देखेंगे न कि कला के रूप में..! (जरूर पढ़ें- सेक्स एजुकेशन- कितनी कारगर..? )
पटना की इस घटना से ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या छात्र का शिक्षिका के सामने कामसूत्र से जुड़ी पेंटिंग्स का प्रदर्शन गुरू-शिष्य परंपरा पर कहीं प्रहार तो नहीं है?
यहां पर भी सोच और मानसिकता का पैमाना ही मेरी समझ में सटीक जवाब ढूंढ़ पाएगा क्योंकि अपने असाइनमेंट को तैयार करने वाले छात्र की सोच वास्तव में अगर कामसूत्र को लेकर कला की ही है तो फिर इसे हम गुरु – शिष्य परंपरा पर आघात नहीं कह सकते।
यहां पर शिक्षिका का ये फर्ज बनता है कि वो कला की शिक्षिका होने के नाते अपनी संकुचित सोच का परिचय देने की बजाए कला को लेकर छात्रों की सोच का दायरा बड़ा करे अन्यथा पटना आर्टस कॉलेज की ये घटना जरूर कला के छात्रों के साथ ही इस घटना को सुनने जानने वालों पर एक आघात की तरह कार्य करेगी क्योंकि भविष्य में कभी भी कामसूत्र के जिक्र पर लोगों के जेहन में सिर्फ अश्लीलता ही उभरेगी कला नहीं..!
कुल मिलाकर सेक्स जैसे विषय और इस मुद्दे पर अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध होने के सवाल पर तो मेरी समझ यही कहती है कि इस पर प्रतिबंध होने की बजाए लोगों को अपनी सोच का दायरा बढ़ाना होगा...अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा नहीं तो इससे जुड़े मुद्दे भविष्य में भी सिर्फ नए विवादों को ही जन्म देंगे..!

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