माँ,मैं यह मोर्चा भी हार गया हूँ-ब्रज की दुनिया
माँ,मैं नहीं जानता कि तुमने इस दुनिया को क्यों बनाया?तुम्हारी इस शरारत
के पीछे तुम्हारा मकसद क्या था? लेकिन इतना तो निश्चित है कि मुझे तेरी
दुनिया रास नहीं आई। तुम्हारी दुनिया में कहीं न्याय नहीं है। हर जगह सिर्फ
अव्यवस्था,अत्याचार और अन्याय है। मैंने इस उम्मीद पर तुम्हारी दुनिया में
घर बसाया था कि तेरी दुनिया में कम-से-कम मेरा हमसफर तो जिन्दगी के हर
मोड़ पर,हर कदम पर मेरा हमकदम होगा। लेकिन मेरा हमसफर तो जैसे मेरे लिए
मृगमरीचिका साबित हुई। उसने कभी मेरे जज्बातों को समझा ही नहीं बल्कि समझने
की कोशिश ही नहीं की। मैं जितना ही उसके नजदीक जाता वो मुझसे दूर होती गई।
माँ,मैंने उसे क्या समझा था और वो क्या निकली? माँ,उसके लिए भी तेरी
दुनिया के अन्य लोगों की तरह तू भगवान नहीं है बल्कि पैसा ही भगवान है और
मेरे पास यह कथित भगवान है तो लेकिन जरूरत भर ही। लेकिन उसे तो अपार पैसा
चाहिए जिससे वो कथित तौर पर सुख खरीद सके। माँ,तेरे इस बाजारवादी युग में
अब सुख भी बाजार में जो बिकने लगा है। माँ,मैं उसे हमेशा समझाता रहता हूँ
कि दुनिया में हमसे भी ज्यादा अभावग्रस्त मगर सुखी लोग हैं लेकिन वो समझती
ही नहीं है। माँ,वो बार-बार मेरे परिजनों को अपमानित करती रहती है।
माँ,सेवा और त्याग तो जैसे उसके शब्दकोश में ही नहीं है। माँ,मैंने उसे
हमेशा बराबरी का अधिकार दिया। हमेशा आप कहकर संबोधित किया। मैंने उसे कभी
अपने से हीन नहीं समझा क्योंकि माँ यह तो तुम भी जानती हो कि मैं रूप का
नहीं,धन का भी नहीं गुण का पुजारी रहा हूँ। माँ,मैंने उसे जब पहली बार
लग्न-मंडप पर देखा था तो मैं समझा था कि तुमने मेरे लिए फिर से शारदामणि को
धरती पर भेज दिया है। परन्तु यह तो कुछ और ही निकली। माँ,तुम्हारी आज की
यह नारी कैसी है जो केवल एक शरीर है और जिसमें श्रद्धा नाम की चीज ही नहीं?
माँ,मैं रोज अखबारों में पढ़ता हूँ कि पत्नी ने पति को मरवा डाला।
माँ,सतियों की पावन-भूमि पर ये क्या हो रहा है,क्यों और कैसे हो रहा है?
माँ,वो लगातार मेरे दिल को तोड़ती ही जा रही है। उसने तो जैसे मेरी कोई भी
बात नहीं मानने की कसम ही ले रखी है। उसको मेरा परिवार तनिक भी नहीं
सुहाता। माँ,तुम तो जानती हो कि मेरे पिताजी संतमना महापुरूष हैं जो
तुम्हारी गलती से सतयुग के बदले इस कलियुग में पैदा हो गए हैं लेकिन वह न
जाने क्यों उनको भी नहीं देखना चाहती। माँ,तुम तो जानती हो कि मैंने हमेशा
से तेरी दुनिया को तेरी लीला माना है। तो क्या जो कुछ मेरे साथ हो रहा है
उसे भी तेरी लीला ही समझूँ? लेकिन माँ तेरा यह बेटा बहुत कमजोर है इसलिए
इतनी भी कड़ी परीक्षा न ले कि तेरी दुनिया से मैं डरने लगूँ। माँ, अब तू ही
बता कि मैं अकेले कैसे दुर्गम जीवन-पथ को तय करूंगा? माँ,मैं कैसे
रातोंरात अंबानी या बिरला हो जाऊँ? हम जैसे हरिश्चन्द्रों को तुम्हारे बनाए
इस कलियुग में कोई खरीदेगा भी तो नहीं माँ?!
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