27.3.13

किराए के समर्थकों से चाटुकारिता का तड़का..!


बात ज्यादा दिन पुरानी नहीं है जब मैं शिरडी जाने के लिए ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहा था कि अचानक स्टेशन परिसर में भारतीय जनता पार्टी का झंडा थामे एक हुजूम दाखिल हुआ। कुछ के हाथों में फूलों के हार थे तो कुछ के हाथों बंदूकों से तने थे। ग्वालियर - चंबल अंचल में जिसके पास जितनी बंदूकें उसे उतना बड़ा और ताकतवर समझा जाता है लिहाजा बंदूक थामे लोगों की तादाद भी फूल और झंडा लिए लोगों से कम नहीं थी।  
ये नजारा देख इतना तो समझ आ गया था कि भाजपा का कोई कद्दावर नेता ट्रेन से ग्वालियर पहुंचने वाला है और उसके स्वागत में ही स्थानीय नेता कार्यकर्ताओं की भीड़ के सहारे अपना शक्ति प्रदर्शन के साथ ही चाटुकारिता का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते थे।
जिज्ञासा हुई कि आखिर कौन भाजपा नेता यहां पहुंचने वाला है जिसके स्वागत मे ये लोग पलकें पावड़ें बिछाए बैठे हैं..? भाजपा का झंडा थामे एक व्यक्ति से पूछा तो वो तपाक से बोला उमा दीदी आ रही हैं और हम उन्हीं के स्वागत के लिए यहां आए हुए हैं। दरअसल भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती दिल्ली से ग्वालियर पहुंच रही थी। रेलवे स्टेशन भाजपा कार्यकर्ताओं और भाजपा के झंडे थामे कार्यकर्ताओं से भाजपामय दिखाई दे रहा था और सभी लोग बेसब्री से ट्रेन का इंतजार करते दिखाई दे रहे थे।
इसी बीच मेरी नज़र कार्यकर्ताओं की भीड़ में सबसे पीछे भाजपा का झंडा थामे कुछ लोगों पर पड़ी तो बड़ी हैरानी हुई। संख्या में ये लोग करीब दो दर्जन से अधिक होंगे। कपड़ों से और इनके चेहरे देख इतना तो समझ आ रहा था कि ये लोग रिक्शा या रेहड़ी चलाने वाले, मजदूरी करने वाले या फिर रेलवे स्टेशन में पल्लेदारी करने वाले लोग थे। समझते देर न लगी कि उमा भारती का स्वागत करने पहुंचे स्थानीय नेताओं ने ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाने के लिए चाटुकारिता की सारी हदें पार करते हुए रिक्शा चालकों, मजदूरों और पल्लेदारों के हाथों में तक झंडा थमाने से गुरेज नहीं किया।
हालांकि राजनीति में ये कोई नई बात नहीं है क्योंकि हमारे देश में आमतौर पर चुनावी रैलियों में इस तरह के नजारे आम हैं। नेताओं की सभा में भीड़ जुटाने के लिए पैसे देकर इसी तरह लोगों को बुलाया जाता है और यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ था..!
मध्य प्रदेश में इसी साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में टिकट की होड़ अभी से शुरु हो गयी है। टिकट की चाह रखने वाले नेता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को उनके आगमन पर ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाकर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं और इसी बहाने टिकट के लिए अपनी दावेदारी मजबूत करने में लगे हुए हैं।
उमा भारती की भाजपा में वापसी होने के बाद मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में उमा भारती की महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता लिहाजा उमा भारती के स्वागत में भी टिकट की चाह लगाए बैठे उमा समर्थक स्थानीय नेताओं ने उमा के स्वागत के बहाने कार्यकर्ताओं की भीड़ के साथ शक्ति प्रदर्शन का कोई मौका नहीं छोड़ा।
विडंबना देखिए किराए के समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन करने वाले ऐसे नेताओं को न सिर्फ चुनाव में टिकट मिल जाता है बल्कि ये लोग विधानसभा और संसद तक भी पहुंच जाते हैं..!
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों सब कुछ जानते हुए भी जनता ऐसे नेताओं को चुनकर विधानसभा और संसद तक भेज देती है..!  क्या ऐसे नेताओं को चुनना जनता की मजबूरी है या फिर चुनाव में विकल्पविहीन जनता को नेताओं की पूरी जमात में कोई फर्क  ही नजर नहीं आता और इसका फायदा ऐसा नेताओं को मिलता है..?
जाहिर है सिर्फ बेहतर विकल्प न होना ही इसकी वजह नहीं है बल्कि कहीं न कहीं योग्य प्रत्याशी की बजाए पार्टी को वोट देने की प्रवृत्ति भी इसके लिए जिम्मेदार है। जब तक जनता राजनीतिक दलों के मोहपाश से खुद को मुक्त करके चुनाव मैदान में खड़े योग्य प्रत्याशी का चुनाव नहीं करेगी चाहे वो किसी भी दल से क्यों न हो तब तक ऐसे चाटुकार नेता ही संसद और विधानसभा में पहुंचते रहेंगे जिन्हें न तो अपने देश और प्रदेश की फिक्र है और न ही जनता से कोई सरोकार। (जरूर पढ़ें- आम आदमी जाए भाड़ में..!)।
उम्मीद करते हैं कि जनता पर छाया राजनीतिक दलों का मोहपाश टूटेगा और जनता आगामी विधानसभा और आम चुनाव में योग्य प्रत्याशियों को चुनकर विधानसभा और संसद में भेजेगी और देश और जनता को जूते की नोंक पर रखने खुद का विकास को सर्वोपरी रखने वाले चाटुकार नेताओं को सबक सिखाएगी।

deepaktiwari555@gmail.com

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