शोभना समर्थ
सीता की छायाप्रति
आज की युवा पीढ़ी अभिनेत्री काजोल और बहन तनीशा की प्रशंसक है। इसके पहले की पीढ़ी नूतन और तनूजा के दिलकश अभिनय से बखूबी परिचित हैं और उससे भी पहले की पीढ़ी सीता के रूप में जानती है चालीस के दशक की लोकप्रिय तारिका शोभना समर्थ को। रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण में जिस तरह राम (अरूण गोविल) और सीता (दीपिका चिखलिया) को पॉपूलर आर्ट यानी फोटो, पोस्टर, कैलेंटर और कई उत्पादों के जरिये घर-घर में परिचित करा दिया था। वैसे ही कुछ शोभना समर्थ और प्रेम अदीब (राम) के साथ चालीस के दशक में घटित हुआ था। इससे भी बढ़कर धार्मिक आस्था वाले अपने घर के देवालय में इनकी तस्वीर लगाकर सुबह-शाम आरती उतारते थे तथा हल्दी कुमकुम लगाते थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवन में जो एकमात्र फिल्म देखी थी, वो "रामराज्य" थी। खुद शोभना समर्थ को भी इस बात का बहुत गर्व था।
मुंबई के अमीर बैंकर परिवार में शोभना शिलोत्री का जन्म 17 नवंबर, 1916 को हुआ था। पिता पी.एल. शिलोत्री की एकमात्र पुत्री होने से शोभना का बचपन लाड़-प्यार में बीता। बचपन में मराठी रंगमंच पर अभिनय किया। उन पर उस दौर के दिग्गज फिल्मकार बाबूराव पेंढारकर का जबरदस्त प्रभाव था। सिनेमाटोग्राफर कुमार सेन समर्थ से शादी के बाद शोभना समर्थ कहलाई। यहीं से फिल्म करिअर की खिड़कियां खुलना आरंभ हुई। इसके पहले कुलीन परिवार की बहू-बेटियों के फिल्मों में प्रवेश के दरवाजे दुर्गा खोटे ने खोल दिये थे।
पिता की मृत्यु के बाद मामा जयंत (नलिन जयंत के पिता) ने शोभना को सहारा दिया। विलासी ईश्वर उर्फ ‘निगाह-ए-नफरत’ उनकी पहली फिल्म थी। मास्टर विनायक के कोल्हापुर सिनेटोन की कुछ फिल्मों में शोभना ने अभिनेता मोतीलाल के साथ काम किया। मोतीलाल से उनकी दोस्ती ताउम्र चली और कई बार फिल्म पत्रिकाओं के पन्नों पर गॉसिप की तरह उछली। इसके बाद हिंदी-गुजराती फिल्म ‘दो दीवाने’ में उन्होंने मोतीलाल के साथ लीड रोल किया। नूतन को जन्म देने के लिए करिअर के आंरभ में शोभना ने दो साल का प्रसूति अवकाश लिया। लौटकर फिल्म ‘कोकिला’ और ‘पति-पत्नी’ में काम किया। फिल्में सफल रहीं। वाडिया बद्रर्स उन दिनों सिर्फ स्टंट फिल्में बनाते थे, लेकिन शोभना का अभिनय देखकर उन्होंने एक सामाजिक फिल्म बनाई ‘शोभा’ ।
कोजोल तथा तनीशा की नानी और नूतन तथा तनूजा की माँ शोभना समर्थ को विजय भट्ट ने सीता के रूप में क्या प्रस्तुत किया, वह इस इमेज से बाहर नहीं आ सकी। शोभना एवं प्रेम अदीब सीता और राम के पर्याय हो गये थे।
शोभना को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता मिली प्रकाश पिक्चर्स की फिल्म ‘भरत मिलाप’ / ‘भरत भेंट’ से। यह रामायण के एक एपिसोड पर विजय भट्ट द्वारा निर्देशक श्रेष्ठ फिल्म थी। तकनीकी दृष्टि से विजय भट्ट की यह श्रेष्टतम फिल्म है लेकिन ‘रामराज्य’ की लोकप्रियता ने इसे पीछे छोड़ दिया। भरत मिलाप में सीता की भूमिका छोटी थी, जो ‘राम राज्य’ में लार्जर देन लाईफ बन गई। इन दोनों फिल्मों ने शोभना पर सीता और प्रेम अदीब पर राम की मुहर ऐसे लगाई कि ये इस छवि के दायरे से अपने को बाहर नहीं निकल पाये। भारतीय सिनेमा के इतिहास में रामराज्य सबसे अधित सफल पौराणिक फिल्म मानी जाती है। फिल्म का गीत-संगीत ‘वीणा मधुर-मधुर कुछ बोल’ तथा ‘भारत की एक सन्नारी की हम की हम कथा सुनाते हैं।’ हर दर्शक श्रोता की जुबान पर चढ़ा था। इसके बाद प्रकाश पिक्चर्स की फिल्मों – ‘रामबाण’, ‘रामविवाह’, ‘रामायण’ में ये दोनों कलाकार दोहराये गये लेकिन ‘रामराज्य’ जैसी ऊंचाईयां नहीं मिलीं।
अभिनेता मोतीलाल से शोभना के अंतरंग प्रेम सम्बम्धों के चलते उस दौर की पत्र-पत्रिकाओं में उनके गोसिप छपते थे।
पौराणिक कंदरा से बाहर निकलकर शोभना समर्थ ने पृथ्वीराज के साथ फिल्म ‘नल दमयंती’ की। उनके करिअर का सर्वोच्च अभिनय फिल्म ‘वीर कुणाल’ में देखने को मिलता है। इसे किशोर साहू ने निर्देशित किया था। सम्राट अशोक की पत्नी तिष्यरक्षिता का रोल शोभना ने निभाया, जो अपने सौतेले पुत्र कुणाल से प्रेम करने लगती है। लेकिन सीता सावित्री के रूप में शोभना को चाहने वाले दर्शकों ने फिल्म को नकार दिया।
शोभना समर्थ को ‘रामराज्य’ में सीता की भूमिका के लिए याद किया जाता है। उन्होंने स्वयं यह स्वीकार किया कि पति से अनबन के बाद सितारे मोतीलाल के साथ लंबे समय तक उनका प्रेम रहा है।
सन् 1950 के बाद फिल्म परिदृश्य एकदम बदल गया। धार्मिक पौराणिक फिल्मों का निर्माण कम हो गया। शोभना ने सही समय पर फिल्मों से दूरियां बना कर अपनी जवान होती बेटियों नूतन और तनूजा पर ध्यान देना शुरू किया। नूतन को ‘हमारी बेटी’ से लांच किया और तनूजा के लिए फिल्म ‘छबीली’ बनाई। ‘हमारी बेटी’ में नूतन के पिता की भूमिका माती लाल को दी गई थी। 9 फरवरी, 2000 को शोभना सीता की तरह ही धरती की गोद में समा गई।
लेखक
श्रीराम ताम्रकर एम.ए., बी.एड.,
विद्यावाचस्पति, विशारद, एफ.ए. (FTII)
इन्दौर, म.प्र.
‘बीते कल के सितारे’ पुस्तक से
अभिनेत्री शोभना समर्थ की गिनती भी उन फिल्म कलाकारों में होती है, जो ताउम्र दर्जनों फिल्मों में काम करते हैं। उनकी पहचान सिर्फ एक फिल्म के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। शोभना समर्थ के साथ भी कुछ ऎसा हुआ था। उन्होंने लगभग तीस फिल्मों में काम किया,पर अपने प्रशंसकों के बीच वे हमेशा "रामराज्य" की सीता के रूप में पहचानी गयी। 1943 में बनी विजय भट्ट की इस फिल्म में उन्होंने सीता का रोल किया था। "रामराज्य" 1943 की एक मेगा हिट फिल्म थी। इस फिल्म की लोकप्रियता का यह आलम था कि फिल्म में राम सीता की भूमिका में नजर आये प्रेम अदीब और शोभना समर्थ लोगों के अंतर्मन में बैठ गये। राम और सीता के रूप में बनी उनकी छवि की इतनी धूम मची थी कि उनके नयनाभिराम कैलेंडर बने और खूब बिके।
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/watch?v=6ZflK4I7X7A
sundar ewam gyaanwardhak .
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