धड़ाम से ………
बात मौन के महत्व की है ,बड़ी ताकत है मौन में। जो काम चिल्लाने से पूरा नहीं होता
वह मौन से हो जाता है। सब कुछ इस तरह करो कि किसी के कानो कान खबर भी ना
हो ,कुछ सालों से मौन अपनी पराकाष्ठा पर है ,बिना कुछ चूं चपाटा किये रुपया धडाम
हो गया ,बस सब देखते रह गए मोहनी अदा से …।
कुछ सालों से अभी तक बेचारी ईमानदारी का जनाजा निकाला जा रहा है,किसी
ने यह पूछने की हिम्मत नहीं करी कि ये मरी कैसे ?ईमानदारी शिखर पर खड़ी थी और
मौन ने बड़ी मासूमियत से खाई की तरफ धकेल दिया ,ईमानदारी कुछ समझे उसके
पहले धड़ाम से खाई में जा गिरी ……………. धड़ाम
अर्थ का पहिया बड़े जोर से चक्कर खा रहा था ,यह चक्कर घूमता हुआ ऊपर जा
रहा था ,सब खुश थे कि ये चक्कर बड़ी तेजी से घूम रहा है लेकिन बड़ी शिफ्त से कब
रिवर्स लगा कि भागा धड़ाम से निचे की तरफ …….कोई रूकावट नहीं लगता है खाई
में जाकर विश्राम लेगा …धड़ाम हो खुद ही ठहर जाएगा
पहली पार से उथल पुथल हुयी ,हमने उस ओर इशारा किया मगर वो बोले -बेटे ,
मौन … थोड़े समय बाद एक आवाज आई - धड़ाम -धड़ाम … और कुछ रण बाँकुरे
को सदा के लिए मौन कर गयी …!!
दामाद जी अपना कारोबार भी मौन हो चला रहे थे ,बड़ी अच्छी कट रही थी। रुपया
खुद ब खुद बढ़ रहा था ,सिलसिला आगे बढ़ रहा था क्योंकि कुछ चला था और मीलों
चलना था पर वाह रे किस्मत !ना जाने कैसे खे -खे करता मका आया और धड़ाम से
धक्का दिया ,इससे कुछ उल्टी बाहर आई मगर मौन हो कर वापिस निगल ली …।
वो बेतहाशा भागे जा रहे थे ,जब भी पीछे मुड़ कर देखते तो गरीबी पीछा करती
दिखती ,उनकी साँसे फुल रही थी मगर दौड़े जा रहे थे ,हमने उनको रोक कर पूछा -
यूँ भागने से क्या होगा ,इससे मुकाबला करो. वो बोले - रुकते ही यह पकड कर मुझे
धड़ाम से गिरा देगी इसलिए रुकना उपाय नहीं है मुझे किधर भी भागना है ,दोड़ना
है ताकि मेरा धड़ाम होना टल जाये !
हम घर पर बैठे थे ,सोचा कुछ समाचार जान लूँ। टी वी ऑन किया कि समाचार
वाचक अजीब हरकतें करता हुआ बोला - हाय राम ,जोरदार मंदी की आंधी से पूरा
शेयर मार्केट धड़ाम से ओंधे मुंह गिर पड़ा। …….
टी वी पर धड़ाम सुन हम घर के बाहर निकले शायद इस धड़ाम से पीछा छूटे
घर से कुछ दुरी पर एक अँधा माथे पर भारी बोझ रखे पृथ्वी की तरह गोल घेरे में
घूम रहा था। मेने उसके सर के बोझ को हटाना चाहा तो वो बोला -ये क्या कर रहा
है छोरा ,दीखता नहीं मैं निर्माण कर रहा हूँ ,सालो से दौड़ रहा हूँ और सालो तक
दौड़ने की अदम्य इच्छा रखता हूँ … और तू इस बोझ को धड़ाम से मुझसे अलग
करना चाहता है ?
मेने कहा -बूढ़े बाबा ,समय को पहचान ,अब तेरा सूरज अस्त हो रहा है क्योंकि
अब क्षितिज से शेर दहाड़ रहा है ,कट ले बाबा वरना शेर तेरा धडाम कर ही देगा !!
बात मौन के महत्व की है ,बड़ी ताकत है मौन में। जो काम चिल्लाने से पूरा नहीं होता
वह मौन से हो जाता है। सब कुछ इस तरह करो कि किसी के कानो कान खबर भी ना
हो ,कुछ सालों से मौन अपनी पराकाष्ठा पर है ,बिना कुछ चूं चपाटा किये रुपया धडाम
हो गया ,बस सब देखते रह गए मोहनी अदा से …।
कुछ सालों से अभी तक बेचारी ईमानदारी का जनाजा निकाला जा रहा है,किसी
ने यह पूछने की हिम्मत नहीं करी कि ये मरी कैसे ?ईमानदारी शिखर पर खड़ी थी और
मौन ने बड़ी मासूमियत से खाई की तरफ धकेल दिया ,ईमानदारी कुछ समझे उसके
पहले धड़ाम से खाई में जा गिरी ……………. धड़ाम
अर्थ का पहिया बड़े जोर से चक्कर खा रहा था ,यह चक्कर घूमता हुआ ऊपर जा
रहा था ,सब खुश थे कि ये चक्कर बड़ी तेजी से घूम रहा है लेकिन बड़ी शिफ्त से कब
रिवर्स लगा कि भागा धड़ाम से निचे की तरफ …….कोई रूकावट नहीं लगता है खाई
में जाकर विश्राम लेगा …धड़ाम हो खुद ही ठहर जाएगा
पहली पार से उथल पुथल हुयी ,हमने उस ओर इशारा किया मगर वो बोले -बेटे ,
मौन … थोड़े समय बाद एक आवाज आई - धड़ाम -धड़ाम … और कुछ रण बाँकुरे
को सदा के लिए मौन कर गयी …!!
दामाद जी अपना कारोबार भी मौन हो चला रहे थे ,बड़ी अच्छी कट रही थी। रुपया
खुद ब खुद बढ़ रहा था ,सिलसिला आगे बढ़ रहा था क्योंकि कुछ चला था और मीलों
चलना था पर वाह रे किस्मत !ना जाने कैसे खे -खे करता मका आया और धड़ाम से
धक्का दिया ,इससे कुछ उल्टी बाहर आई मगर मौन हो कर वापिस निगल ली …।
वो बेतहाशा भागे जा रहे थे ,जब भी पीछे मुड़ कर देखते तो गरीबी पीछा करती
दिखती ,उनकी साँसे फुल रही थी मगर दौड़े जा रहे थे ,हमने उनको रोक कर पूछा -
यूँ भागने से क्या होगा ,इससे मुकाबला करो. वो बोले - रुकते ही यह पकड कर मुझे
धड़ाम से गिरा देगी इसलिए रुकना उपाय नहीं है मुझे किधर भी भागना है ,दोड़ना
है ताकि मेरा धड़ाम होना टल जाये !
हम घर पर बैठे थे ,सोचा कुछ समाचार जान लूँ। टी वी ऑन किया कि समाचार
वाचक अजीब हरकतें करता हुआ बोला - हाय राम ,जोरदार मंदी की आंधी से पूरा
शेयर मार्केट धड़ाम से ओंधे मुंह गिर पड़ा। …….
टी वी पर धड़ाम सुन हम घर के बाहर निकले शायद इस धड़ाम से पीछा छूटे
घर से कुछ दुरी पर एक अँधा माथे पर भारी बोझ रखे पृथ्वी की तरह गोल घेरे में
घूम रहा था। मेने उसके सर के बोझ को हटाना चाहा तो वो बोला -ये क्या कर रहा
है छोरा ,दीखता नहीं मैं निर्माण कर रहा हूँ ,सालो से दौड़ रहा हूँ और सालो तक
दौड़ने की अदम्य इच्छा रखता हूँ … और तू इस बोझ को धड़ाम से मुझसे अलग
करना चाहता है ?
मेने कहा -बूढ़े बाबा ,समय को पहचान ,अब तेरा सूरज अस्त हो रहा है क्योंकि
अब क्षितिज से शेर दहाड़ रहा है ,कट ले बाबा वरना शेर तेरा धडाम कर ही देगा !!
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