22.8.13

अंधश्रद्धा की आड़ में आसाराम बापू

संत (या यूं कहें तथाकथित!) आसाराम बापू पर लगे रेप के आरोप सभ्य समाज को असभ्यता का आइना दिखा रहे हैं। हो सकता है कि उन पर लगे बेबुनियाद हों, फिर भी कभी संस्कारी रहे भारत में आज असंस्कार इस कदर हावी हो गया है कि सदाचारी और बलात्कारी में ज्यादा फर्क नजर नहीं आता है। पुलिस इस मामले में आसाराम बापू से पूछताछ करने का मन बना रही है। उनके खिलाफ रेप का मामला दर्ज हो गया है। केस दर्ज होने के बाद आसाराम बापू की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। मामला दर्ज होने के बाद उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। पूरा माहौल उनके विरोध में है।
इस प्रकरण के बहाने अगर हम बदलते सामाजिक ढांचे पर गौर करें, तो हमारा नैतिक पतन बड़ी तेजी के साथ हो रहा है। ये तो आसाराम बापू का मामला है, लेकिन इससे पहले भी हमारे समाज का कुत्सित चरित्र दर्शाती कई घटनाएं लोगों का जेहन ताजा करती रही हैं। अक्सर सुनने में आता है कि फलां जगह पर ढोंगी बाबा के कहने पर पिता ने बेटी से रेप कर दिया, या फलां जगह पर बेटा पैदा होने की आस में महिला की आबरू ढोंगी बाबा ने लूटी। शायद आसाराम बापू की जगह कोई ढोंगी बाबा होता, तो किसी क्षेत्रीय अखबार के भीतर के पन्ने पर सिंगल कॉलम की खबर लग गई होती, या शायद वह भी जगह नहीं मिलती और हमारा समाज अपने क्षीण होते चरित्र को प्रोत्साहित कर रहा होता। 
इतना ही नहीं, ढोंगी बाबाओं के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सरेआम गोलियों से भूना जाता है, जैसा कि पुणे में अंधश्रद्धा निर्मूलन से जुड़े डॉ. नरेंद्र दाभोलकर के साथ हुआ। डॉ. दाभोलकर का मर्डर होने के बाद कुछ नेताओं ने सीधे हिंदू संगठनों पर उंगली उठा दी, जबकि उनके सहयोगियों ने दो बड़े बाबाओं का हाथ होने का संकेत दिया। बताया गया कि डॉ. दाभोलकर इन बाबाओं की काली करतूतों का पर्दाफाश कर उनका असली चेहरा लोगों के सामने उजागर करने वाले थे। इससे स्पष्ट है कि ढोंगी बाबाओं का जाल किस कदर हमारे समाज में विष बनकर फैला है और ये अपनी कुत्सित क्षुधा पूर्ति के लिए किस हद तक जा सकते हैं।
यहां बात सिर्फ डॉ. दाभोलकर के मर्डर की नहीं, या आसाराम बापू के रेप केस में फंसने या न फंसने की नहीं है। क्योंकि, ये तो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पाश्चात्य सभ्यता में लिपटता, चिपटता जा रहा हमारा समाज स्वतंत्रता, स्वच्छंदता की आड़ में जिस उच्छृंखलता की ओर बढ़ रहा है, वह आजकल हर जगह किसी न किसी रूप में रेप कर रहा है। कॉर्पोरेट कल्चर में तो तमाम जगहों पर ऐसे नरपिशाच घूम रहे हैं, जो अपने तईं जमकर महिलाओं, लड़कियों को भोग्या बना रहे हैं। इनमें मीडिया हाउसेज भी शामिल हैं, हालांकि बस इनके तरीके अलग-अलग हैं। इन जगहों पर न केस दर्ज हो रहे हैं, न ही कोई आवाज उठा रहा है, बस अंदर ही अंदर चीजें सुलग रही हैं। इनमें बदलाव तभी संभव है, जब एक सामाजिक क्रांति आए और लोग खुद ब खुद अपनी कुत्सित मानसिकता पर काबू कर उसे निर्मलता में बदलें।
सर्वेश पाठक

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