अयोग्य राजा राष्ट्र के लिए अकल्याणकारी
आचार्य चाणक्य की नीति में लिखा है -अयोग्य को राजा बनाने के स्थान पर किसी
को राजा न बनाने में राष्ट्र का कल्याण है,लेकिन हम भारतीय गलती करते ही
नहीं दोहराते भी हैं.
नन्द वंश केवल चाणक्य के समय में ही नहीं था हर काल में रहता है और
उसका हर काल में विनाश हुआ है. देश पूछता है -क्या चन्द्रगुप्त बनोगे ?
केवल बातें, लच्छेदार बातें,खुद की गलतियों को ढकने की बातें,खुद की अक्षमता
को छिपाने की बातें,प्रजा को भ्रमित करने की बातें ……क्या इसे ही अतुल्य
भारत कहा जाएगा ?
बातों से देश का शासन चलाओ,संसद में लच्छेदार शब्दों का भाषण पिलाओ,
दुश्मन राष्ट्र पर बातों से वार करो,बातों से वतन की रक्षा का दिखावा …… क्या
इसी लिए चुनाव होता है …?
कड़े शब्दों में निंदा करके हम देश के बहादुर सैनिकों का अग्नि संस्कार करते
रहेंगे …क्या इसी को प्रजातंत्र कहते है ?
मौत दुश्मन की घात से हुई या दुश्मन के लुख्खो से ……. मगर मरे तो इस देश
के जवान हैं …जवानो की मौत का बदला दुश्मन से लेने की जगह खबर का
विश्लेषण करने वाले मंत्री को पद पर बने रहने का हक़ होना चाहिए ?
जवान मर गये ……. तुरंत अभिनय शुरू …. संवेदना के स्वर ,चेहरे पर उदासी
की लकीरे ,हाथ में दस लाख की सहायता राशी … और इतिश्री शहीद श्री …की कथा.
…क्या ऐसे कर्तव्यों के निर्वाह को स्वतंत्रता कहते हैं ?
अरे दुश्मन की जाती पूछ कर बताओ …फिर फैसला करेंगे कि उससे मार खाना है
या जबाब देना है. अगर वोट बैंक का दुश्मन है जुते खा कर उसे बिरयानी खिलाओ,
उसकी सूजे गालों से आवभगत करो …. क्या महान देश की यही कूटनीति है ?
जवान शहीद हो गया … अमर जवान ज्योति पर माथा टेक लो और दुश्मन या
उसके गुर्गे मर गए तो सब मिल कर मातम मनाओ , इस दुर्नीति से देश की दुर्दशा
को क्या यह नाम दें कि हो रहा भारत निर्माण …. !!
कल्पना करो की एक नेता का बेटा लुख्खो के हाथों मारा गया है …. नेता और उसका
परिवार दहाड़े मार रहा है और हर देश प्रेमी भारतीय संवेदना और शोक दिखाने के
लिए कतार में उस लाश पर नोटों से श्रद्धांजली दे रहा है …नोटों का ढेर देख कर भी
नेता रोता जा रहा है ,प्रजा को कुछ समझ नहीं आ रहा है …अब भी नेता क्यों रोये जा
रहा है …।
आचार्य चाणक्य की नीति में लिखा है -अयोग्य को राजा बनाने के स्थान पर किसी
को राजा न बनाने में राष्ट्र का कल्याण है,लेकिन हम भारतीय गलती करते ही
नहीं दोहराते भी हैं.
नन्द वंश केवल चाणक्य के समय में ही नहीं था हर काल में रहता है और
उसका हर काल में विनाश हुआ है. देश पूछता है -क्या चन्द्रगुप्त बनोगे ?
केवल बातें, लच्छेदार बातें,खुद की गलतियों को ढकने की बातें,खुद की अक्षमता
को छिपाने की बातें,प्रजा को भ्रमित करने की बातें ……क्या इसे ही अतुल्य
भारत कहा जाएगा ?
बातों से देश का शासन चलाओ,संसद में लच्छेदार शब्दों का भाषण पिलाओ,
दुश्मन राष्ट्र पर बातों से वार करो,बातों से वतन की रक्षा का दिखावा …… क्या
इसी लिए चुनाव होता है …?
कड़े शब्दों में निंदा करके हम देश के बहादुर सैनिकों का अग्नि संस्कार करते
रहेंगे …क्या इसी को प्रजातंत्र कहते है ?
मौत दुश्मन की घात से हुई या दुश्मन के लुख्खो से ……. मगर मरे तो इस देश
के जवान हैं …जवानो की मौत का बदला दुश्मन से लेने की जगह खबर का
विश्लेषण करने वाले मंत्री को पद पर बने रहने का हक़ होना चाहिए ?
जवान मर गये ……. तुरंत अभिनय शुरू …. संवेदना के स्वर ,चेहरे पर उदासी
की लकीरे ,हाथ में दस लाख की सहायता राशी … और इतिश्री शहीद श्री …की कथा.
…क्या ऐसे कर्तव्यों के निर्वाह को स्वतंत्रता कहते हैं ?
अरे दुश्मन की जाती पूछ कर बताओ …फिर फैसला करेंगे कि उससे मार खाना है
या जबाब देना है. अगर वोट बैंक का दुश्मन है जुते खा कर उसे बिरयानी खिलाओ,
उसकी सूजे गालों से आवभगत करो …. क्या महान देश की यही कूटनीति है ?
जवान शहीद हो गया … अमर जवान ज्योति पर माथा टेक लो और दुश्मन या
उसके गुर्गे मर गए तो सब मिल कर मातम मनाओ , इस दुर्नीति से देश की दुर्दशा
को क्या यह नाम दें कि हो रहा भारत निर्माण …. !!
कल्पना करो की एक नेता का बेटा लुख्खो के हाथों मारा गया है …. नेता और उसका
परिवार दहाड़े मार रहा है और हर देश प्रेमी भारतीय संवेदना और शोक दिखाने के
लिए कतार में उस लाश पर नोटों से श्रद्धांजली दे रहा है …नोटों का ढेर देख कर भी
नेता रोता जा रहा है ,प्रजा को कुछ समझ नहीं आ रहा है …अब भी नेता क्यों रोये जा
रहा है …।
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