मुज़फ्फरनगर के दंगो की आंच की आंच में सवाल मुह बायं खड़े हैं। ऐसे सवाल जिनके जवाब हमें अब हर कीमत पे तलाशने होंगे। ऐसे सवाल जो रूहों को भी बेचैन कर रहे हैं, ऐसे सवाल जो हर वक़्त अंतर्मन को कचोटते रहते हैं।
क्या अपनी मां - बहनों की अस्मत की रक्षा करना गुनाह है? अगर गुनाह है तो क्यों है। क्या सिर्फ इसलिए हमारे पास हमारी माँ - बहनों की अस्मत बचाने का हक नहीं है क्योंकि हम हिन्दू हैं। अगर अपनी माँ - बहनों की अस्मत बचाना गुनाह है तो फिर राणा प्रताप और शिवाजी जैसे महान व्यक्ति भी गुनाहगार हुए। खैर हमारे वामपंथी लेखक तो उनके बारे में वैसे ही अच्छी धारणा नहीं रखते। उन्हें तो कामुक अकबर में ही नायक के सरे गुण नज़र आतें हैं।
मुज़फ्फरनगर के दो वीर बलिदानी भाइयों ने को शत शत नमन जिन्होंने अपनी बहन के साथ हुई छेड़छाड़ के लिए आवाज़ बुलंद की। अपनी बहन की शीलरक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों का उतसर्ग कर दिया, उन्होंने दिखा दिया अभी भी हिन्दू युवाओं का रक्त लाल है और वह अस्मत के लुटेरों की नाक में नकेल कसने की सामर्थ्य रखतें है।
उन दो वीर युवाओं का में शत - शत वंदन करता हूँ और उनके प्राणों की रक्षा न कर पाने वाली उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार की निंदा करता हूँ।
सरकारी ज़मीन पर जब अवेध मस्जिद की हो रही तामीर को एक ईमानदार अफसर ने रोकना चाहा तो तत्परता दिखाते हुए उसे अखिलेश सरकार ने तुरंत बर्खास्त कर दिया। पर दुर्गाशक्ति नागपाल का कसूर क्या था? बस यही की उसने हो रहे अवेध निर्माण को रोक दिया। या फिर ये की उसने एक "मस्जिद"
का निर्माण रोका जो की अवेध थी। एक अवेध मस्जिद के हो रहे निर्माण को रोकना अगर अखिलेश सरकार की नज़र में गुनाह है तो अखिलेश हा सरकार ही सबसे बड़ी गुनाहगार है न की दुर्गाशक्ति नागपाल।
कवँल भारती का दोष क्या था? सिर्फ इतना की उन्होंने दुर्गा के साथ हुए अन्याय की विरुद्ध आवाज़ उठाई थी और अखिलेश सरकार की तत्परता देखिये अन्याय के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने वाले साहित्यकार को उसने तुरंत हिरासत में ले लिया। काश अखिलेश सरकार इतनी का प्रदर्शन ज़रायमपेशा लोगो के विरुद्ध करती।
अयोध्या को छावनी में सिर्फ इसलिए तब्दील कर दिया गया क्योंकि वहां कुछ भक्त अपनी धार्मिक यात्रा करने वाले थे पर उन्हें ऐसा नहीं करने दिया गया। यह घटना ये साबित करती है की उत्तर प्रदेश के हिन्दू अब भी मध्यकालीन भारत में जी रहें हैं जहाँ उनसे उनके धार्मिक अनुष्ठान के लिए ज़जिया वसुला जाता था।
सवाल ये उठता है ऐसे मोकों पर सजग और तत्पर दिखने वाली अखिलेश सरकार दंगे के वक़्त सोती क्यों रह जाती है कहीं ये वो जानबूझकर तो नहीं करती? अगर ये जानबूझकर होता है तो किन्हें खुश करने के लिए?
खैर अखिलेश सरकार के इन कृत्यों के लिए उन्हें वक़्त और जनता सबक सिखायगी। हम तो उन दो वीर भाइयों को श्रधांजली अर्पित करते हैं जिन्होंने अपनी बहन की शीलरक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।
--सुधीर मौर्य
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