22.9.13

सूत्र -जाकी रही भावना जैसी ( रामचरित मानस से )

सूत्र -जाकी रही भावना जैसी ( रामचरित मानस से )

सूत्र यानि वह पद्धति जिसको हर काल में लागू करने पर समान परिणाम प्राप्त होता
है उस पर काल ,परिस्थिति,स्थान का प्रभाव नहीं पड़ता है। तुलसी कृत मानस सफल
जीवन पद्धति के सूत्रों से भरी पड़ी है। उसी से एक सूत्र उठा रहे हैं "जाकी रही भावना
जैसी"

भावना यानि मन में उठने वाले विचार। हर विचार दो प्रकार का होता है  एक सकारात्मक
और दूसरा नकारात्मक। दोनों ही भाव परस्पर विरोधी परिणाम देने वाले हैं ,वस्तु
तठस्थ होती है परन्तु भावना अलग-अलग होती है। उस वस्तु के प्रति हमारे जैसे भाव
होते हैं उसी रूप में वह प्राप्त हो जाती है।

हमारा क्रिकेट खिलाड़ी युवराज एक गंभीर बिमारी से पीड़ित हो गया और बिमारी को
पराजित कर पूर्ण रूप से स्वस्थ भी हो गया। बीमार होने से स्वस्थ होने तक उस खिलाड़ी
के भाव उस बिमारी के प्रति क्या रहे होंगे ?क्या वह बिमारी से भयभीत होकर निराश
हो गया या बिमारी को समूल नष्ट करने के भाव से विजयी हो गया ,वह खिलाड़ी बिमारी
को हरा चूका था  …. यह चमत्कार हुआ कैसे ?उत्तर है उसकी विजयी होने की भावना से।

मनुष्य जब भी जीवन क्षेत्र में उतरता है तो उसे क्या धन सम्पति लेकर उतरना चाहिए ?
यदि आपको उत्तर हाँ में है तो इस लेख को आगे पढना बंद कर दीजिये क्योंकि यह
आपके लिए नहीं लिखा जा रहा है यह उनके लिए लिखा जा रहा है जो हाथ से खाली
और भावना से सम्पन्न हैं।

हम जब जीवन के क्षेत्र में उतरते हैं तो हमारे पास वस्तु को सही रूप में देखने और
समझने की क्षमता होनी चाहिए। वस्तु को देखने का भाव और नजरिया सकारात्मक
ही होना चाहिए। यदि हम अपने लक्ष्य के प्रति सकारात्मक और नकारात्मक दोनों
चिंतन एक साथ रखेंगे तो हम अपने लक्ष्य को कभी भी प्राप्त नहीं कर पायेंगे चाहे
दैव कितना ही अनुकूल क्यों ना हो। अगर हम अपने लक्ष्य को ठीक वैसा ही देख रहे
हैं जैसा हमने सोचा है तो विजय के हम निकट आ जाते हैं उसके बाद ठीक वैसा ही
होने लगता है जैसा होना चाहिए।

हमारे देश के एक मुख्य मंत्री श्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण लीजिये उनके ऊपर विरोधी
नेताओं ने एक दंगे को भड़काने का आरोप लगाया लेकिन उन्होंने उस आरोप को
सकारात्मक भाव से देखा और तुरंत चुनाव घोषित करवा दिए और उसमे विजयी
हुये ,अगर उन्होंने उस चुनौती को नकारात्मक भाव से लिया होता तो विजय रथ रुक
भी सकता था।

हमारे देश के प्रधान मंत्री ने कहा था कि मेरे पास जादू की कोई छड़ी नहीं है जिससे
तुरंत समस्याओं का हल आ जाए ,यह कथन नकारात्मक भाव से भरा था और
नतीजा यह है कि देश मुश्किल दौर से गुजर रहा है ,यहाँ मेरा आशय किसी की प्रसंशा
या आलोचना करना नहीं है मेरा तात्पर्य है वस्तु को देखने के भाव से जुड़ा है।

कुछ दिन पहले देश के युवा नेता ने कहा था कि "तीन चार रोटी खायेंगे -सौ दिन काम
करेंगे -दवाई लेंगे  …। "यह कथन नकारात्मक और संकुचित दृष्टिकोण रखता है
इसको सुनकर देशवासी उत्साह से लबरेज नहीं हुआ ,क्यों  ……।

एक कथन अमेरिका के टावर हमले के समय राष्ट्रपति ओबामा का आया -"जिसने
भी यह अपराध किया है वह क्षमा का पात्र नहीं है उसे दण्डित करके ही रहेंगे "यह वाक्य
अमेरिकन प्रजा में आशा का संचार कर गया और उस विकट घड़ी में ओबामा को
पुरे राष्ट्र का समर्थन मिला।

हम अपने लक्ष्य के प्रति कैसा नजरिया रखते हैं यही महत्वपूर्ण है। यदि हम दृढ
निष्ठा,दृढ संकल्प के साथ आगे बढ़ते हैं तो उस लक्ष्य को पूरा करने का उत्तरदायित्व
प्रकृति स्वत:उठा लेती है। हमे अपने लक्ष्य को पूरा करने वाले लोग साधन मिलते
जाते हैं ,अगर ऐसा नहीं होता है तो निश्चित मानिए लक्ष्य पवित्र नहीं है ,कल्याणकारी
नहीं है। 

हमें शुभ नजरिया रखना है ,आशावादी विचारों से मन को भरे रखना है ,विजय का
विश्वास चेहरे से छलकना चाहिए हमारा संकल्प अटूट और अटूट उत्साह मन में
रखना है उसके बाद खुद को परमात्मा का अंश मानकर विराट भाव से कर्तव्य पथ
पर बढ़ जाना चाहिए  …। परिणाम अनुकूल ही रहेगा इस पर कोई शंका करने की
आवश्यकता नहीं है।
पत्थर में भी विराट परमात्मा को देखने का नजरिया रखिये। समस्या को झुका दीजिये ,
निराशा के भाव को दूर फ़ेंक दीजिये क्योंकि आप उस ईश्वर के अंश है जो सर्वसमर्थ है।
ये सब पदार्थ ईश्वर ने अपनी सन्तान के लिए आपके लिए ही तो बनाये हैं ,बस क़दम
बढ़ा दीजिये  ………………।       

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