बुराई पर अच्छाई की प्रतीकात्मक जीत, धुंवाधार आतिशबाजी के साथ आज एक भर
फिर मुक्कमल हो गयी । आज भी दशहरा है । रावण फिर जला और राम की सत्ता पर
लोगों ने फिर आस्था जताई । यहाँ मैं इस बात से आज आगे बढ़ना चाहता हूँ कि
हर बरस इस आयोजन की क्या सार्थकता है ?
सिर्फ प्रतीकात्मक ही रह
गया है । रावण को बुराई का होल - सोल ठेकादार मानकर फूंक देना । क्योंकि
वास्तव में तो न तो रावण मरता दिखता है और न ही रावण तत्व का खात्मा होता
हुआ । इन सब रस्म अदायगी के बीच एक विचार यह भी आया कि रावण का एक बहुत
बड़ा उद्देश्य राम को स्थापित करना भी है । क्योंकि राम का महातम रावण के
किरदार के बिना कैसे चमकता ? रावण की सिर्फ एक गलती उसे अर्श से फर्श पर
पहुँचा देती है ।
कुबेर को
रावण का बड़ा भाई बताया गया है । यानि एक जिम्मेदार पद पर । रावण की शिव -
भक्ति पर स्वयं महादेव भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकते । और जो काम पूरे
विश्व में कोई नहीं कर पाया वो सिर्फ रावण ने कर दिखाया । शिव के नृत्य
’तांड़व’ को शब्द-बद्ध एवं लय-बद्ध करने का । उस जमाने में भी ज्ञानी -
महात्मा लोगों की कमी नहीं रही होगी । शिव तांड़व स्त्रोत वास्तव में रावण
स्त्रोत है । और शिव को दस बार आपना शीश काट कर अर्पित करने के कारण उसका
नाम दशानन पड़ा । स्वयं महादेव ने उसके दसों सिर वापस किये ।
लक्ष्मण को राजनीति शास्त्र के ज्ञाता रावण की मृत्यु शय्या पर रावण के पास
स्वयं मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने कुछ ज्ञान हासिल करने भेजा था । राम ने
जिस रामेश्वरम मन्दिर की स्थापना की उसमें पुरोहित का किरदार भी रावण के
जिम्मे रहा ।
रावण सामराज्यवादी था । वह अपना सामराज्य बढ़ा रहा
था । आज भी कौन सा शक्तिशाली देश यह काम नहीं कर रहा है । जबसे दुनिया एक
ध्रुवीय हुई है तबसे यह बात और भी प्रासंगिक हो चली है । सामराज्यवाद जो
पहले ब्रिटेन का काम माना जाता था । वह सोवियत संघ के टूटने के बाद अमेरिका
का शगल हो चला है । जहाँ अमेरिका आर्थिक सामराज्यवाद की दिशा में बढ़ रहा
है वहीं ब्रिटेन उसके साथ राजनैतिक सामराज्यवाद भी बढ़ाता था । तो रावण
बुरा था इसलिये उसके पुतले पूरे देश में फूंके जा रहे हैं - 5000 साल बाद
भी । और अमेरिका के पुतले भी पूरे विश्व में हर उस देश में फूंके जा रहे
हैं जहाँ - जहाँ उसके सामराज्यवाद ने लोगों को दु:ख पहुँचाया । यहाँ तक की
स्वयं अमेरिका में भी । साथ ही बताने की जरूरत नहीं की रानी का सामराज्य अब
सिमट चुका है ।
यह रावण के किरदार की एक बानगी भर है । और आप
में से हर कोई इसकी मीमांसा अपने - अपने चश्में से ही करेगा । प्रदूषण
बढ़ाने की दृष्टि से शायद हम - सब भी रावण के ही रोल में हैं । इसलिये रावण
का नहीं रावण-तत्व का दहन करें और इस किरदार के उअले पक्ष को अंगीकृत करने
में कोई हर्ज नहीं दिखता ।
शायद, शायर निदा फाज़ली ने इसी लिये कहा हो :
हर आदमी में होते हैं दस - बीस आदमी
जिसे भी देखिये
बार - बार देखिये ।
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