2.10.13

वक्त किसी का गुलाम नहीं होता

-नितिन सबरंगी
‘वक्त से डरकर रहें, क्या हुकूमत क्या समाज,
कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज।’
यकीनन वक्त से बड़ी ताकत कोई दूसरी नहीं होती। वक्त उन लोगों को झटका जरूर देता है जो सत्ता, रसूख ओर ताकत के नशे में वह कर बैठते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए। अपने सामने उन्हें हर ताकत बौनी लगती है। उनका वक्ती रसूख इस गलतफहमी को ओर भी बढ़ा देता है, लेकिन करवट लेता है, तो फिर मौका नहीं देता। संतुलन बनाये रखने की जिम्मेदारी ऐसे लोगों की ही ज्यादा बनती है जो जनता की रहनुमाई की ताल ठोंकते हैं। अतिमहत्वाकांक्षाओं का बड़बोलेपन के
घोड़े की सवारी भी अच्छी नहीं होती। इनके सवार गिरते जरूर हैं। कोई दोराय नहीं कि जिंदगी में बैलेंस को बनाये रखना बहुत जरूरी है वरना गिरकर उठने में वो बात नहीं रहती। 

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