सोच का फर्क
सब्जी मंडी नहीं कह सकते उस जगह को क्योंकि वह एक चौड़ा रास्ता है उसके आस
पास रहीश और अमीर लोगों की कॉलोनियां हैं। उस चौड़े रास्ते पर कुछ ठेले वाले
सब्जियां बेच कर अपना परिवार चलाते हैं।
एक युवती सब्जी वाले से पूछती है - भईया ,भिन्डी क्या भाव है ?
सब्जी वाले ने कहा -बहनजी ,पचास रूपये किलो।
युवती -क्या कहा !पचास रूपये !! अरे बड़ी मंडी में चालीस में मिलती है …
सब्जीवाला -बहनजी वहां से लाकर थोड़ी थोड़ी मात्रा में यहाँ बेचना है में मुश्किल से
दस किलो बेच पाता हूँ ,मुझे तो उसी दस किलो की बिक्री से घर चलाना है
युवती -तो क्या करे हम ,हम भी मेहनत से कमाते हैं ,देख पेंतालिस में देता है तो
एक किलो दे दे ?
सब्जीवाला उसे एक किलो भिन्डी पेंतालिस के भाव से दे देता है और अनमने भाव से
बाकी के पैसे लौटा देता है
वह युवती घर लौटती है और अपने पति से बताती है कि किस तरह वह भाव ताल
करके सस्ती सब्जी लाती है। पति उसको गर्व से निहारता है और मॉल में खरीद दारी
के लिए ले जाता है। वह युवती पर्स पसंद करती है और उसे पेक करने का ऑर्डर दे
देती है यह देख उसका पति बोलता है -रुक ,जरा भाव ताल तय कर लेते है ,तुमने तो
उससे भाव भी नहीं पूछा और सामान पैक करने का भी कह चुकी हो ….
युवती बोली -आपकी सोच कितनी छोटी है ,ये लोग अपने को फटीचर नहीं समझेंगे ?
युवक बोला -अरे चीज खरीद रहे हैं ,भाव पूछने में क्या जाता है ,वाजिब होगा तो
लेंगे नहीं तो दुसरे से खरीद लेंगे
युवती ने कहा - देख नहीं रहे हो ,यहाँ सभी अपने से ज्यादा पैसे वाले लोग खरीदी
कर रहे हैं और चुपचाप बिल चूका रहे हैं ,आप मेरी इज्जत का कचरा करायेंगे मोल
भाव करके ,ज्यादा से ज्यादा सौ -दो सौ का फ़र्क होगा
मॉल से पर्स खरीद कर वो दरबान को दस रुपया टीप देकर बाहर निकल आते हैं
ये घटनाएँ छोटी हो सकती हैं मगर बहुत गहरा प्रभाव देश पर छोडती है। एक गरीब
मेहनत करके परिवार का पेट इमानदारी से पालना चाहता है तो हम उससे मोल
भाव करते हैं और वो बेचारा पेट की भूख की मज़बूरी को देख सस्ता देता है और एक
तरफ धन्ना सेठों की दुकानों पर मुहँ मांगे दाम भी देते हैं। कभी हमे पाँच रूपये बचाना
होशियारी लगता है तो कहीं सौ -दो सौ लुटाना वाजिब लगता है।
फैसला कीजिये खुद कि क्या आप सही कर रहे हैं ,आने वाले पर्व त्योहारों पर गरीब
लोगों से सडक पर छोटी छोटी वस्तुओं पर भाव ताव करके पैसे मत बचाईये ,जैसे
आप त्यौहार हर्ष से मनाना चाहते हैं वैसे इन मेहनत कश लोगों को भी त्यौहार के
दिन उनका माँगा मुल्य देकर उनके घर भी कुछ पल रौशनी के आ जाए ,ऐसा काम
कर दीजिये , आपके घर जलने वाले दीपक से कोई झोपडी में ख़ुशी आ जाए तो
आप इसमें सह भागी बनिये।
ठीक लगे यह विचार तो आगे अपने दोस्तों में शेयर कीजिये।
सब्जी मंडी नहीं कह सकते उस जगह को क्योंकि वह एक चौड़ा रास्ता है उसके आस
पास रहीश और अमीर लोगों की कॉलोनियां हैं। उस चौड़े रास्ते पर कुछ ठेले वाले
सब्जियां बेच कर अपना परिवार चलाते हैं।
एक युवती सब्जी वाले से पूछती है - भईया ,भिन्डी क्या भाव है ?
सब्जी वाले ने कहा -बहनजी ,पचास रूपये किलो।
युवती -क्या कहा !पचास रूपये !! अरे बड़ी मंडी में चालीस में मिलती है …
सब्जीवाला -बहनजी वहां से लाकर थोड़ी थोड़ी मात्रा में यहाँ बेचना है में मुश्किल से
दस किलो बेच पाता हूँ ,मुझे तो उसी दस किलो की बिक्री से घर चलाना है
युवती -तो क्या करे हम ,हम भी मेहनत से कमाते हैं ,देख पेंतालिस में देता है तो
एक किलो दे दे ?
सब्जीवाला उसे एक किलो भिन्डी पेंतालिस के भाव से दे देता है और अनमने भाव से
बाकी के पैसे लौटा देता है
वह युवती घर लौटती है और अपने पति से बताती है कि किस तरह वह भाव ताल
करके सस्ती सब्जी लाती है। पति उसको गर्व से निहारता है और मॉल में खरीद दारी
के लिए ले जाता है। वह युवती पर्स पसंद करती है और उसे पेक करने का ऑर्डर दे
देती है यह देख उसका पति बोलता है -रुक ,जरा भाव ताल तय कर लेते है ,तुमने तो
उससे भाव भी नहीं पूछा और सामान पैक करने का भी कह चुकी हो ….
युवती बोली -आपकी सोच कितनी छोटी है ,ये लोग अपने को फटीचर नहीं समझेंगे ?
युवक बोला -अरे चीज खरीद रहे हैं ,भाव पूछने में क्या जाता है ,वाजिब होगा तो
लेंगे नहीं तो दुसरे से खरीद लेंगे
युवती ने कहा - देख नहीं रहे हो ,यहाँ सभी अपने से ज्यादा पैसे वाले लोग खरीदी
कर रहे हैं और चुपचाप बिल चूका रहे हैं ,आप मेरी इज्जत का कचरा करायेंगे मोल
भाव करके ,ज्यादा से ज्यादा सौ -दो सौ का फ़र्क होगा
मॉल से पर्स खरीद कर वो दरबान को दस रुपया टीप देकर बाहर निकल आते हैं
ये घटनाएँ छोटी हो सकती हैं मगर बहुत गहरा प्रभाव देश पर छोडती है। एक गरीब
मेहनत करके परिवार का पेट इमानदारी से पालना चाहता है तो हम उससे मोल
भाव करते हैं और वो बेचारा पेट की भूख की मज़बूरी को देख सस्ता देता है और एक
तरफ धन्ना सेठों की दुकानों पर मुहँ मांगे दाम भी देते हैं। कभी हमे पाँच रूपये बचाना
होशियारी लगता है तो कहीं सौ -दो सौ लुटाना वाजिब लगता है।
फैसला कीजिये खुद कि क्या आप सही कर रहे हैं ,आने वाले पर्व त्योहारों पर गरीब
लोगों से सडक पर छोटी छोटी वस्तुओं पर भाव ताव करके पैसे मत बचाईये ,जैसे
आप त्यौहार हर्ष से मनाना चाहते हैं वैसे इन मेहनत कश लोगों को भी त्यौहार के
दिन उनका माँगा मुल्य देकर उनके घर भी कुछ पल रौशनी के आ जाए ,ऐसा काम
कर दीजिये , आपके घर जलने वाले दीपक से कोई झोपडी में ख़ुशी आ जाए तो
आप इसमें सह भागी बनिये।
ठीक लगे यह विचार तो आगे अपने दोस्तों में शेयर कीजिये।
No comments:
Post a Comment