7.10.13

सावधान मोदीजी यू टर्न लेना मना है-ब्रज की दुनिया

मित्रों,बात कई सौ साल पुरानी है। हमारे गाँव में एक चौबेजी रहा करते थे। उनको पुरोहिती का कामचलाऊ ज्ञान था लेकिन वे अपने आपको किसी महापंडित से कम नहीं समझते थे। एक दिन उन्होंने सोंचा कि वे चौबे क्यों कहलाते हैं उनके जैसे महाज्ञानी को तो कायदे से छ्ब्बे कहा जाना चाहिए। सों अपनी बड़ी-सी तोंद को संभालते हुए पंडितजी पहुँच गए काशी पंडितों की सभा में और रख दी अपनी मांग उनलोगों के सामने। सभा में आए हुए सारे पंडित आश्चर्य में पड़ गए कि वेद तो चार ही होते हैं फिर किसी को छब्बे की उपाधि कैसे दी जा सकती है? चौबे जी से जब पूछा गया कि वेद कितने होते हैं तो लगे बगले झाँकने। दंडस्वरूप चौबेजी के चौबे में से दो वेद कम कर दिए गए और बेचारे बन गए दूबे।
               मित्रों,ऐसा ही कुछ भारत के तत्कालीन लौहपुरूष लालकृष्ण आडवाणी के साथ भी हुआ था। आडवाणी जी ने मुसलमानों के वोट के लालच में पड़कर मो. अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बता दिया था और फिर प्रधानमंत्री बन पाना तो उनके लिए सपना बन ही गया वे भाजपा के और भारत के लौहपुरूष भी नहीं रह गए। दरअसल किसी भी राजनीतिज्ञ की एक छवि होती है और राजनीतिज्ञ जितना ही बड़ा होता है उसके लिए एकदम से यू-टर्न ले पाना उतना ही कठिन और खतरनाक होता है। जाहिर है कि तब आडवाणी जी ऐसा कर पाने में असमर्थ रहे थे और दुर्घटना के शिकार हो गए थे।
                            मित्रों,मैं भाजपा और तदनुसार भारत के वर्तमान लौहपुरूष श्री नरेन्द्र मोदी जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि वे हरगिज वैसी गलती न करें जैसी गलती आडवाणी जी ने तब की थी। उनको अपनी छवि में बदलाव लाना ही है,विकासवादी और प्रगतिशील दिखना ही है तो अपनी गाड़ी की धीरे-धीरे मोड़ें एकदम से यू-टर्न हरगिज न लें। मैंने माना कि शौचालय मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम शौचालय के महत्त्व को उसकी बिना देवालय से तुलना किए बता ही नहीं सकते। शौचालय अगर शारीरिक और सामाजिक गरिमा के लिए जरूरी है तो देवालय मानव की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति और उनको सचमुच का मानव बनाने के लिए अत्यावश्यक हैं इसलिए इन दोनों के बीच तुलना हो ही नहीं सकती। आप ही बताईए कि मात्र दस दिनों के अंतर पर स्वर्ग सिधारे दो महापुरूषों लाल बहादुर शास्त्री और डॉ. होमी जहाँगीर भाभा की महानता की तुलना कोई कैसे कर सकता है या फिर कोई कैसे महात्मा गांधी और मेजर ध्यानचंद के योगदान की तुलना कर सकता है?
                            मित्रों,मोदी जी को अपनी धर्मनिरपेक्षता को प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे एक आम हिन्दू की तरह जन्मजात धर्मनिरपेक्ष हैं और जो भी जन्मना हिन्दू राजनेता धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटते रहते हैं दरअसल वे शर्मनिरपेक्ष हैं धर्मनिरपेक्ष तो वे हैं ही नहीं। वे तो अपने भ्रष्टाचरण को छिपाने और जेल जाने से बचने भर के लिए फैजी टोपी का दुरूपयोग करते रहे हैं। जहाँ तक सबका मत प्राप्त करने का प्रश्न है तो जिस तरह भारत की जनता वर्तमान काल में अल्पसंख्यकवादी व देशद्रोही राजनेताओं द्वारा विभिन्न हितसमूहों में बाँट दी गई है वैसे में किसी भी दल को सबका मत मिल पाना प्रायः असंभव ही है। ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि मोदी जी का हाल एकहिं साधे सब सधे सब साधे सब जाए वाला हो जाए और वे न तो ईधर को रह जाएँ और न ही उधर के बिल्कुल अपने राजनैतिक गुरू आडवाणी जी की तरह। एक और सलाह मैं उनको देना चाहूंगा कि वे जरुरत भर ही बोलें और जितना भी बोलें सोंच-समझकर बोलें तो यह उनके और देश के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि हमारा अनुभव बताता है कि हम जितना ही ज्यादा बोलते हैं गलतियों की गुंजाईश उतनी ही ज्यादा होती है और मुँह से निकले हुए शब्द और धनुष से छूटे हुए वाणों को कभी भी वापस नहीं लिया जा सकता।

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

लालू को सजा न्याय या साजिश

मित्रों,भारतीय राजनीति के सबसे बड़े मशखरे लालू प्रसाद यादव को पाँच साल के कैद की कजा हो गई। कुछ लोग इसे ईंसाफ मान रहे हैं तो कुछ लोग साजिश लेकिन मैं समझता हूँ कि लालू को मात्र 5 साल की कैद और 25 लाख के जुर्माने की सजा होना न तो ईंसाफ है और न ही साजिश। अगर यह किसी साजिश का नतीजा होता तो घोटाले से संबंधित कई ट्रक कागजात पर उनके हस्ताक्षर कहाँ से आ गए? क्या वो हस्ताक्षर असली नहीं हैं? अगर वे सारे हस्ताक्षर असली हैं तो क्या लालूजी ने इन सब पर पूरे होशोहवाश में हस्ताक्षर नहीं किए हैं?
               मित्रों,लालूजी के समय सिर्फ पशुपालन विभाग में ही घोटाला हुआ हो ऐसा भी नहीं है। अलकतरा,मेधा,रजिस्ट्री,पुलिसवर्दी और बाढ़ राहत समेत लगभग सारे महकमों में जमकर घोटाले किए गए। क्या ये सारे घोटाले भी किसी विपक्षी दल की साजिश के परिणाम थे? क्या लालूजी के शासन में विपक्ष सरकार चला रहा था? लालूजी के शासनकाल में अपहरण उद्योग बिहार का एकमात्र उद्योग रह गया था और उनके साधू यादव वगैरह रिश्तेदारों की गुंडागर्दी भी चरम पर थी। उनके हाथों कब कौन आईएएस पिट जाएगा तब कोई नहीं जानता था। तो क्या उन अपहरणों और गुंडागर्दी के पीछे भी किसी की साजिश थी? लालू जी की बड़ी बिटिया मीसा भारती की शादी के समय साधू यादव के गुर्गों ने टाटा मोटर्स के शोरूम से सारी गाड़ियाँ और नाला रोड की फर्निचर दुकानों से सारे सोफे जबर्दस्ती उठा लिए थे। तो क्या इस जोर-जबर्दस्ती के पीछे भी किसी शत्रु का षड्यंत्र काम कर रहा था? जब लालूजी रेल मंत्री थे तब इसी साधू यादव ने पटना जंक्शन पर जबरन राजधानी एक्सप्रेस का प्लेटफॉर्म बदलवा दिया था। क्या शिल्पी-गौतम की हत्या भी विपक्ष की साजिश थी? फिर स्वनामधन्य साधू यादव ने सीबीआई को अपने खून का नमूना क्यों नहीं दिया? क्या साधू सिर्फ इसलिए कांग्रेस में शामिल नहीं हुए ताकि वे सोनिया से कहकर इस मामले की फाईल हमेशा-हमेशा के लिए बंद करवा सकें?
                मित्रों,अगर इन सारी गड़बड़ियों के पीछे कोई-न-कोई राजनैतिक साजिश थी तो यकीनन भारत के सारे नेता और सारे अपराधी निर्दोष हैं और वे सबके सब किसी-न-किसी गंदी साजिश की शिकार हुए हैं फिर चाहे वो टुंडा हो या भटकल या कोई और विनय शर्मा या राम सिंह। हद हो गई बेईमानी और बेशर्मी की। पहले एक राज्य के समस्त संसाधनों को खा गए और जब उसके लिए मामूली सजा हुई तो लगे साजिश का राग अलापने। उस दिन लालू जी की बुद्धि कौन-सा चारा चरने में लगी थी जब मोहरा फिल्म के निर्माण में चारा घोटाले का पैसा लगाया जा रहा था और जब उनकी आँखों के तारे डॉ. आरके राणा चारा घोटाले के पैसों से अपनी प्रेमिका को बॉलीबुड की स्टार नायिका बनाने का प्रयास कर रहे थे?
                              मित्रों,लालू के मामले में न्याय हुआ ही नहीं है सरासर अन्याय हुआ है। किसी भी भ्रष्टाचारी को जिसने सरकारी खजाने से भारी गबन किया हो सिर्फ जेल भेज देने भर से न्याय नहीं हो जाता। न्याय तो तब होता जब पूरे लालू परिवार की समस्त चल-अचल संपत्ति जब्त करके घोटाले की क्षतिपूर्ति की जाती। ये भी कोई बात हुई कि पहले दस-बीस पुश्तों के राज भोगने लायक माल खजाने से उड़ा लो और जीवन के अंतकाल में कुछ समय के लिए जेल खट लो। सवाल उठता है कि इससे भ्रष्टाचारी का बिगड़ा क्या? वो तो अकूत धन लूटने के अपने मूल उद्देश्य में कामयाब तो हो ही गया न? इसलिए मैं कहता हूँ कि लालू को और बिहार को न्याय तभी मिलेगा जब अन्य अभियुक्तों सहित उनकी और उनके परिवार की सारी चल-अचल संपत्ति उनसे छीन ली जाएगी और तत्कालीन भारत के सबसे बड़े घोटाले की क्षतिपूर्ति उससे की जाएगी।

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