सकरा प्रखंड (मुजफ्फरपुर) के एक गांव का गया राम गयासुद्दीन बन गया है। गया महादलित हैं। उसने हिन्दू धर्म छोड़ इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है। गया राम ने अपने शपथ पत्र में लिखा है कि मैं यह कदम इसलिए उठा रहा हूं कि हिन्दू धर्म में रहकर अपमान, शोषण, अत्याचार, गैर बराबरी अब नहीं सह सकता। उसने कहा है कि मरने के बाद मेरा अंतिम संस्कार भी इस्लाम धर्म के अनुसार किया जाये। बेटा एवं बहू ने भी धर्म परिवर्तन के लिए हामी भर दी है।
यह खबर सुन कर मैं स्तब्ध हूँ। मेरे भीतर कई सवाल कौंध रहे हैं। मित्रों आप सभी से गुजारिश है कि मेरी जिज्ञासा शांत करें-
१. आखिर वह कौन सी परिस्थिति होती है जब गया राम, आंबेडकर जैसे हिन्दू धर्म परिवर्तन करने को मजबूर होते हैं? इसके लिए कौन-कौन जिम्मेवार होते हैं?
२. ओमप्रकाश वाल्मीकि जैसे साहित्यकारों का निधन हो जाता है और देश की मिडिया में सुर्खियां क्यों नहीं बनती है यह खबर?
३. हम किस तरह के हिंदुत्व का डंका बजा रहे हैं? क्या गया का गयासुद्दीन बनना कथित हिंदुत्व के लिए शर्म का विषय नहीं हैं ?
४. सवर्ण-अवर्ण, दलित-महादलित और सर सोलकन जैसे शब्दों के सूत्र से हम हिंदुत्व का पताका लहरा कर कैसा समाज बनाना चाहते हैं?
५. कबीर, रैदास, झलकारी बाई, हीरा डोम, चतुरी चमार, ओमप्रकाश वाल्मीकि, ज्योतिबा फूले जैसे साहित्यकार व समाज सुधारक क्यों उपेक्षित हैं?
६. प्रेमचंद, निराला, नागार्जुन, मीरा से क्या हमॆं सीख लेनी चाहिए?
-- Anita Ram, Muzaffarpur
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