आम तौर पर ईश्वर हर किसी को छप्पर फाड़ कर नहीं देता लेकिन केजरीवाल को
भगवान् ने लेंटर फाड़ कर दिया है । दिल्ली दी है । अब उनसे दिल्ली संभल नहीं
रही है । लेंटर भारी होता है । केजरीवाल को चाहिए था कि वे लोकसभा को छोड़कर दिल्ली सँभालते । दिल्ली दिल है भारत का , दिल्ली सम्भाल लेते तो अन्य राज्यों के दरवाजे भी सम्भाल लेते । लेकिन क्या करें ? उन्हें जल्दी पड़ी है । पी एम् बनना है ।
अब उनके क़ानून मंत्री जो कर रहे हैं , हो सकता है , हर जगह उनका दोष न हो
लेकिन एक प्रोसेस होता है और जब तक आप कानूनी प्रक्रिया द्वारा इन को
बदलेंगे नहीं तब तक आपको उन पर चलना पड़ेगा क्योंकि अब आप मूवमेंट नहीं चला रहे , सरकार चला रहे । एक बात जगजाहिर है , कानून मंत्री को ज्ञान नहीं है ।
लेकिन कोई बात नहीं , वे मदद ले सकते थे । लेकिन स्वीकार कैसे करें ?
ज्ञान नहीं है । अहम् है । केजरीवाल भी नहीं मान रहे कि उनके मंत्री को
ज्ञान नहीं । अरे ! नीयत तो आपकी ठीक है न ? फिर क्या बात है ? ज्ञान भी
समय पर हो जाएगा । पर अपनी हरकतों से अपना अज्ञान तो न बखारें । इसी से यह
कुल मिलाकर ड्रामा लग रहा है । केजरीवाल के काम का मूल्यांकन सौ दिन बाद होना चाहिए । पहले भी लोग सौ दिन का तो इन्जार करते रहे हैं । अब हमें भी समझना चाहिए कि वे बुरे फंस गए हैं इसलिए धैर्य से उन्हें सौ दिन देने चाहिए और काम करने देना चाहिए । सौ दिन बाद पूछा जाए कि आपने क्या किया । केजरीवाल भी सौ दिन का समय मांग लें । कहें , सौ दिन बाद पूछना । और फिर चुपचाप काम करें । लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है ।
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