21.1.14

गणतन्त्र और बिका हुआ समाचार

गणतन्त्र और बिका हुआ समाचार 

गणतन्त्र का एक सशक्त आधार स्तम्भ है समाचार पत्र ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटनेट
कि सामाजिक साईट।

आम आदमी जब समाचार पत्र खरीदता है तो वह यह सोच कर नहीं खरीदता है की इस पत्र
का मालिक कौन है ,किस दल के प्रति लगाव या द्वेष रखता है। आम आदमी को देश का
दैनिक सही चित्र चाहिए इसलिए वह समाचार पत्र खरीदता है ,टी वी पर खबरे देखता सुनता
है मगर बहुत अफसोस !! हम आँखों से जो चित्र देखते हैं और कानों से सुनते हैं वह भी यथार्थ
से कोसों दूर होते हैं और हम भ्रम में पड़ जाते हैं क्योंकि कोई चैनल उस खबर के पक्ष में
दलील कर रहा होता है और कोई विपक्ष में। कोई सत्य को गलत ठहराता है तो कोई झूठ को
सही ,ऐसा क्यों हो रहा है? पैसा कमाने का धन्धा नहीं होते हैं समाचार मीडिया। समाचार पत्र
और मीडिया खोट का धंधा होता है और उस खोट की पूर्ति जनता से दान लेकर पूरी की जा
सकती है ,मगर आज हमारे घर में झूठी खबरें दबे कदम से घुसती जा रही है ,मीडिया बार-
बार झूठी खबरों को ,सामान्य अव्यवस्था को इस तरह चटकारे लेकर पेश करता है जैसे
वह खबर ही देश कि मूल समस्या है। बच्चा खड्डे में गिर गया उसका जीवंत प्रसारण,किसी
नेता ने कुछ कहा तो चार पंडितों को बुलाकर उसकी सुविधापरक व्याख्या करवाना। एक
ही बात को साम ,दाम ,दण्ड और भेद से बार-बार तौलते रहना जब तक नयी सनसनी खबर
हाथ में नहीं आ जाती।

         मीडिया लम्पट साधू के कारनामे कई दिनों तक दिखाता रहा,क्या उससे आम भारतीय
के बौद्धिक ज्ञान का विकास हुआ ? फिर क्यों खुद के कमाने के चक्कर में देश के लोगों का
वर्किंग समय ख़राब किया। हमारा मीडिया नकारात्मक खबरों को हाथों हाथ ब्रेकिंग न्यूज के
नाम से गरमागरम परोसता है ,उन ख़बरों को दिखाने से पहले यह नहीं सोचता है कि क्या
इनको दिखाने से देश का भला होगा।

  बहुत से समाचार पत्र मुख्य पेज पर कम महत्व वाली मगर चटाके दार खबर छाप देते हैं।
नेताओं के सकारात्मक कथन की व्याख्या मनगढ़ंत तरीके से लिख देते हैं। कुछ दिन पहले
देश के एक नेता ने कुत्ते के बच्चे का उदाहरण दे दिया और मीडिया ने उसका बेज़ा मनगढ़ंत
भावार्थ निकाला कि देश के एक वर्ग को लगा जैसे उसे कुत्ता कहा हो ,क्यों बचकानी हरकतें
करता है मीडिया ,क्यों वास्तविक भाव नहीं खोजता है? क्यों जल्दबाजी में है ?

      क्या मीडिया अपरिपक्व है या हर खबर में खुद का लाभ देखता है? इस देश में हिन्दू -
मुस्लिम सोहार्द के किस्से हर दिन बनते हैं मगर वो खबरों में जगह नहीं पाते मगर छोटा
सा दँगा मुख्य खबर बन जाता है। फर्जी खबरे और गुणगान ,सामान्य गुण को बड़ा और
बड़े फैसले को छोटा हमारा मीडिया बता देता है। किसी के छींक देने से देश को फायदे बता
देता है और किसी के पसीने बहाने को वायु प्रदूषण का नाम दे देता है।

   मीडिया अपने कर्तव्य को समझे ,पत्रकार राष्ट्र धर्म का निर्वहन करें। सही और जनहित
की  खबरों का प्रसारण निर्भीक रूप से करें। सकारात्मक खबरों को ज्यादा समय दें तभी
देश को ताकत मिलेंगी।            

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