24.1.14

फूलों का गणतन्त्र

फूलों का गणतन्त्र 

एक विशाल बगीचे में विभिन्न तरह के फूलों के पौधे लगे थे ,सब में अलग-अलग
सौरभ और सब खिले-खिले से। एक दिन बगीचे में एक बड़े फूल ने सब पौधोँ से
कहा- हम अलग-अलग किस्म और जाति के फूल हैं और हमारी खुशबु भी भिन्न -
भिन्न है इस गुण के कारण हमारे में विभिन्नता में एकता के दर्शन नहीं होते हैं ,
क्यों नहीं हम सब सुगंध निरपेक्ष हो जाए ताकि हमारे में सभी को एकता नजर
आये। कुछ पौधों को समझा कर ,कुछ को धौंस दिखाकर ,कुछ को समाज द्रोह
का डर दिखा कर सुगंध निरपेक्ष बना दिया गया। अब उस बगीचे से मीठी सुगंध
गायब हो गयी। भँवरे ,मधुमक्खियाँ ,तितलियाँ ,पक्षी सब अगले दिन हतप्रभ
रह गये। उन सबने फूलों से पूछा -अरे!तुम लोग सुगंध विहीन क्यों हो गए हो ?

बड़े फूल ने कहा -इस बगीचे में हम विभिन्न प्रजाति के पुष्प साथ -साथ रहते हैं
हमारे रंग और सुगंध भी अलग-अलग है ,अलग-अलग सुगंध के कारण हम
एकता के सूत्र में नहीं बंध पा रहे थे इसलिए हमने सुगंध निरपेक्ष हो जाने का
निर्णय लिया है।

  उस बड़े फूल का निर्णय सुन तितलियों ने उस बगीचे में मंडराना छोड़ दिया ,
भँवरे बगीचे से दूर हो गए ,मधुमक्खियों ने दूसरी जगह छत्ता बनाना शुरू
कर दिया ,कुछ दिनों में बगीचा वीरान हो गया। यह सब बदलाव देख मोगरे
के छोटे फूल ने बड़े फूल से पूछा -ज्येष्ठ श्री ,क्या इसी का नाम निरपेक्षता है ?
क्या यह हमारी एकता की सही और सच्ची पहचान है ?इस निरपेक्षता से हमें
क्या मिला ?हमने अपना गुण खोया और साथी तितलियों ,भंवरों, मधुमक्खियों 
को खोया ?हम को देख कर प्रसन्न होने वाले मानव की प्रसन्नता को खोया ?

बड़े फूल ने कहा -एकता के दर्शन के लिए कुछ तो क़ीमत चुकानी होती है  …

मोगरे ने कहा -ज्येष्ठ ,मुझे आपकी निरपेक्षता जँच नहीं रही है ,मैं तो अपने
सुगन्धित स्वरुप से खुश हूँ और उस स्वरुप में जाना चाहता हूँ।

मोगरे की बात का बड़े फूल ने विरोध किया मगर मोगरा नहीं माना और पुरानी
तरह से फिर खुशबु बिखरने लग गया.मोगरे कि मिठ्ठी खुशबु देख भँवरे उस
के आस पास गीत गाने लगे,तितलियाँ फुदकने लगी ,मधुमक्खियाँ पराग
चूसने लगी। बाकी फूल एक दो दिन ये सब देखते रहे और फिर साथी भँवरों से
पूछने लगे -तुम सब मोगरे को गीत सुनाते हो ,हमारे पास क्यों नहीं फटकते ?

भँवरे ने उत्तर दिया -आप झूठी एकता का प्रदर्शन करने लगे हैं ,जब आप
साथ रहकर खुशबु बिखरते थे तब हम लोग आपसे प्रेरणा लेते थे कि आप
अलग-अलग किस्म के होते हुए भी सब मिलकर के वायु मंडल को सुगंधित
कर देते हैं ,आपके सामीप्य से निकल कर पवन देव भी अपनी निरपेक्षता
छोड़ देते हैं और आपके गुणों को दूर तक अपने साथ फैलाते रहते हैं।
महत्व निरपेक्षता का नहीं अपने गुणों की सुगंध को फैलाने का है।

उसकी बात सुन कर सभी पौधे पूर्ववत महकने लगे। 

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