25.1.14

नरेश-राजेश के रूप में भाजपायी गुटबंदी ना केवल सड़क पर आ गयी है वरन नगर खामियाजा भी भुगतेगा
अपने आप को अनुशासित पार्टी कहने वाली भाजपा का अनुशासन तार तार हो गया है। भाजपा की गुटीय लड़ाई विस चुनाव के बाद सड़कों पर दिखायी देने लगी है। सिवनी विस से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने वाले जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर और मतदान के दिन भाजपा से निलंबित किये गये पालिका अध्यक्ष के बीच चल रही खींचतान खुले आम सड़कों पर दिखायी देने लगी है। अब तो भाजपा की आपसी गुटबंदी नगर विकास में खुलेआम बाधक बनती भी दिखने लगी है।  हार की समीक्षा करने के लिये या कांग्रेस के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिये अभी तक ना तो प्रदेश कांग्रेस ने कोई बैठक की और ना ही जिला कांग्रेस ने। कुछ ही महीने बाद होने वाले लोस चुनाव के लिये ऐसे हालात में कांग्रेस अपने आप को तैयार करेगी? कांग्रेस में यदि भीतर घात करने और समय समय पर धोखा देने वालों को पुरुस्कृत करने का सिलसिला यदि ऐसे जारी रहा तो भला राहुल गांधी प्रदेश में कांग्रेस को कैसे मजबूत कर पायेंगें? इन दिनों देश में आम आदमी पार्टी का आकर्षण बना हुआ है। दिल्ली में सरकार बनाने के बाद अरविंद केजरीवाल के चर्चे हर जगह हो रहे है। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का माना है कि चूंकि आप का प्रभाव शहरी क्षेत्रों और युवाओं में अधिक दिखायी देता है तो वह भाजपा को नुकसान पहुंचायेगी तो वहीं दूसरी ओर इसके विपरीत यह भी दावा किया जा रहा है कि धर्मनिरपेक्ष वोटों में आप जो सेंध लगयोगी उससे कांग्रेस पर भी असर पड़ेगा। 
सड़कों पर आयी भाजपा की गुटबाजी विकास में बनी बाधक-अपने आप को अनुशासित पार्टी कहने वाली भाजपा का अनुशासन तार तार हो गया है। भाजपा की गुटीय लड़ाई विस चुनाव के बाद सड़कों पर दिखायी देने लगी है। सिवनी विस से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने वाले जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर और मतदान के दिन भाजपा से निलंबित किये गये पालिका अध्यक्ष के बीच चल रही खींचतान खुले आम सड़कों पर दिखायी देने लगी है। बीते दिनों नगर पालिका की सामान्य सभा की बैठक से भाजपा पार्षदों का बहिष्कार फिर खाना खाते एक पत्रकार द्वारा खीचीं गयी फोटो को भाजपा नेताओं द्वारा जबरन डीलिट कराने का मामला अखबारों में सुर्खियों में छाया रहा।परिषद की बैठक से बहिष्कार करने वाले कुछ पार्षदों ने ही यह बयान देकर चौंका दिया कि उन्हें जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर ने ही बैठक में नहीं आने दिया। भाजपा नेताओं की ही यह मांग भी अखबारों में प्रकाशित हुयी कि जिला भाजपा अध्यक्ष के पद से त्यागपत्र दे चुके नरेश दिवाकर का स्तीफा मंजूर किया जाये और पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी का निलंबन निरस्त किया जाये। सिवनी विस से दो बार विधायक रह चुके दिवाकर और उनके समर्थकों का ऐसा मानना है कि पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी नें भीतरघात किया है। इसी के चलते विवाद जारी है। लेकिन पालिका की बैठक से जिसमें नगर विकास के कई मामलों पर चर्चा होनी थी उस बैठक से भाजपा पार्षदों का बहिष्कार समझ से परे है। यदि भाजपा पार्षदों या जिला भाजपा अध्यक्ष को किसी मामले में आपत्ति थी तो उसे बैठक में जाकर उठाया जा सकता है। क्या दिवाकर यह नहीं जानते थे कि उनके ऐसा करने के बाद भी पालिका में ना केवल कोरम पूरा हो जायेंगा वरन प्रस्ताव पास भी हो जायेंगें। वैसे भी प्रदेश में भाजपा की सरकार और नगर पालिका रहते हुये भी शहर को भाजपा की गुटबाजी का बहुत खामियाजा उठाना पड़ा है। यदि जिले के शीर्ष भाजपा नेताओं की पालिका अध्यक्ष से नहीं पटती है तो बजाय शहर के विकास में अडंगा डालने के काम्पोटीशन में पालिका अध्यक्ष से बड़ी उपलब्धि शहर को दिलाते तो जनता दोनों की जय जयकार करती। लेकिन अफसोस की ऐसा नहीं हो सका और आज भी शहर विकास के कई ऐसे प्रस्ताव प्रदेश में इसी खींचतान के चलते लंबित पड़े है जो कि मील के पत्थर साबित हो सकते है। अब तो भाजपा की आपसी गुटबंदी नगर विकास में खुलेआम        बाधक बनती भी दिखने लगी है।
हार के सदमे से राहुल कैसे उबारेंगंे प्रदेश में कांग्रेस को?-विधानसभा चुनावों में कांग्रेस शर्मनाक हार के सदमे से अभी तक उबर नहीं पायी है। हार की समीक्षा करने के लिये या कांग्रेस के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिये अभी तक ना तो प्रदेश कांग्रेस ने कोई बैठक की और ना ही जिला कांग्रेस ने। कुछ ही महीने बाद होने वाले लोस चुनाव के लिये ऐसे हालात में कांग्रेस अपने आप को तैयार करेगी? हालांकि प्रदेश कांग्रेस कें अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया का स्तीफा मंजूर करके कांग्रेस ने प्रदेश के युवा सांसद और टीम राहुल के सदस्य अरुण यादव को नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले दिनों भोपाल का दौरा किया। उन्होंने देश भर से आयी महिला प्रतिनिधियों से कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल किये जाने वाले मुूद्दों पर चर्चा कर जानकारी ली है। इसके अलावा राहुल गांधी ने प्रदेश भर के जिला कांग्रेस,ब्लाक कांग्रेस अध्यक्षों,प्रदेश प्रतिनिधयों और 2013 के विस चुनाव के जीते और हारे प्रत्याशियों से भी चर्चा कर हार के कारणों को जानने की कोशिश की है। लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की हालत सुधारने के लिये हार के कारणों को जानना भी जरूरी नहीं है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि हार के जो भी कारण है उनका निदान किया जाये और कांग्रेस को हराने वाले कांग्रेसियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाये। लेकिन आने वाले लोस चुनावों को देखते हुये ऐसा लगता नहीं है कि ऐसा कुछ हो पायेगा। लोकसभा चुनाव जीतने के लिये यह भी जरूरी है कि प्रदेश के हर लोस क्षेत्र के उन प्रमुख मुद्दों और विकास कार्यें को प्राथमिकता के आधार पर विचार कर पूरा करें जिसके लिये जन मानस में कांग्रेस के खिलाफ जनाक्रोश है। कांग्रेस में यदि भीतर घात करने और समय समय पर धोखा देने वालों को पुरुस्कृत करने का सिलसिला यदि ऐसे जारी रहा तो भला राहुल गांधी प्रदेश में कांग्रेस को कैसे मजबूत कर पायेंगें? यह एक      शोध का विषय बना हुआ है।
किसे नुकसान पहुचायेगी आप?-इन दिनों देश में आम आदमी पार्टी का आकर्षण बना हुआ है। दिल्ली में सरकार बनाने के बाद अरविंद केजरीवाल के चर्चे हर जगह हो रहे है। हालांकि उनके सरकार चलाने के तरीके और उनके मंत्रियों के कारनामे भी सियासी हल्कों में चर्चित है। लेकिन इसके पक्ष और विपक्ष में अलग अलग तर्क दिये जा रहें है।जिले में भी आप की सदस्यता का अभियान चल रहा है। उनका दावा है कि जिले में तकरीबन दस हजार सदस्य बन चुके है। अब इस बात के कयास लगाये जा रहें हैं कि जिले की दोनों लोकसभा सीटों याने मंड़ला और बालाघाट से आप पार्टी चुनाव लड़ेगी या नहीं? और यदि लड़ेगी तो कांग्रेस या भाजपा किसके वोटों में सेंध लगायेगी?कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का माना है कि चूंकि आप का प्रभाव शहरी क्षेत्रों और युवाओं में अधिक दिखायी देता है तो वह भाजपा को नुकसान पहुंचायेगी तो वहीं दूसरी ओर इसके विपरीत यह भी दावा किया जा रहा है कि धर्मनिरपेक्ष वोटों में आप जो सेंध लगयोगी उससे कांग्रेस पर भी असर पड़ेगा। अभी यह कहना मुश्किल है कि आप भाजपा और कांग्रेस के कितने प्रतिशत मतों पर असर करेगी?एक संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि कहीं ऐसा ना हो जाये कि आप दोनों ही पार्टियों के मतों में बराबरी की सेंध लगाकर चुनावी राजनैतिक समीकरण को प्रभावित ही ना करें। वैसे तो लोस चुनाव के मुद्दे अलग होते है लेकिन दस साल से केन्द्र में सरकार चलाने वाली कांग्रेस को विपक्ष कई मामलों में कठघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहा है। वहीं दूसरी ओर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक छवि और बड़बोलापन भी चुनावी मुद्दा बन सकता है। समस्याओं को गिनाना एक अलग बात होती है लेकिन जो अपने आप को विकल्प के रूप में देश के सामने रख रहा है यदि वह उनका निदान ना बताये तो कोई महत्व नहीं होता। रहा सवाल आप पार्टी का तो उसका राष्ट्रीय स्वरूप अभी नहीं है लेकिन इन चंद महीनों में वह कितना कुछ कर पायेगी?उसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी।“मुसाफिर“   
दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
21 से 27 जनवरी 2014 से साभार      

No comments:

Post a Comment