मित्रों,श्री केजरीवाल ने 40000 रुपए मासिक की पेंशन और दिल्ली में ताउम्र एक बंगले पर अपने कब्जे को सुनिश्चित करते हुए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया है। श्रीमान का झूठा और आधारहीन आरोप है कि भारत के सबसे धनवान व्यक्ति मुकेश अंबानी ने कांग्रेस और भाजपा को एक कर दिया है। यह तो नीरा राडिया प्रकरण में ही साबित हो गया था कि भारत की वर्तमान केंद्र सरकार को वास्तव में मुकेश अंबानी चला रहे हैं। यह तो स्थापित तथ्य है फिर नए सिरे से कांग्रेस पर आरोप लगाकर केजरीवाल क्या साबित करना चाहते हैं और क्या प्राप्त करना चाहते हैं? इससे पहले जब भाजपा की सरकार केंद्र में थी तब तो अंबानी परिवार की नहीं चलती थी और उसको बाँकी उद्योगपतियों से इतर कोई विशेष लाभ नहीं पहुँचाया गया था। फिर इस मामले में भाजपा को घसीटने का केजरीवाल का क्या औचित्य है? क्या यह आरोप भी आप विधायक मदनलाल के माध्यम से लगाए गए आरोपों की तरह मात्र पब्लिसिटी स्टंट नहीं है?
मित्रों,श्री केजरीवाल ने मोदी से अंबानी के बारे में राय मांगी है। क्या उन्होंने ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं किया है क्योंकि अंबानी भी मूल रूप से गुजराती है? मोदी ने तो टाटा,बिरला सहित सारे बड़े उद्योगपतियों के कारखाने गुजरात में स्थापित करवाए हैं और खुद पहल करके करवाए हैं फिर सिर्फ अंबानी पर ही मोदी से क्यों राय मांगी जा रही है? अगर मोदी ने बाँकी उद्योगपतियों की उपेक्षा करके अंबानी को कोई लाभ पहुँचाया है और इस तरह का कोई सबूत झूठ शिरोमणि श्री श्री केजरीवाल के पास है तो हम मीडिया के लोग उसका स्वागत करेंगे उसे अविलंब मीडिया के सामने प्रस्तुत किया जाए। वरना केजरीवाल जी बेबुनियाद बातें करना बंद करें क्योंकि उनकी कलई दिल्ली के 49 दिन के उनके कुशासन ने खोलकर रख दी है। श्री केजरीवाल न तो देश को सुशासन दे सकते हैं,न ही भ्रष्टाचार ही दूर कर सकते हैं वे तो बस अराजकता पैदा कर सकते हैं और जनता को दिन-रात झूठ बोलकर गुमराह कर सकते हैं,धोखा दे सकते हैं। देश-विदेश की भारतविरोधी ताकतों से अरबों-खरबों का बेहिसाब चंदा इकट्ठा कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि केजरीवाल ने पिछले 49 दिनों में यह साबित कर दिया है कि वे सिर्फ हंगामा कर सकते हैं सूरत को बदलना उनके बूते का रोग है ही नहीं। हम उन चंद भाग्यशाली व्यक्तियों में से हैं जिसने केजरीवाल की असलियत को तभी समझ लिया था जब वे दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार कर रहे थे।
मित्रों,इन दिनों कांग्रेस पार्टी जोर-शोर से प्रचार कर रही है कि मोदी के चाचा ने कैंटिन का ठेका ले रखा था। मैं उन कांग्रेस के झूठे,लफ्फाज अहमकों से पूछना चाहता हूँ कि प्रधानमंत्री तो श्री वरूण गांधी के चाचा भी थे फिर युवराज का दर्जा सिर्फ राहुल जी को ही क्यों प्राप्त है? क्यों कांग्रेस ने राजीव के छोटे भाई संजय को भुला दिया है? क्यों आज भी उनकी विधवा श्रीमती मेनका गांधी को गांधी परिवार में सदस्य का दर्जा प्राप्त नहीं है? जब वरूण के लिए पिता और चाचा में इतना बड़ा अंतर है तो फिर मोदी के लिए चाचा और पिता एकसमान कैसे हो गए? हो सकता है कि मोदी के चाचा धनवान हों मगर पिता गरीब हों जैसे कि राहुल कांग्रेस के युवराज है और वरूण कुछ भी नहीं हैं।
मित्रों,कांग्रेस ने किसी चायवाले के संगठन से यह प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लिया है। मैंने तो बिहार में कहीं भी चायवालों का संगठन नहीं देखा फिर गुजरात में उनका कौन-सा संगठन इस चुनावी मौसम में पैदा हो गया और अगर ऐसा कोई संगठन है भी तो क्या वह 40-45 साल पुराना है और क्या श्री मोदी के पिता दामोदर मोदी उसके सदस्य थे? वास्तव में कांग्रेस के ये अहमक नेता मोदी पर चाय संबंधी बयान देकर फँस गए हैं और इसलिए इन्होंने चायवालों का झूठा संगठन खड़ा करके और उसको प्रलोभन देकर ऐसा बयान दिलवाया है। अभी तो कांग्रेस पार्टी ने यह साबित करने की कोशिश ही की है कि मोदी की चाय की दुकान नहीं थी हमें तो उस दिन का भी इंतजार है जब वह यह कहेगी कि चाय पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और ऐसा वो चायपत्ती के पैकेटों पर भी छपवाएगी।
मित्रों,यह कोई संयोग नहीं है कि कांग्रेस ने मोदी के बारे झूठ की यह खेती तब नए सिरे से शुरू की है जबकि केजरीवाल सरकार ने खुदकुशी कर ली है और लोकसभा के चुनाव में हाथ आजमाने के लिए ताल ठोंकना शुरू कर दिया है। जाहिर है कि पहले भी कांग्रेस और केजरीवाल में मिलीभगत थी और आज भी है। अंत में एक शेर कलियुगी रणछोड़,हर बार अपनी जिम्मेदारियों को छोड़कर पलायन कर जानेवाले केजरीवाल सर के नाम-
झूठ और मक्कारी है यह इसे ईबादत का नाम न दो,
तुमने खुदकुशी की है इसे शहादत का नाम न दो।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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