6.2.14

धर्म एव हतो  हन्ति , धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्मात्धर्मो न हन्तव्यो , मा  नो धर्मो हतोवधीत् ॥ मनुस्मृति ८,१५
अर्थात्
मारा हुआ धर्म मारने वाले को ही मार देता है और रक्षा किया हुआ धर्म अपने रक्षक की  ही रक्षा करता है । इसलिए धर्म का हनन नहीं करना चाहिए , ऐसा न हो कि हनन किया हुआ धर्म हमें नष्ट कर दे ।
यानि यदि हम धर्म की  रक्षा नहीं करते हैं यानि धर्म को मार देते हैं तो यही मरा हुआ धर्म हमें मार देता है और यदि हम धर्म की  रक्षा करते हैं तो यही धर्म हमें बचाता है यानि धर्म हमारी रक्षा करने के लिए ही होता है । इसलिए धर्म को बचाएं । कहीं ऐसा न हो कि मारा गया धर्म हमें ही न मार दे ।


                                 डॉ द्विजेन्द्र शर्मा , हरिपुर कलां , देहरादून

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