23.3.14

कोई बुराई नहीं है हर हर मोदी में । 
दिग्विजय सिंह के बयान के बाद जिस प्रकार से शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी हर हर मोदी के विरोध में उतर आये हैं वह बहुत ही हास्यास्पद सा मामला है । ये वही शंकराचार्य हैं जिनसे जब एक पत्रकार ने यह पूछ लिया था कि यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमन्त्री बनते हैं तो ……… इतना कहते ही इन्होने उस पत्रकार महोदय के मुह पर एक थप्पड़ मार दिया था । यही वे शंकरचार्य हैं जिन्होंने सोनिया गांधी के अमेरिका में इलाज के दौरान भारत में उनके स्वास्थ्य  लाभ के लिए यज्ञ करवाया था । इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन जिस पद पर वे बैठे हैं उसमे उनके हर कार्य पर नजर राखी ही जायेगी । यदि शंकराचार्य  दिग्विजय सिंह जी की  टिपण्णी से पहले यह सब कह देते तब तो बात समझ आती लेकिन अपने राजनैतिक शिष्य की  आपत्ति के बाद शंकराचार्य को होश आना कि यह तो गलत है , विषय को ही संदिग्ध बना देता है । 
खैर , आइये , बात करें , हर हर मोदी की ।
जो बेकार की  बातें की  जा रही हैं उनका निस्तारण किया जाना जरूरी है । 
क्या डॉक्टर भगवान् होता है ? यदि नहीं तो क्या डॉक्टर को भगवान् कहना भगवान् का अपमान नहीं है ? यदि हाँ तो क्या खराब डॉक्टर को हम भगवान् मानेंगे या नहीं ? इस झगड़े में पड़ना चाहेंगे आप ? नहीं न ? तो फिर हर हर मोदी में क्यों ?
क्या जनता जनार्दन होती है ? जनार्दन यानि विष्णु । जनता को भी नेता की  निगाह में भगवान् का दर्जा दिया गया है । तो क्या यह भगवान् विष्णु का अपमान है ? यदि हाँ तो फिर अब तक आपत्ति क्यों नहीं ? और यदि नहीं तो फिर भावना क्या है ? और यदि उस विष्णु रूपा जनता ने हर हर मोदी कह दिया तो फिर हर हर मोदी में बवाल क्यों ?
शंकराचार्य स्वरूपानंद जी तो पार्टी विशेष के प्रति लगाव रखने के लिए जाने जाते हैं लेकिन आदि शंकराचार्य ने ब्रह्म सूत्र की  रचना की  । स्वरूपानंद जी ने भी ब्रह्मसूत्र अवश्य ही पढ़ा होगा । उसका पहला सूत्र है - तत् त्वम् असि । यानि वह तुम हो । यानि वह ब्रह्म तुम हो । यानि पहले ही सूत्र में गुरु शिष्य को समझाता है - तुम ब्रह्म हो । तो क्या यह उस ब्रह्म का अपमान हो गया । शंकराचार्य जी ने यह सीखा भी होगा और सिखाया भी होगा । तो क्या यह ब्रह्म का अपमान हो गया ।
फिर शिष्य से कहा जाता है कि वह बोले और आत्मसात करे - अहम् ब्रह्मास्मि । यानि मैं ब्रह्म हूँ । तो क्या यह ब्रह्म का अपमान हो गया ? शंकराचार्य विद्वान् हैं और यह भी उन्होंने पढ़ा होगा अवश्य ही । तो फिर हर हर मोदी में बवाल क्यों ?
शास्त्रों में कहा गया है कि - शुनि चैव श्वपाके च पंडिता समदर्शिनः । यानि पंडित लोग कुत्ते में और चांडाल में भी भेद नहीं करते । वे कुत्ते में और चांडाल में भी उस ही ब्रह्म को देखते हैं  जिसे वे स्वयं में ढूंढते हैं । तो फिर यहाँ पर किसका अपमान हो गया ? क्या कुत्ते और चांडाल में उसी ब्रह्म को देखना ब्रह्म का अपमान हो गया ? यदि नहीं तो फिर हर हर मोदी में बवाल क्यों ?
श्रीमद्भागवत में लिखा है कि भगवान् कहते हैं कि जो भक्त निरपेक्ष भाव से जीवन यापन करता है मैं उसके पैरों की धूल  से अपने को पवित्र कर लेता हूँ । क्या भगवान् अपना अपमान कर रहे हैं ? इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया कहने पर तो कुछ नहीं हुआ था ? वाजपेयी जी ने इंदिरा गांधी जी को दुर्गा कहा था तब तो दुर्गा जी का कोई अपमान नहीं हुआ था ? पांच दिन बाद नवरात्रों में कन्या पूजन उसी दुर्गा भावना से होने वाला  है तब तो देवी का कोई अपमान नहीं होगा तो फिर यह व्यर्थ की  बकवास क्यों ?
यह बकवास इसलिए क्योंकि जिस प्रकार पापी अपने पाप से मरता है वैसे ही कांग्रेस अपने आप ही ख़त्म होगी । इस प्रकरण से भी नरेंद्र मोदी जी को ही फायदा होगा क्योंकि प्रकृति ऐसा ही चाहती है ।
इसलिए जोर से बोलिये -
हर हर मोदी , घर घर मोदी ।
क्योंकि शास्त्र कहता है - शिवोहम्  यानि मैं शिव हूँ । यानि भक्त को कहा गया है कि वह स्वयं को शिव समझे । अब जब भक्त को यह कहा गया है कि वह स्वयं को शिव समझे तो फिर समस्या क्या है हर हर मोदी में । 

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