31.3.14

सियासत के रंग ।(गीत)


सियासत के रंग ।(गीत)

ये  सियासत के रंग  भी  बड़े अजीब  होते  हैं..!
अवाम  से ज्यादा  जहाँ, नेता  गरीब  होते  हैं ।

अन्तरा-१.

यहाँ - वहाँ, जहाँ - तहाँ, मिले जाने कहाँ - कहाँ..!
कलेजा  कतरने वालों के  हज़ार  मुरीद  होते  हैं..!
ये   सियासत के   रंग  भी  बड़े   अजीब  होते  हैं..!

मुरीद= अनुयायी


अन्तरा-२.

पेट में  दहकते  शोले, खेत में   चहकते  निवाले..!
मुँह  तक  आते-आते, सिर्फ वादे  करीब  होते  है ?
ये  सियासत के  रंग  भी   बड़े   अजीब  होते  हैं..!

अन्तरा-३.

सियासी  कूड़ेदान  में   तलाशे   सुकून   मगर..!
शान से  पाले अरमान, कायम  रकीब  होते  हैं..!
ये  सियासत के  रंग  भी  बड़े  अजीब  होते  हैं..!

कूड़ादान= डस्टबीन; रक़ीब = शत्रु, दुश्मन, वैरी,

अन्तरा-४.

जूझते  रहो, तुम  घुटते   रहो, बस  लूटते  रहो..!
दुनिया में सब के, अपने-अपने नसीब  होते  हैं ।
ये  सियासत के   रंग  भी   बड़े  अजीब  होते  हैं..!

घुटन=बेचैनी 

अन्तरा-५.

`नेताजी, तुम आगे  बढ़ो, हम तुम्हारे  साथ  है..!`
चीखने  वाले    सारे,   हराम - हबीब   होते   हैं ।
ये  सियासत के  रंग  भी  बड़े  अजीब  होते   हैं..!

हराम=छल-कपट,बदनीयत; हबीब = दोस्त,मित्र ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक - ३१-०३-२०१४.


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