27.3.14

हाथ की लकीरें । (गीत)


हाथ की लकीरें । (गीत)

हाथ  की  लकीरें, कितनी रूहानी  हो  गई..!
जिंदगी  पल - पल   जैसे, रूमानी  हो  गई ।

रूहानी= आध्यात्मिक;  रूमानी=रोमांच पैदा करने वाली

अन्तरा-१.

कहती है  फ़ितरत, बारबार मुझे कि देख..!
दास्तां- ए -मुहब्बत  बदगुमानी  हो  गई..!
हाथ की लकीरें, कितनी रूहानी हो  गई..!

फ़ितरत= स्वभाव, प्रकृति; बदगुमानी=गलतफहमी

अन्तरा-२.

अभी तो जवाँ  होने  लगी थी मुहब्बत  कि..!
तवारीख़ के चंद पन्नों पर कहानी हो गई..!
हाथ की  लकीरें, कितनी  रूहानी हो  गई..!

तवारीख़=इतिहास 

अन्तरा-३.

सुना  हैं, मेरी  शख्सियत  मिज़ाजी  हो  गई..!
देख  लो, दुनिया  कितनी  सयानी  हो  गई..!
हाथ की   लकीरें, कितनी   रूहानी  हो  गई..!

शख्सियत=व्यक्तित्व;  मिज़ाजी=चिड़चिड़ेपन का दौरा,
सयानी=चालाक ।


अन्तरा-४.

धुन्धली डगर, अजान सफर, बेजान नज़र? 
यही   बात   मेरे   होने की  निशानी  हो  गई?
हाथ की   लकीरें, कितनी  रूहानी  हो  गई..!

अजान=अपरिचित ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक - २६/०३/२०१४.

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