8.5.14

56 इन्च का जादू ....

56 इन्च का जादू  .... 

देश के बदलाव मे अब आखिरी चरण बाक़ी है। देश बदलाव चाहता है और उस बदलाव
से सुकून चाहता है। 56 इंच  के नाम की आँधी ने सब विपक्षी दलों को नाको चने चबवा
दिये हैं, तथाकथित बुद्धिजीवी दहाड़े मार रहे हैं और स्क्रीन पर खीज निकाल रहे हैँ।
छद्म राजनीतिज्ञ बहरूपिये बन कर शेर का शिकार करने के रास्ते खोजने के लिये भटक
रहे हैं और बाकी दल दिग्भ्रमित हो ङोल रहें हैं। कोई कंठी उतार कर टोपी पहन रहा है
तो कोई रंडवे की लुगाई बनने का दिखावा कर रहा है। जो मीडिया कुछ समय पहले
जिन्हें पानी पी कर कोसने के तरीके बनाता था अब उसे धंधा चलाने के लिये मन मार
कर उनके गीत गाने पड़ रहे हैं।

    नीति में साम,दाम ,दण्ड ,भेद ,माया और इंद्रजाल का उल्लेख है और इसका सफल
उपयोग राजा को करना आना चाहिए क्योंकि विजय का ही महत्व है बाकि सारा किया
धरा व्यर्थ है। इस बार धूर्त,शठ,ठग और चालबाज चित्त पड़े हैं ;किसी को कोई मौका या
जीवनदान नहीं। हर छोटी से छोटी बात का विश्लेषण करके जाल बिछाया गया है जिसमे
हर दल फँसता जा रहा है और फड़फड़ाता जा रहा है ,सब पंछी एक साथ होकर जोर
लगा रहे हैं पर जाल से खुद को छुड़ा नहीं पा रहे हैं। 56 इंच की नीति का हथोड़ा चलता
जा रहा है और जर्जर नुस्खे ध्वस्त हो रहे हैं। 

    इस चुनावी समर मे प्रमुख सेनापति गुम और मौन है या उसका उपयोग जितना
करना था वह कर लिया अब हाशिये पर कर दिया गया है। वोट कटर ने सबसे पहले
उसी डाली को काटा जिसने उसे जन्म दिया था और अब पूरी तरह से भोथरा हो गया
है। ना चाहते हुए भी यह समर उन दौ हस्तियो के बीच खेला जा रहा है जिसमें एक
महारथी है और दूसरा अनाड़ी। अनाड़ी शस्त्र विद्या में काला अक्षर है और महारथी
उसके ही शस्त्र से उस पर वार कर रहा है। अनाड़ी सेना हथियार डाल कर महारथी की
जीत के जश्न को पचाने के उपाय ढूंढ रही है।

प्रजा सिँह के साथ खड़ी है और सियारों के टोलो को खदेड़ रही है.देश के हर कोने से
दहाड़ गूँज रही है। उत्तर ,दक्षिण ,पूर्व और पश्चिम -हर दिशा जग चूकी है और अब
यात्रा अन्तिम चरण पर है। छोटी सी चूक से फायदा उठाते महारथी को देख सियासत
भोंचक्की है ,विपक्षी अपने नुकसान की गिनती मे लगे हैं और हार का ठिकरा फोड़ने
के लिए बलि का बकरा ढूँढ़ रहे है। जनता एक ही नारा लगा रही है - अबकी बार  .............  

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