7-7-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,न जाने क्यों हमारे देश के
नेताओं को अपनी धूर्तता और जनता की मूर्खता पर अपार विश्वास है। वे समझते
हैं कि वे बार-बार जनता को झाँसा दे सकते हैं,ठग सकते हैं। मगर वे बेचारे
यह नहीं जानते कि देश-प्रदेश की जनता अब वो पुरानी 20वीं सदी वाली जनता
नहीं रही बल्कि देश-प्रदेश की 55 प्रतिशत जनसंख्या आज युवा है और पल-पल
जागरुक और चौकन्नी है। बिहार में जंगलराज के निर्माता और निर्देशक लालू
प्रसाद जी पिछले कई चुनावों से बिहार की जनता को बरगलाने का प्रयास करते आ
रहे हैं। वे हर चुनाव में अपना वही पुराना जातिवादी मंडल राग छेड़ते आ रहे
हैं और मुँह की खाते आ रहे हैं। पिछले दो चुनावों में बिहार के वर्तमान से
पूर्व मुख्यमंत्री हो चुके नीतीश कुमार बिहार की जनता को विकास और
भ्रष्टाचारमुक्त शासन देने का वादा करके जीतते रहे मगर किया कुछ नहीं।
घूसखोरी बढ़ती गई,अराजकता पाँव पसारती गई और आज तो स्थिति ऐसी हो गई है कि
जहाँ पूरे बिहार में पिछले छः महीने से अनाज नहीं बँटा है तो कई स्थानों पर
सामाजिक पेंशन बँटे दो साल हो गए हैं, राज्य के 90 प्रतिशत शिक्षक नकली
डिग्रीधारी हैं और अपने कर्त्तव्यों को पूरा करने में पूरी तरह से अक्षम
हैं। कानून-व्यवस्था की स्थिति एक बार फिर से इतनी खराब हो चुकी है कि
बिहार के वित्त मंत्री के नाती का ही अपहरण हो गया है।
मित्रों,जब नीतीश कुमार पहली बार जीते तो लालू के जंगलराज से मुक्ति के वादे पर सवार होकर जीते। इसी तरह 2010 के चुनावों से पहले उन्होंने वादा किया कि इस पारी में उनकी सरकार भ्रष्टाचार को निर्मूल करके रख देगी लेकिन जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि भ्रष्टाचार घटने के बदले बढ़ता ही जा रहा है। चारों तरफ सरकारी पैसों की लूट और अराजकता का बोलबाला है। जनता परेशान है और धीरज खो रही है लेकिन लगता है जैसे नीतीश कुमार जी को यह दिखाई ही नहीं दे रहा था तभी तो वे सीएम से पीएम बनने का सपना पाल बैठे। जब सपना टूटा तो बेचारे सीएम की कुर्सी भी छोड़कर भाग गए। कदाचित् अरविन्द केजरीवाल की तरह वे भी यह समझ चुके थे कि भ्रष्टाचार को मिटाना तो दूर उसका बाल बाँका तक कर सकने की क्षमता भी उनमें नहीं है। चले थे नरेंद्र मोदी बनने और बन गए अरविन्द केजरीवाल। जाहिर है कि जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने की परीक्षा में नीतीश कुमार बुरी तरह से फेल हो चुके हैं।
मित्रों,फिर भी लालू और नीतीश दोनों परखे जा चुके नेता यह समझ रहे हैं कि अगर वे दोनों मिल जाएँ तो जनता फिर से उनको ही मौका दे देगी। वे फिर से चुनावों को केमिस्ट्री के बजाये गणित समझने की भूल कर रहे हैं। आखिर क्यों देगी जनता मौका जब वे दोनों जनता की आशाओं पर खरे नहीं उतर सके हैं? एक ने जो कुर्सी से चिपक कर बैठ गया था पूरे बिहार के खून को जोंक की तरह चूसकर बीमार बना दिया और दूसरा जनाकाक्षाओं को पूरा करने की कोई राह नहीं सूझने पर कुर्सी छोड़कर भाग गया फिर जनता क्यों दे उनको फिर से बिहार को बर्बाद करने का मौका जबकि उनके पास बिहार के लिए कोई नवीन योजना और उनको धरातल पर उतारने का जिगर है ही नहीं? वे दिन गए जब बिहार के लोग जाति-पाँति के बहकावे में आ जाते थे। अब वे समझ चुके हैं कि ये नेता जाति-पाँति के नाम पर जीतने के बाद जनता की जगह अपना और अपनों का ही भला करनेवाले हैं। हालाँकि बिहार की जनता का एक बड़ा भाग ऐसा है जो भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को पसंद नहीं करता है। कारण यह है कि श्री मोदी ने बेवजह नीतीश कुमार को बिहार का मसीहा बन जाने दिया जबकि वे दूर-दूर तक ऐसा बनने के लायक नहीं थे। इतना ही नहीं श्री मोदी लंबे समय तक नीतीश कुमार को ही भारत के पीएम पद का सबसे योग्य उम्मीदवार बताते रहे जबकि उनको पता था कि भाजपा नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करने जा रही है इसलिए अच्छा हो कि अगले विधानसभा चुनावों से पहले सुशील कुमार मोदी को भाजपा मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार या स्टार प्रचारक नहीं बनाए। या तो किसी और को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए या फिर यह निर्णय चुनावों के बाद जीतनेवाले विधायकों के विवेक पर छोड़ दे तभी उसकी जीत और लालू-नीतीश जैसे महान काठ की हाँड़ी विशेषज्ञ नेताओं की हार सुनिश्चित हो पाएगी।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,जब नीतीश कुमार पहली बार जीते तो लालू के जंगलराज से मुक्ति के वादे पर सवार होकर जीते। इसी तरह 2010 के चुनावों से पहले उन्होंने वादा किया कि इस पारी में उनकी सरकार भ्रष्टाचार को निर्मूल करके रख देगी लेकिन जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि भ्रष्टाचार घटने के बदले बढ़ता ही जा रहा है। चारों तरफ सरकारी पैसों की लूट और अराजकता का बोलबाला है। जनता परेशान है और धीरज खो रही है लेकिन लगता है जैसे नीतीश कुमार जी को यह दिखाई ही नहीं दे रहा था तभी तो वे सीएम से पीएम बनने का सपना पाल बैठे। जब सपना टूटा तो बेचारे सीएम की कुर्सी भी छोड़कर भाग गए। कदाचित् अरविन्द केजरीवाल की तरह वे भी यह समझ चुके थे कि भ्रष्टाचार को मिटाना तो दूर उसका बाल बाँका तक कर सकने की क्षमता भी उनमें नहीं है। चले थे नरेंद्र मोदी बनने और बन गए अरविन्द केजरीवाल। जाहिर है कि जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने की परीक्षा में नीतीश कुमार बुरी तरह से फेल हो चुके हैं।
मित्रों,फिर भी लालू और नीतीश दोनों परखे जा चुके नेता यह समझ रहे हैं कि अगर वे दोनों मिल जाएँ तो जनता फिर से उनको ही मौका दे देगी। वे फिर से चुनावों को केमिस्ट्री के बजाये गणित समझने की भूल कर रहे हैं। आखिर क्यों देगी जनता मौका जब वे दोनों जनता की आशाओं पर खरे नहीं उतर सके हैं? एक ने जो कुर्सी से चिपक कर बैठ गया था पूरे बिहार के खून को जोंक की तरह चूसकर बीमार बना दिया और दूसरा जनाकाक्षाओं को पूरा करने की कोई राह नहीं सूझने पर कुर्सी छोड़कर भाग गया फिर जनता क्यों दे उनको फिर से बिहार को बर्बाद करने का मौका जबकि उनके पास बिहार के लिए कोई नवीन योजना और उनको धरातल पर उतारने का जिगर है ही नहीं? वे दिन गए जब बिहार के लोग जाति-पाँति के बहकावे में आ जाते थे। अब वे समझ चुके हैं कि ये नेता जाति-पाँति के नाम पर जीतने के बाद जनता की जगह अपना और अपनों का ही भला करनेवाले हैं। हालाँकि बिहार की जनता का एक बड़ा भाग ऐसा है जो भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को पसंद नहीं करता है। कारण यह है कि श्री मोदी ने बेवजह नीतीश कुमार को बिहार का मसीहा बन जाने दिया जबकि वे दूर-दूर तक ऐसा बनने के लायक नहीं थे। इतना ही नहीं श्री मोदी लंबे समय तक नीतीश कुमार को ही भारत के पीएम पद का सबसे योग्य उम्मीदवार बताते रहे जबकि उनको पता था कि भाजपा नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करने जा रही है इसलिए अच्छा हो कि अगले विधानसभा चुनावों से पहले सुशील कुमार मोदी को भाजपा मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार या स्टार प्रचारक नहीं बनाए। या तो किसी और को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए या फिर यह निर्णय चुनावों के बाद जीतनेवाले विधायकों के विवेक पर छोड़ दे तभी उसकी जीत और लालू-नीतीश जैसे महान काठ की हाँड़ी विशेषज्ञ नेताओं की हार सुनिश्चित हो पाएगी।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
बहुत बढ़िया आकलन किया है आपने ब्रजकिशोर जी। सच है कि कई मौकों पर सुशील कुमार मोदी नितीश कुमार की ही चाटुकारिता करते हुए नज़र आए। बी जे पी की भी गलती रही कि नितीश कुमार की मोदीजी को बिहार में चुनाव प्रचार से बाहर रखने की अजीब शर्त भी मान ली गई जिससे जे डी यू के हौसले बुलंद होते गए, की वो जब चाहे, जैसे चाहे, बी जे पी को झुका सकते हैं। सच तो ये है कि सबको मोदीजी की लहर महसूस हो रही थी, लेकिन नीतीशजी कोई मौका नहीं छोड़ते थे झूठ बोलने का, आखिर जब खुद उस लहर में बहे तो ही विश्वास हुआ होगा। उधर एक "नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली", लालू ठहरे, जो फिर से समाज को बाँटने का अपना मंडल कमंडल का नुस्खा अपनाने की सोच रहे हैं. लेकिन जनता अब पहचान चुकी है, उसे कर्मठ राजनेता चाहिए जो "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" का सपना लेकर चल रहा हो, लोग अपनी आँखों में अब वो ही सपना पाल पोस रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आकलन किया है आपने ब्रजकिशोर जी। सच है कि कई मौकों पर सुशील कुमार मोदी नितीश कुमार की ही चाटुकारिता करते हुए नज़र आए। बी जे पी की भी गलती रही कि नितीश कुमार की मोदीजी को बिहार में चुनाव प्रचार से बाहर रखने की अजीब शर्त भी मान ली गई जिससे जे डी यू के हौसले बुलंद होते गए, की वो जब चाहे, जैसे चाहे, बी जे पी को झुका सकते हैं। सच तो ये है कि सबको मोदीजी की लहर महसूस हो रही थी, लेकिन नीतीशजी कोई मौका नहीं छोड़ते थे झूठ बोलने का, आखिर जब खुद उस लहर में बहे तो ही विश्वास हुआ होगा। उधर एक "नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली", लालू ठहरे, जो फिर से समाज को बाँटने का अपना मंडल कमंडल का नुस्खा अपनाने की सोच रहे हैं. लेकिन जनता अब पहचान चुकी है, उसे कर्मठ राजनेता चाहिए जो "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" का सपना लेकर चल रहा हो, लोग अपनी आँखों में अब वो ही सपना पाल पोस रहे हैं।
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