12.8.14

छोटी-छोटी पहल से बचेगी विशाल धरती

- संतोष सारंग

पांच अगस्त को संध्या काल में पर्यावरण व गांधी चिंतन-दर्शन का जाना पहचाना नाम अनुपम मिश्र से नयी दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान के दफ्तर में एक संक्षिप्त मुलाकात हुई. प्रभात भाई को धन्यवाद. उनके प्रयास से अनुपम भाई से मिल सका. आइपीसीसी की पांचवीं एसेसमेंट रिपोर्ट पर पैनोस साउथ एशिया व सीडीकेएन की ओर से आयोजित एकदिवसीय मीडिया वर्कशॉप में भाग लेने के बाद सीधे आइटीओ पहुंचा. मन में ढेरों सवाल थे- क्लाइमेट चेंज, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, मर-मिट रहे जलस्त्रोतों, दुनियाभर में पर्यावरणवादियों की ओर से पृथ्वी को बचाने के लिए किये जा रहे प्रयासों को ले. ‘आज भी खड़े हैं तालाब’ अनुपम भाई का शोधपरक दस्तावेज है. इस चर्चित पुस्तक की लाखों प्रतियां कई संशोधित संस्करणों के रू प में प्रकाशित हो चुकी हैं. समाजकर्मियों, कार्यकर्ताओं ने अपने पैसे से इसे प्रकाशित करते रहे हैं. कई संगठनों का भी योगदान रहा है इसके प्रकाशन में, यह जानकार अच्छा लगा. चलिये, देश में कुछ अच्छे लोग, ग्रासरू ट में काम करनेवाले संगठन तो हैं. अनुपम भाई से सवाल किया, धरती कैसे बचेगी? सीधा सा जवाब मिला, मैं चिंता नहीं करता, काम करता हूं. देश में कई जगह अच्छे काम हो रहे हैं. कई लोग बिना प्रचार-प्रसार व शोर के प्रकृति व पर्यावरण बचाने में लगे हैं. उन्होंने ‘आज भी खड़े हैं तालाब’ की संशोधित संस्करण की एक प्रति भेंट की. कई पोस्टर भी दिये, जिनमें तालाब को बचाने से जुड़ा प्रसंग छपा है. साथ ही, गांधी दर्शन से जुड़ी कई किताबें दीं. मंगलवार का वह पूरा दिन व रात पर्यावरण के नाम रहा. चलते-चलते उन्होंने कहा, चिंता करने से धरती नहीं बचेगी, छोटे-छोटे प्रयास करने होंगे. उनसे मिलकर मेरे भीतर ऊर्जा का संचार हुआ. दिव्य व्यक्तित्व का दर्शन पाकर प्रेरित हुआ. इसी शाम खादी के युवातुर्क लोकेंद्र भारतीयजी से भी आदिम जाति में मुलाकात का मौका मिला. ढेर सारी बातें हुई. गांधीवादी रामचंद्र राही के काम के बारे में जाना.

अनुपम भाई के बहाने उस रात तालाब व अन्य परंपरागत जलस्त्रोतों के बारे में सोचता रहा. देश के अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी कुएं, तालाब व आहार-पईन मरते-मिटते जा रहे हैं. दरभंगा तालाबों का शहर कहलाता रहा है. जमीन की आसमान छूती कीमत के कारण आज इस शहर में कुछ ही तालाब बचे हैं. पूरे मिथिलांचल में तालाब व मखाने का अटूट नाता रहा है. तालाबों की संख्या घटने के कारण मखाने की खेती में गिरावट आई है. जो तालाब बचे हैं, वे बरसाती बन गये हैं. जलस्तर भी गिर रहा है. अमूमन यही स्थिति राज्य के अन्य हिस्सों की है. ये सारी चिंताएं मन में उभर रही थीं. 

दिन में कार्यशाला में आइपीसीसी की रिपोर्ट के तमाम बिंदुओं पर चर्चा होती रही. पैनोस साउथ एशिया के गोपी एस वारियर ने अपने संबोधन से कार्यशाला का शुभारंभ किया. देशभर के पर्यावरण पर लिखनेवाले वरिष्ठ पत्रकारों का संगत मिला. नोबेल विजेता ‘आइपीसीसी’ के वरिष्ठ अधिकारी जोनाथन लीन के भाषण से प्रथम सत्र की शुरुआत हुई. उन्होंने आइपीसीसी के संगठनात्मक ढांचे, उसकी गतिविधियों, नीतियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी. इसके बाद जाधवपुर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर जॉयश्री रॉय ने महत्वपूर्ण जानकारी दी. आइपीसीसी एआर 5 रिपोर्ट को तैयार करने में 85 देशों के 800 लेखकों ने अपनी ऊर्जा खर्च की. उन्होंने बताया कि देश का सकल घरेलू उत्पाद व जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सजर्न में भी वृद्धि हो रही है. प्राय 80 फीसदी जीएचजी का उत्सजर्न 2000 से 2010 के बीच हुआ, जिसके लिए सबसे ज्यादा इनर्जी व इंडस्ट्री सेक्टर जिम्मेदार है. जबतक मनुष्य अपने व्यवहार व सोच में बदलाव नहीं लायेगा, तबतक कुछ नहीं होनेवाला है. जर्मनी व स्वीट्जरलैंड में कार शेयरिंग के जरिये लोग पर्यावरण संरक्षण कर रहे हैं. भारत में भी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को अपनाना होगा. नवरोज के. दुबाश ने कार्बन टड्रिंग पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि स्वीडन, नाव्रे, डेनमार्क कार्बन टैक्स को ले गंभीर है. सरकार को कार्बन पर टैक्स लगाना चाहिए.


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