7.8.14

उत्तर प्रदेश (समाजवादी) संस्कृत संस्थान का दो दिवसीय समारोह

उत्तर प्रदेश (समाजवादी) संस्कृत संस्थान ने संस्कृत का पूरा पूरा मजाक उड़ाया . दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया श्री जनेश्वर मिश्र के नाम पर जिसमें एक विदुषी को पुरस्कृत भी किया गया । सम्मान देने और पुरस्कार देने में अंतर होता है । मंच पर लगे बैनर में जनेश्वर मिश्र और अखिलेश यादव का नाम दिखा परन्तु जिस गरीब विदुषी को डेढ़ लाख दिया गया उस बेचारी का नाम ही नहीं, ऐसा लगता है कि संस्थान कभी ऐसे आयोजन करता ही नहीं हो. भाषण एवं चाटुकारिता में तो समय दिया गया परन्तु पुरस्कार प्रक्रिया दो मिनट में निपटा दी गयी, आम परंपरा के तहत सारा आयोजन हिंदी और अशुद्ध उर्दू में किया गया. बेचारा संस्थान शायद कोई समाजवादी संस्कृत वक्ता नहीं खोज पाया होगा. गलती संस्थान की नहीं है, अब तो जो सर्वदा अयोग्य और संस्कृत न जानता हो वो इस संस्थान के अध्यक्ष पद के लिए एक योग्य व्यक्तित्व होगा. प्रथम दिवस और द्वितीय दिवस की प्रस्तुतियों ने संस्कृत का मजाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी . अध्यक्ष महोदय स्वयं अपना नाम शंकर के स्थान पर संकर उच्चारित करते दिखे तो शेष का क्या दोष । खैर सकार इत्यादि दोष तो आज के विद्वानों में भी आम है ।

प्रथम दिवस संस्कृत नाटक के नाम पर शुरू की गई नृत्य नाटिका हिन्दी गीतों पर आ गई और यह शो जिसे एक नृत्याङ्गना द्वारा निदेशित बताया जा रहा, मात्र लाइट एण्ड साउण्ड शो बनकर रह गया .
द्वितीय दिवस का कजरी गायन गाँव में होने वाले ऑर्केस्ट्रा शो से अधिक स्तर का नहीं था, परन्तु किसी गलती की वजह से भास का नाटक आमन्त्रित कर लिया गया था, शायद आयोजक ये नहीं जानते होंगे कि इसकी सुन्दर प्रस्तुति होगी वर्ना वे श्री प्रेमचन्द को न आमन्त्रित करते । इस प्रस्तुति ने पूरे समारोह का स्वाद बिगाड़ दिया । अन्यथा हम कह सकते थे कि इतना घटिया आयोजन आगे कभी न होगा ।
मै यह जानना चाहूँगा कि आखिर किस की गलती से श्री प्रेमचन्द होम्बल आ गए . अवश्य ही यह गलती से हो गया होगा । खैर जिसकी भी गलती हो, कमसे कम एक अच्छी प्रस्तुति दिखी । इस समाजवादी गलती के लिए संस्थान धन्यवाद का पात्र है । नाटक का पूर्वरंग ही यह दिखा गया कि यदि आप काम करना जानते हैं तो बड़ी बड़ी लाइट या मल्टीमीडिया व्यर्थ है, नाटक का पूर्वरंग ही सारे समारोह पर भारी पड़ा और पूर्व के सारे आयोजन से बहुत आगे निकल गया ।
मजे की बात है कि अध्यक्ष महोदय भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय एवं फिल्म इन्टीट्यूट पुणे से सम्बद्ध एवं प्रशिक्षित बताए गए फिर भी इतना निम्न आयोजन होना आश्चर्य जनक किन्तु सत्य की श्रेणी में ही गिना जाएगा ।
खैर अब मुझे यह अफसोस नहीं रहैगा कि उर्दू नाटक के नाम पर उर्दू एकेडमी ने अशुद्ध उर्दू उच्रचारण वाले कलाकारों को लेकर आगा हश्र कश्मीरी की ऐसी तैसी फेरी थी , संस्कृत भी क्यों पीठ दिखाए...
मगर आज तक मैंने उर्दू के कार्यक्रमों में संचालन में हिन्दी या संस्कृत का प्रयोग होता नहीं देखा, आमतोर पर नफीस उर्दू बोली जाती है, उर्दू अकादमी में भी स्टाफ उर्दू बोलता लिखता पढ़ता दिखता है परन्तु बोचारा संस्कृत संस्थान, यहाँ एक को छोड़ कोई भी संस्कृत का ज्ञान नहीं रखता । वास्तव में संस्कृत संस्थान की पहटान मात्र यहाँ के पुस्तकालय के कारण हैं जिस में छात्र पढ़ने आ जाते हैं, अन्यथा यहाँ सन्नाटा ही रहे ।

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