10.2.15

जनता की नब्ज पहचानने में विफल रही भाजपा

10 फरवरी,2015,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,दिल्ली ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अश्वमेध के घोड़े को रोक लिया है। जीत जीत होती है और हार हार। फिर हार जब इतनी करारी हो तो सवाल उठना और भी लाजिमी हो जाता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं सच कहूंगा मगर फिर भी हार जाऊंगा, वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा? लेकिन ऐसा हो चुका है और भारत की राजधानी दिल्ली में हो चुका है। कभी 15वीं-16वीं शताब्दी में कबीर को भी जमाने से यही शिकायत थी कि साधो,देख ये जग बौराना।
साँच कहूँ तो मारन धावे,
झूठौ जग पतियाना,
साधो,देख लो जग बौराना।।
मित्रों,वजह चाहे जो भी हो हार तो हार होती है। मुझे लगता है दिल्ली में भाजपा अतिआत्मविश्वास की बीमारी से ग्रस्त हो गई थी। भाजपा जनता से कट गई थी। लोक और तंत्र के बीच संवादहीनता की स्थिति पैदा हो गई थी। भाजपा का प्रचार ऊपर से नीचे की ओर चल रहा था वहीं आप पार्टी का प्रचार सीधे नीचे से चल रहा था। उनके कार्यकर्ता लगातार लोगों से डोर-टू-डोर संपर्क कर रहे थे जो कि भाजपा नहीं कर रही थी। फिर भाजपा ने चुनावों में काफी देर भी कर दी। मेरे हिसाब से दिल्ली में चुनाव लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद करवा लेना चाहिए था। चुनावों में देरी ने कई तरह के अंदेशों और अफवाहों को हवा दी।
मित्रों,दूसरी जो वजह हार की है वो है दिल्ली भाजपा में सिर फुटौब्बल। भाजपा में ऐसा कम ही देखा जाता है कि प्रदेश अध्यक्ष का ही टिकट कट जाए और उनके समर्थक प्रदेश कार्यालय को घेर लें लेकिन ऐसा हुआ। उस पर भाजपा ने अपने पुराने कैडरों की उपेक्षा करते हुए किरण बेदी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बना दिया जिससे पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में निराशा उत्पन्ना हो गई। इतना ही नहीं पार्टी ने दूसरी पार्टी से आए हुए लोगों को सिर आँखों पर बिठाया जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ जनता के बीच भी गलत संकेत गया।
मित्रों,तीसरी वजह यह रही कि पार्टी ने कई मुद्दों पर चुप्पी साधे रखी। नरेंद्र मोदी के शूट के मुद्दे पर पार्टी को तुरन्त बताना चाहिए था कि शूट गिफ्ट में मिली है और मोदी गिफ्ट में मिली चीजों की सालाना नीलामी करवाते हैं और प्राप्त राशि को सरकारी खजाने में जमा करवा देते हैं। इसी तरह पार्टी ने प्रत्येक भारतवासी के खाते में 15 लाख रुपये वाले जुमले पर भी चुप्पी साधे रखी।
मित्रों,चौथी वजह यह रही कि मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी में धैर्य और वक्तृता शक्ति की कमी। पूरे चुनाव अभियान के दौरान किरण बेदी जी राजनेता की तरह दिखी ही नहीं। हमेशा ऐसा लगता रहा कि उनके पास समय की कमी है। यहाँ तक कि टीवी चैनल वालों के लिए भी उनके पास समय नहीं था। अगर उनको टीवी पर बहस नहीं करनी थी तो उनको इसकी पहल भी नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि उनके बहस से पीछे हटने का जो संकेत जनता के बीच गया वह पार्टी के लिए काफी घातक रहा। किरण बेदी जी ने चुनाव प्रचार की शुरुआत ही विवाद से की लाला लाजपत राय की प्रतिमा को भाजपा का पट्टा पहनाकर।
मित्रों,पाँचवीं वजह यह रही कि भाजपा ने अपना विजन डॉक्यूमेंट लाने में काफी देर कर दी। उसके विजन डॉक्यूमेंट में अधिकतर वादे वही थे जो आप पार्टी के घोषणा-पत्र में पहले ही आ चुके थे।
मित्रों,छठी वजह यह रही कि दिल्ली सहित सारे देश में धीरे-धीरे जनता को लगने लगा है कि मोदी जी के केंद्र में आने के बावजूद ग्रास रूट लेवल पर स्थितियाँ कमोबेश वैसी ही और वही हैं जो 9 महीने पहले थीं। आज भी पुलिस भ्रष्ट है,नगर निगम भ्रष्ट हैं,चारों तरफ गंदगी है,भ्रष्टाचार है,बिजली और पानी की किल्लत है,न्याय विलंबित और बेहद खर्चीला है,शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति काफी खराब है,पंचायती राज भ्रष्टाचार के विकेंद्रीकरण के प्रतीक बने हुए हैं,जनवितरण प्रणाली में व्यापक भ्रष्टाचार है आदि-आदि।
मित्रों,सातवीं वजह यह रही कि आज भी भारत की जनता मुफ्तखोर है। उसको हर चीज मुफ्त में चाहिए भले ही इसके लिए देश के विकास के रथ को रोकना ही क्यों न पड़े। उसको इस बात से कुछ भी लेना-देना नहीं है कि कौन सी पार्टी देशभक्त है और कौन सी पार्टी देश विरोधी। यहाँ यह ध्यान देनेवाली बात है कि दिल्ली का वार्षिक बजट मात्र 40,000 करोड़ रुपये का होता है वही आप पार्टी ने 15 लाख करोड़ रुपये के वादे दिल्ली की जनता से कर दिए हैं। जाहिर है कि भविष्य में यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि वे इन वादों को कैसे पूरा करते हैं। या फिर से पैसों की मांग के लिए धरने पर बैठ जाते हैं। सबसे ज्यादा दिलचस्प यह देखना होगा कि पूरी दिल्ली में कबसे मुफ्त में वाई-फाई की सुविधा शुरू की जाती है और कब दिल्ली में 15 लाख सीसीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं। क्योंकि दिल्ली के ज्यादातर युवा फ्री वाई-फाई के लालच में आ गए।
मित्रों,आठवीं वजह यह रही कि कांग्रेस का पूरा वोट बैंक आम आदमी पार्टी ले उड़ी। वोट प्रतिशत के मामले में भाजपा इस बार भी वहीं है जहाँ 2013 में थी। अगर भाजपा ने जमीनी स्तर पर घर-घर जाकर चुनाव प्रचार किया होता तो निश्चित रूप से कांग्रेस के वोट बैंक में उसको भी हिस्सा मिलता लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई जिसका दुष्परिणाम आज हमारे सामने है।
मित्रों,नौवीं वजह यह रही कि मोदी सरकार ने भले ही डीजल के दाम कितने भी कम क्यों न कर दिए हों उसका व्यापक असर महंगाई पर दिख नहीं रहा क्योंकि न तो बसों-टेम्पो के भाड़े ही कम हुए और न ही ट्रकों के।
मित्रों,नौवीं वजह यह रही कि भाजपा की तरफ से घर-वापसी आदि को लेकर लगातार उटपटांग बयान आते रहे। खुद नरेंद्र मोदी के दिल्ली में दिए गए चारों भाषण भी निर्विवाद नहीं रहे। भाग्यवान और अभागा जैसे जुमले सिर्फ और सिर्फ दंभ और अभिमान के परिचायक रहे। मोदी केजरीवाल को निगेटिव कहते रहे लेकिन कहीँ-न-कहीं उनका खुद का भाषण ही निगेटिव हो गया। उनको आप पार्टी की आलोचना करने के बजाए यह बताना चाहिए था कि वे दिल्ली के लिए क्या-क्या करना चाहते हैं। उनको नौ महीने में दिल्ली नगर निगम की स्थिति को सुधारना चाहिए था। फिर योगी आदित्यनाथ ने तो हद ही कर दी यह कहकर कि वे देश की प्रत्येक मस्जिद में गौरी-गणेश की प्रतिमा स्थापित करवा देंगे। कुल मिलाकर निश्चित रूप से भाजपा ने कई गलतियाँ कीं और उन गलतियों का खामियाजा उसे भुगतना ही था। देश की जनता निश्चित रूप से मोदी सरकार के काम करने की रफ्तार से संतुष्ट नहीं है। उसको और भी तेज रफ्तार में काम चाहिए और ऐसे काम चाहिए जो जमीनी स्तर पर आसानी से दिखाई दें। उसको भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए,त्वरित न्याय चाहिए,सफाई चाहिए,अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधा चाहिए,रोजगार चाहिए आदि-आदि।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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