मित्रों,इतिहास गवाह है कि भारत के महानतक शासकों में से एक अकबर ने
दीने ईलाही धर्म चलाया था। ब्रिटिश इतिहासकार लेनपुल ने इसे अकबर की
मूर्खता का स्मारक बताया है। वजह यह थी कि इस धर्म के चलते अकबर ने एक साथ
हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों का समर्थन खो दिया। मुसलमानों ने उसे मुसलमान
मानना बंद कर दिया और हिंदुओं में यह भय व्याप्त हो गया कि अकबर इसके बहाने
उनका धर्म छीनना चाहता है।
मित्रों, कुछ इसी तरह की मूर्खता इन दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी राजनैतिक पार्टी भाजपा कर रही है। भाजपा और मोदी ने कश्मीर में अलगाववादियों की समर्थक और भारत और भारतीय सेना की सबसे बड़ी दुश्मन पीडीपी के साथ सरकार बनाई है। इस सरकार ने अस्तित्व में आते ही सबसे पहला कदम यह उठाया है कि उसने भारतीय सेना पर पत्थरबाजी करने में सबसे आगे रहनेवाले मशरफ आलम को जेल से रिहा कर दिया है। इससे पहले शपथ-ग्रहण के समय ही मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कश्मीर में शांति का मुख्य श्रेय़ पाकिस्तान और अलगाववादियों को दिया था।
मित्रों,भाजपा अभी भी कह रही है कि कश्मीर में सरकार न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत चलाई जाएगी तो क्या यही है कश्मीर में भाजपा-पीडीपी की संयुक्त सरकार का न्यूनतम साझा कार्यक्रम?? अगर ऐसा है तो फिर भाजपा को कोई अधिकार नहीं है श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपना कहने का या फिर उनका नाम भी लेने का? अगर यही भाजपा का राष्ट्रवाद है तो फिर निश्चित रूप से यह भारत की उस बहुसंख्यक जनता के साथ धोखा है जिसने पिछले साल के लोकसभा चुनावों में उसे मत दिया था।
मित्रों,नरेंद्र मोदी और भाजपा को हरगिज यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर हिन्दुओं का उसके प्रति मोहभंग हो गया तो उनकी हैसियत दो कौड़ी की भी नहीं रह जाएगी। रही बात मुसलमानों की तो मैं यह स्टांप पेपर पर लिखकर देने को तैयार हूँ कि उनका मत भाजपा को कभी नहीं मिलेगा। नरेंद्र मोदीजी और अमित शाह जी यह अकबर का जमाना नहीं है कि बिना जनता के विश्वास के भी कोई 50 सालों तक भारत पर शासन करेगा। आज के हिंदुस्तान में 5 साल के शासन को 10 में बदलना ही किसी भी व्यक्ति या दल के लिए टेढ़ी खीर होती है। ऐसा न हो कि साल 2019 आते-आते आपके ऊपर से भी माँ भारती की अनन्य भक्त भारत की बहुसंख्यक राष्ट्रवादी जनता का विश्वास समाप्त हो जाए।
मित्रों, चूँकि ऐसा होना भारत के विकास के लिए काफी अहितकारी सिद्ध होगा इसलिए मेरा नरेंद्र मोदी और अमित शाह से यह करबद्ध प्रार्थना है कि आपलोग कश्मीर के सनकी नेता मुफ्ती की सही रास्ते पर आने का स्पष्ट निर्देश दें और अगर फिर भी वो रास्ते पर नहीं आता है तो उसे बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाएँ क्योंकि मैं नहीं चाहता कि नरेंद्र मोदी से भारत की जनता इतनी जल्दी नाराज हो जाए और फिर से देश देशद्रोहियों के हाथों में चला जाए। अंत में मैं मोदी जी और शाह जी को मैं भारतीय इतिहास के एक और दृष्टांत की याद दिलाना चाहूंगा। 5 जनवरी,1544 को शेरशाह सूरी और मारवाड़ के शासक मालदेव के बीच जेतारण का युद्ध लड़ा गया था जिसमें तत्कालीन भारत का बादशाह शेरशाह सूरी हारते-हारते बचा था और तब उसने कहा था कि एक मुट्ठी भर बाजरे की कीमत पर मैँ हिन्दुस्तान की सियासत खो बैठता। कहीं आपलोगों का भी वही हाल नहीं हो।
मित्रों,इससे पहले 7 अक्तूबर,2013,दिन सोमवार को मैंने ब्रज की दुनिया पर ब्लॉग लिखकर उस समय नरेंद्र मोदी जी को चेतावनी दी थी कि सावधान मोदीजी यू टर्न लेना मना है जब वे प्रधानमंत्री नहीं थे बल्कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार भर थे। लेकिन नरेंद्र मोदी क्यों सुनने लगे हमारी? आखिर मैं एक आर्थिक रूप से निहायत निर्बल,असफल छोटा-सा,सीधा-सादा,देशभक्त पत्रकार जो ठहरा।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों, कुछ इसी तरह की मूर्खता इन दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी राजनैतिक पार्टी भाजपा कर रही है। भाजपा और मोदी ने कश्मीर में अलगाववादियों की समर्थक और भारत और भारतीय सेना की सबसे बड़ी दुश्मन पीडीपी के साथ सरकार बनाई है। इस सरकार ने अस्तित्व में आते ही सबसे पहला कदम यह उठाया है कि उसने भारतीय सेना पर पत्थरबाजी करने में सबसे आगे रहनेवाले मशरफ आलम को जेल से रिहा कर दिया है। इससे पहले शपथ-ग्रहण के समय ही मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कश्मीर में शांति का मुख्य श्रेय़ पाकिस्तान और अलगाववादियों को दिया था।
मित्रों,भाजपा अभी भी कह रही है कि कश्मीर में सरकार न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत चलाई जाएगी तो क्या यही है कश्मीर में भाजपा-पीडीपी की संयुक्त सरकार का न्यूनतम साझा कार्यक्रम?? अगर ऐसा है तो फिर भाजपा को कोई अधिकार नहीं है श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपना कहने का या फिर उनका नाम भी लेने का? अगर यही भाजपा का राष्ट्रवाद है तो फिर निश्चित रूप से यह भारत की उस बहुसंख्यक जनता के साथ धोखा है जिसने पिछले साल के लोकसभा चुनावों में उसे मत दिया था।
मित्रों,नरेंद्र मोदी और भाजपा को हरगिज यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर हिन्दुओं का उसके प्रति मोहभंग हो गया तो उनकी हैसियत दो कौड़ी की भी नहीं रह जाएगी। रही बात मुसलमानों की तो मैं यह स्टांप पेपर पर लिखकर देने को तैयार हूँ कि उनका मत भाजपा को कभी नहीं मिलेगा। नरेंद्र मोदीजी और अमित शाह जी यह अकबर का जमाना नहीं है कि बिना जनता के विश्वास के भी कोई 50 सालों तक भारत पर शासन करेगा। आज के हिंदुस्तान में 5 साल के शासन को 10 में बदलना ही किसी भी व्यक्ति या दल के लिए टेढ़ी खीर होती है। ऐसा न हो कि साल 2019 आते-आते आपके ऊपर से भी माँ भारती की अनन्य भक्त भारत की बहुसंख्यक राष्ट्रवादी जनता का विश्वास समाप्त हो जाए।
मित्रों, चूँकि ऐसा होना भारत के विकास के लिए काफी अहितकारी सिद्ध होगा इसलिए मेरा नरेंद्र मोदी और अमित शाह से यह करबद्ध प्रार्थना है कि आपलोग कश्मीर के सनकी नेता मुफ्ती की सही रास्ते पर आने का स्पष्ट निर्देश दें और अगर फिर भी वो रास्ते पर नहीं आता है तो उसे बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाएँ क्योंकि मैं नहीं चाहता कि नरेंद्र मोदी से भारत की जनता इतनी जल्दी नाराज हो जाए और फिर से देश देशद्रोहियों के हाथों में चला जाए। अंत में मैं मोदी जी और शाह जी को मैं भारतीय इतिहास के एक और दृष्टांत की याद दिलाना चाहूंगा। 5 जनवरी,1544 को शेरशाह सूरी और मारवाड़ के शासक मालदेव के बीच जेतारण का युद्ध लड़ा गया था जिसमें तत्कालीन भारत का बादशाह शेरशाह सूरी हारते-हारते बचा था और तब उसने कहा था कि एक मुट्ठी भर बाजरे की कीमत पर मैँ हिन्दुस्तान की सियासत खो बैठता। कहीं आपलोगों का भी वही हाल नहीं हो।
मित्रों,इससे पहले 7 अक्तूबर,2013,दिन सोमवार को मैंने ब्रज की दुनिया पर ब्लॉग लिखकर उस समय नरेंद्र मोदी जी को चेतावनी दी थी कि सावधान मोदीजी यू टर्न लेना मना है जब वे प्रधानमंत्री नहीं थे बल्कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार भर थे। लेकिन नरेंद्र मोदी क्यों सुनने लगे हमारी? आखिर मैं एक आर्थिक रूप से निहायत निर्बल,असफल छोटा-सा,सीधा-सादा,देशभक्त पत्रकार जो ठहरा।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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